Ramayan Story: श्री राम के दर्शन कर शरभंग ऋषि ने खुद को क्यों जला लिया था, राम कथा में जानें पूरी कहानी
Ramayan Story in Hindi: वनवास के दौरान प्रभु श्री राम अत्रि मुनि के आश्रम से निकल कर शरभंग ऋषि के यहां पहुंचे तो उन्होंने श्री राम से भक्ति मांगते हुए खुद को योगाग्नि से जला लिया. आगे चल कर मुनियों की हड्डियों के ढ़ेर देख कर श्री राम इतना क्रोधित हुए कि उन्होंने पृथ्वी को राक्षसों से मुक्त करने की प्रतिज्ञा कर ली.
Ramayan Story of Burning of Sharbhang Rishi: वनवास के दौरान प्रभु श्री राम अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण तथा उनकी पत्नी अनुसूया जी ने सीता जी को नीति ज्ञान दिया. उनसे विदा लेने के बाद वे आगे चले तो विराध राक्षस ने उनका रास्ता रोक दिया. इस पर श्री राम ने एक ही बाण से उसका वध कर उसके आग्रह पर उसे परमधाम पहुंचा दिया. आगे चलने पर उन्हें शरभंग मुनि के आश्रम मिला तो उनसे आशीर्वाद लेने पहुंच गए. शरभंग ऋषि प्रभु श्री राम को देख कर प्रेम से रोने लगे कि जिसका लंबे समय से इंतजार कर रहे थे, वह श्री रघुनाथ आज स्वयं ही उनके आश्रम में पधारे हैं. इसके बाद ऋषि ने कहा कि वह तो ब्रह्मलोक जा रहे थे तभी जानकारी मिली कि श्री राम वन में आएंगे, उन्होंने आगे कहा कि यहां पर आकर आपने कोई उपकार नहीं किया है बल्कि अपने प्रण की रक्षा की है. मुनि श्री ने योग, यज्ञ, जप और तप आदि देते हुए प्रभु श्री राम से उनकी भक्ति का वरदान लिया और सब प्रकार की आसक्ति छोड़ चिता बना उस पर बैठ गए. उन्होंने श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण जी को प्रणाम करते हुए योगाग्नि से अपने को जला लिया.
प्रभु श्री राम ने पृथ्वी से राक्षसों के समूल नाश की प्रतिज्ञा की
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शरभंग ऋषि को वैकुंठलोक में भेजने के बाद श्री राम आगे बढ़े तो उनके साथ बहुत से ऋषि मुनि भी हो लिए. रास्ते में हड्डियों का ढेर देख मुनियों से इसका कारण पूछा, मुनियों ने कहा आप तो सर्वदर्शी हैं, सब कुछ जानते हुए भी उनसे क्यों पूछ रहे हैं, फिर बताने लगे कि राक्षसों के दलों ने सब मुनियों को खा डाला और हड्डियां यहां छोड़ दी हैं. यह सुनते ही श्री रघुनाथ के नेत्र आंसुओं से भर गए. श्री राम ने उसी समय दोनो भुजाओं को आकाश की ओर उठा कर प्रण किया कि पृथ्वी का राक्षसों से रहित कर दूंगा.
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अगस्त्य मुनि के शिष्य तो दौड़ते हुए प्रभु के दर्शन करने
उसी वन में अगस्त्य मुनि के एक ज्ञानी शिष्य सुतीक्ष्ण का आश्रम था, वे भी श्री राम के भक्त थे और उन्हें सभी देवताओं में श्रेष्ठ मानते थे. उन्हें जैसे ही श्री राम के वन आगमन की सूचना मिली तौ दौड़ते हुए यह सोच कर चल पड़े कि क्या श्री रघुनाथ, जानकी जी और लक्ष्मण जी के साथ उनके जैसे अज्ञानी को दर्शन देंगे अथवा नहीं. इसी बीच उनके मन में विचार आया कि प्रभु तो दया के भंडार हैं, जिसे किसी और का सहारा नहीं होता है, वही उनका प्रिय होता है. यह विचार आते ही सुतीक्ष्ण मुनि आनंदमय हो गए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)