Ramayan Story of Sita ji insulted Ravana: हनुमान जी लंका की अशोक वाटिका में बैठी सीता माता की दशा देख कर बहुत दुखी हुए. वह विचार कर रहे थे कि किस तरह सीता माता को अपना परिचय देकर उन्हें दुख से बाहर लाने का काम करें तभी रावण अपनी दासियों और रानियों के साथ वहां पहुंचा और तरह-तरह से लालच दिया कि सीता माता उनकी बात मान लें. उसने ये भी कहा कि वह सीता जी को महारानी का दर्जा देगा. लेकिन जब सीता माता ने रावण को धिक्कारते हुए कहा कि श्री राम तो सूर्य के समान हैं और वह जुगनू तो रावण ने गुस्से में तलवार निकाल ली और सीता जी की ओर दौड़ा. इस पर सीता माता ने अपनी प्रतिज्ञा करते हुए कहा कि यह उनका प्रण है कि उनके गले में या तो श्याम कमल के समान सुंदर और हाथी की सूड़ के समान विशाल और मजबूत पकड़ वाली श्री राम की भुजा पड़ेगी या फिर तेरी भयानक तलवार.


मंदोदरी ने रोका था रावण को... 


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सीता माता ने रावण की चंद्रहास तलवार को संबोधित करते हुए कहा कि श्री रघुनाथ जी की विरह की अग्नि से उत्पन्न मेरी बड़ी भारी जलन को तू समाप्त कर दे. हे तलवार तू तो शीतल, तीव्र और श्रेष्ठ धारा को बहाती है इस लिए तू मेरे दुख को हर ले. सीता जी के यह वचन सुनते ही रावण उन्हें मारने दौड़ा. तब मय दानव की पुत्री और रावण की पटरानी मंदोदरी ने उसे समझाया. इस स्थिति में रावण ने सभी राक्षसियों को बुलाकर कहा कि सीता जी को तरह तरह से डराने का प्रयास करो ताकि वह मेरी बात मान ले. यदि महीने भर में सीता जी ने उसकी बात नहीं मानी तो फिर मैं तलवार निकाल कर मार दूंगा. इतना कह कर रावण अपने महल की ओर चला गया.


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त्रिजटा ने सभी राक्षसियों को सुनाया अपना सपना 


सीता माता की सुरक्षा में तैनात तमाम राक्षसियों में से एक त्रिजटा नाम की राक्षसी भी थी. श्री राम जी के प्रति उसकी अगाध श्रद्धा थी, और वह अन्य सबकी अपेक्षा अधिक ज्ञानी और विवेकशील थी. उसने सबको बुला कर स्वयं द्वारा देखा हुआ सपना सुनाते हुए कहा कि सीता माता की सेवा करके हम सब लोग अपना कल्याण कर सकते हैं. उसने अपना सपना बताया कि कैसे एक बंदर ने पूरी लंका को जला दिया है. राक्षसों की सारी सेना मार दी गई है और रावण नग्न खड़ा हुआ एक गधे पर सवार है, उसके सिर का मुंडन करा दिया गया है और उसकी बीसों भुजाएं कटी हुई हैं. इस हालत में वह यमपुरी की ओर जा रहा है और लंका का राजपाट विभीषण जी के पास आ गया है. नगर में चारो ओर श्री रामचंद्र जी की जय जय कार होने लगी तब प्रभु ने सीता जी को बुलवाया.