Jagannath Bhagwan: कसाई के प्यार में महिला ने पति का वध कर दिया... जगन्नाथ भगवान के भक्त की अद्भुत कथा
Sadan Kasai Katha Part-2: सदन कसाई की किस्मत अचानक बदल जाती है. मांस बेचने वाला वह शख्स जगन्नाथ महाप्रभु (Jagannath Puri) के दर्शन के लिए निकल पड़ता है. रास्ते में एक महिला उसे चाहने लगती है. वह उसके साथ शादी करना चाहती थी. फिर अचानक कुछ ऐसा होता है कि सदन कसाई के दोनों हाथ काट दिए जाते हैं. फिर भी वह पुरी कैसे पहुंचता है और आखिर में उसके लिए पालकी क्यों आती है. पढ़िए पूरी कथा.
Indresh Ji Maharaj Sadan Kasai Katha: सदन कसाई की जिंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी. वह मांस बेचने वाला अब भगवान महाप्रभु (जगन्नाथ भगवान) के दर्शन करने के लिए निकल पड़ा. रास्ते में शाम हो गई तो वह एक घर के पास रुका. उस घर में एक सुंदर स्त्री रहती थी. वह सदन को देखकर उसे चाहने लगी. उसने घर के भीतर आने का इशारा किया. हालांकि सदन के मन में कोई गलत भावना नहीं थी. उन्होंने हाथ से शादीशुदा महिला को जाने का इशारा किया लेकिन महिला ने ऐसा समझा कि वह कहना चाह रहे कि तुम भीतर जाकर पहले अपने पति का वध करो, तब मैं तुम्हारे साथ रहूंगा.
मैंने अपने पति का वध...
इंद्रेश जी महाराज यह कथा सुनाते हुए कहते हैं कि महिला का विवेक शून्य हो गया था और उसने भीतर जाकर अपने पति को मार डाला. बाहर आकर सदन कसाई से वह बोली- मैंने अपने पति का वध कर दिया है, चलो अब हम ब्याह कर लेते हैं. कसाई चौंक गया. उसने कहा कि देवी, मैंने तो मारने के लिए नहीं कहा था. महिला बोली कि तुम झूठ बोलते हो. अब तुम्हारे पास एक ही रास्ता है, मेरे साथ ब्याह करो नहीं तो मैं सबसे कह दूंगी तुमने मेरे पति को मरवाया है.
कसाई ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा मुझे मौत मिलेगी, बदनामी होगी लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता. उन्होंने महिला के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. आखिरकार महिला ने शोर करके लोगों को जुटा लिया और बोली कि मेरे पति को इसने मरवा दिया. सदन कसाई को बंदी बनाकर राजा के सामने पेश किया गया.
सदन से कहा गया कि आप स्वीकार करते हैं कि आपने हत्या की? सदन कसाई कुछ नहीं बोला. वह सोचते रह गया कि मैं क्या कहूंगा. वह बस मुस्कुराता रहा. सोचा मैं कहूं कि मैंने नहीं किया तो मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है. मैं तो जगन्नाथ जी का दर्शन करने के लिए निकला था, उसने विनती की कि बस मुझे मृत्युदंड मत दीजिएगा. राजा ने सदन कसाई के दोनों हाथों को काटने का आदेश दे दिया.
जैसे मेरे स्वामी वैसा मैं
सदन कसाई बोला कि मैंने कथा में सुना है कि श्री जगन्नाथ जी की भी भुजा नहीं है, लो काट दो. यह कहकर उसने हाथ आगे कर दिए. जैसे मेरे स्वामी, वैसा मैं.
सदन कसाई के आंसू तो निकल रहे थे लेकिन वह खुश थे कि नाथ, आपने किसी तरह से मुझे स्वीकार तो किया. खून निकल रहे थे. रास्ते में वह प्रार्थना करते जा रहे थे कि प्रभु शरीर में इतना रक्त बचने देना कि आपके दर्शन के लिए जगन्नाथ पुरी पहुंच सकूं. उससे पहले मेरे प्राण न निकल जाएं.
भगवान ने पालकी भिजवाई लेकिन...
जैसे ही परिसर में कसाई ने प्रवेश किया. ब्रह्मवेदी पर श्री जगन्नाथ जी झूमने लगे. पुजारियों ने पूछा कि प्रभु आप इतने प्रसन्न क्यों हैं? भगवन बोले- मेरा एक भक्त आया है. वो बेचारा बहुत कष्ट में है. आप लोग पालकी लेकर जाइए और उसे लेकर आइए यहां पर. पुजारी पालकी लेकर दौड़े. पुरी में प्रवेश कर रहे लोगों से पूछने लगे- अरे भैया, महाप्रभु जी का कोई भक्त आया है क्या, प्रभु ने पालकी भेजी है उसे ले जाने के लिए.
सदन कसाई ने जैसे ही सुना. वह खुश हो गए और सोचने लगे कि आज महाप्रभु के साथ उनके प्रिय भक्त के भी दर्शन हो जाएंगे. महाप्रभु जी प्रसन्न हैं और ऐसे में मैं दर्शन करूंगा और वह मेरे सारे अपराध माफ कर देंगे.
पालकी के पास भीड़ लग गई. सब कहने लगे कि मैं हूं सबसे बड़ा भक्त. पुजारी परेशान होकर खाली पालकी लेकर लौट आए. प्रभु बोले, खाली आ गए. पुजारियों ने समस्या बतलाई. फिर बोले कि आप कोई संकेत बताइए. प्रभु की आंखें नम हो गईं. बोले- मेरी तरह उसके भी हाथ नहीं हैं, जो आया है. जाओ उसे लेकर आओ.
सदन को देख रोने लगे पुजारी
पुजारी पालकी लेकर दोबारा गए. वहां देखा कि सदन कसाई दंडवत लेटकर आगे बढ़ रहे थे. भुजा नहीं है, खून बह रहा है यह देखकर लोगों का मन द्रवित हो गया. किसी से सहायता भी नहीं लेते हैं. जिस रास्ते से सब चल रहे थे उससे दूर वह चल रहे थे. पुजारी भी रोने लगे.
पुजारियों ने सदन कसाई को उठाया और बोले- चलो भाई, महाप्रभु जी ने आपके लिए पालकी भेजी है. सदन कसाई बोले- नहीं, आपको कोई गलत सूचना मिल गई. मैं वो भक्त नहीं हूं. पुजारी बोले, नहीं तुम ही हो. सदन बोले कि मैं पालकी में बैठा तो अभी प्राण निकल जाएंगे मेरे. मैं आपके साथ चल देता हूं. वह चलने लगे. जैसे ही सिंहद्वार पर पहुंचे, भगवान की तरफ देखा और दंडवत किया. पहली बार कसाई को ग्लानि हुई कि काश मेरे हाथ होते तो मैं दोनों हाथों को आगे कर दंडवत करता.
यह सोचकर जैसे ही वह अपनी कटी भुजा को आगे करते हैं, उनकी पूरी भुजा निकलकर बाहर आ जाती है. ठाकुर जी ने उन्हें स्वीकार कर आशीर्वाद दिया. (फोटो- Lexica AI)
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