Som Pradosh Vrat July 2022: शिव जी को प्रसन्न करके सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला प्रदोष व्रत बहुत ही प्रभावशाली है. प्रदोष का अर्थ है रात का शुभारंभ, इसी वेला में इस व्रत का पूजन किया जाता है इसलिए यह प्रदोष के नाम से विख्यात है. हर माह के दो पक्ष होते हैं, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष. प्रत्येक पक्ष में त्रयोदशी को होने वाला यह व्रत मुख्यतः संतान कामना प्रधान है. इसीलिए प्रायः स्त्रियां इस व्रत को अधिक रहती हैं.


कब से शुरू करें प्रदोष व्रत


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त्रयोदशी किसी भी दिन पड़ सकती है इसलिए यदि उस दिन प्रदोष पड़ रहा होता है तो दिन के साथ उसे जोड़ कर बोला जाता है जैसे सोमवार के दिन प्रदोष पड़ने पर उसे सोम प्रदोष, मंगलवार को व्रत पड़ने पर उसे भौम प्रदोष तथा शनिवार के दिन शनि प्रदोष कहा जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रदोष के दिन भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर अपने भवन में नृत्य करते हैं और सभी देवता उनकी स्तुति करते हैं. इसीलिए इस दिन भगवान शंकर की पूजा करने से वह प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल  देते हैं.


बहुत खास है सावन का सोम प्रदोष


किसी भी माह के कृष्ण पक्ष के शनिवार को पड़ने वाला शनि प्रदोष व्रत विशेष पुण्यदायी होता है. इस दिन से प्रदोष व्रत की शुरुआत की जा सकती है. इसी प्रकार भगवान शंकर के दिन यानी सोमवार को पड़ने वाले सोम प्रदोष से भी इस व्रत को प्रारंभ कर सकते हैं. सावन मास चल रहा है और इस मास में 25 जुलाई को कृष्ण पक्ष का सोम प्रदोष होगा. जो लोग व्रत का प्रारंभ करना चाहते हैं, इस दिन से कर सकते हैं. इसके बाद सावन मास में 9 अगस्त को भौम प्रदोष होगा. इस दिन रुद्राभिषेक कराना भी विशेष फलदायी रहता है.


प्रदोष व्रत कथा


प्राचीन काल में एक गरीब ब्राह्मणी अपने पति की मृत्यु के बाद भीख मांग कर अपने जीवन का निर्वाह करने लगी. उसका एक पुत्र भी था, जिसको वह रोज सुबह अपने साथ लेकर निकल जाती और सूर्य डूबने तक वापस आ जाती थी. एक दिन उसकी भेंट विदर्भ देश के राजकुमार से हुई जो अपने पिता की मृत्यु और राज्य में दूसरों का कब्जा हो जाने के कारण मारा-मारा फिर रहा था. उसकी स्थिति देख कर ब्राह्मणी को दया आ गई और वह उसे अपने घर ले आई. एक दिन वह ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गई और उनसे भगवान शंकर की पूजन विधि जानकर लौट आई तथा प्रदोष व्रत करने लगी. 


कुछ समय के बाद एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे, वहां उन्होंने कुछ कन्याओं को क्रीड़ा करते देखा. ब्राह्मण कुमार तो घर लौट आया परंतु राजकुमार एक गंधर्व कन्या से बात करने लगा. उस कन्या का नाम अंशुमति था. उस दिन राजकुमार घर देरी से लौटा. दूसरे दिन राजकुमार फिर उसी जगह पहुंचा. जहां अंशुमति अपने माता-पिता के साथ बैठी बातें कर रही थी. राजकुमार को देखकर अंशुमति के पिता ने उसे पहचान लिया और कहा कि तुम विदर्भ नगर के राजकुमार हो और तुम्हारा नाम धर्मगुप्त है. 


भगवान शंकर की आज्ञा से हम अपनी कन्या अंशुमति का विवाह तुम्हारे साथ करेंगे. राजकुमार ने स्वीकृति दे दी और उसका विवाह अंशुमति के साथ हो गया. बाद में राजकुमार ने गंधर्व राज विद्रविक की विशाल सेना लेकर विदर्भ पर चढ़ाई कर दी. घमासान युद्ध हुआ. राजकुमार विजयी हुए और स्वयं पत्नी के साथ वहां राज्य करने लगे. उसने ब्राह्मणी को पुत्र सहित महल में अपने साथ रखा, जिससे उनके सभी दुख दूर हो गए. एक दिन अंशुमति ने राजकुमार से पूछा कि यह सब कैसे हुआ. तब राजकुमार ने कहा कि यह सब प्रदोष व्रत के पुण्य का फल है. उसी दिन से प्रदोष व्रत का महत्व और भी बढ़ गया.