Ramayan Story: लंका में सजी महफिल के दौरान हुई ऐसी घटना से घबरा गई मंदोदरी, रामकथा में जानें ये रोचक किस्सा
Ramayan Story In Hindi: लंका में महफिल सजी थी और रावण खूब आंनद के साथ नाच गाना देख रहा था. तभी श्री राम ने उस और एक बाण चलाया, जिससे रावण का छत्र मुकुट और मंदोदरी के कान के बाले गिर गए. जानें इस घटना के बाद कैसा था रावण की प्रतिक्रिया.
Mandodari Explained Vishwaroop of Lord Sri Ram: प्रभु श्री राम ने लंका में सुबेल पर्वत पर अपनी सेना के साथ डेरा डाल दिया जहां युवराज अंगद और हनुमान जी प्रभु की सेवा करने लगे. दक्षिण दिशा की ओर देखने पर जब उन्हें पता लगा कि लंका की चोटी पर स्थिति महल में महफिल सजी है और रावण नाच गाना देख रहा है तो प्रभु ने चमत्कार करने का विचार किया. उन्होंने अपने धनुष से उस ओर साधते हुए एक बाण चलाया जिसने रावण का छत्र मुकुट और मंदोदरी के कान के बाले काट दिए और बाण वापस भी आ गया. लोग इसे अपशकुन मानने लगे. किंतु अभिमानी रावण ने हंसते हुए कहा कि आप लोग भयभीत बिल्कुल भी न हों. सिरों का गिरना भी जिसके लिए शुभ होता रहा है, उसके लिए मुकुट का गिरना कैसे अपशकुन हो सकता है.
रावण से मंदोदरी ने कहा, श्री राम को मनुष्य मानने की भूल न करें
जब से कान के बाले टूट कर गिरे, मंदोदरी सबसे अधिक सोच में पड़ गईं. अनहोनी की आशंका में उनकी आंखों में पानी भर गया. उन्होंने हाथ जोड़कर रावण से प्रार्थना की, हे प्राणनाथ, श्री राम का विरोध छोड़ दीजिए, उन्हें मनुष्य मान कर मन में जिद्द न पकड़े रहिए. मेरी इस बात पर विश्वास कीजिए कि रघुकुल शिरोमणि श्री राम चंद्र विश्वरूप हैं, उनके अंग - अंग में वेद विभिन्न लोकों की कल्पना करते हैं. पाताल उनके चरण हैं और ब्रह्मलोक सिर है. बीच के सभी लोकों का विश्राम उनके अंग अंग में है. सूर्य उनके नेत्र हैं और बादलों के समूह उनके बाल हैं. उनकी भौहों का चलना ही काल है. अश्वनी कुमार उनकी नाक के समान हैं और उनके पलक के खुलने और बंद करने से रात और दिन होते हैं. वेद कहते हैं कि दसों दिशाएं उनके कान हैं, वायु श्वांस है और वेद तो उनकी वाणी में बसते हैं.
मंदोदरी ने की प्रभु श्री राम के विश्वरूप की व्याख्या
लंका की महारानी मंदोदरी ने अपने पति लंका के राजा रावण को प्रभु श्री राम के बारे में और भी विस्तार से बताते हुए कहा कि लोभ उनके होठ हैं तो यमराज भयानक दांत हैं, माया उनकी हंसी है और चौकीदार भुजाएं हैं. अग्नि उनका मुख है और वरुण जीभ है. उत्पत्ति पालन और प्रलय उनकी क्रिया है. अठारह प्रकार की असंख्य वनस्पतियां उनके रोएं हैं, पर्वत हड्डियां और नदियां नसों का जाल है. समुद्र पेट और नरक नीचे की इंद्रियां हैं. इस प्रकार प्रभु विश्वमय हैं, मंदोदरी ने कहा उनके बारे में इससे अधिक कल्पना और क्या की जाए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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