Offering Jal to Lord Shiva: श्रावण मास भगवान भोलेशंकर जी का महीना है. इस महीने में नित्य प्रति शिवजी आराधना, शिवलिंग पर न्यूनतम जलाभिषेक, शिवपुराण का पाठ आदि बताया गया है. सृष्टि के आरंभ में सबसे पहले जल की की रचना हुई. यह जल ही शिवजी की आदि मूर्ति है. वैसे महादेव की सात प्रत्यक्ष मूर्तियां कही गई हैं. इनमें से किसी एक से भी ध्यान लगा लें और उसका आदर, सत्कार, पूजा, नमस्कार करें तो भी शिवजी की साक्षात पूजा न करने पर भी शिव पूजा का फल प्राप्त होता है. 


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प्रथम मूर्ति


प्रथम मूर्ति जल है. अतः जल और जल के स्रोतों का आदर करने के साथ ही सदुपयोग करना चाहिए. 


दूसरी मूर्ति 


दूसरी  मूर्ति अग्नि है. इसका निरादर नहीं करना चाहिए. हवन, यज्ञ आदि करना चाहिए और जहां पर हवन आदि होता हो, वहां बाधा न पंहुचाकर नमस्कार करना भी शिवपूजा है.


तीसरी मूर्ति


तीसरी मूर्ति अन्न है. अतः भोजन की थाली में अन्य एक भी दाना नहीं छोड़ना चाहिए. अन्न का दान सहयोग करना, मिल-बांटकर खाना शिव पूजा का तीसरा सरल रूप है. कालिका पुराण में कहा गया है कि अन्न का निरादर करने वाले का पारिवारिक जीवन कष्टमय रहता है और उसकी संतान ही उसे कष्ट देती है.


चौथी मूर्ति


चौथी मूर्ति पूजा, अर्चना या इबादत करना है. यज्ञ, पूजा, प्रार्थना करते हुए व्यक्ति को कष्ट न पंहुचाना. ऐसे भक्तों का यथाशक्ति आदर सत्कार करना. कुछ न दे सकें, तब भी कम से कम उनके प्रति मधुर वचन बोलना भी शिवपूजा है.


पांचवीं मूर्ति


पांचवीं मूर्ति सूर्य है. अतः दोनों संध्या के समय कुछ पूजा करना, न खाना, न सोना, सत्य, मधुर बोलना, पहले से ही तीखी बहस चल रही हो तो क्षणभर का विश्राम ले लेना और रोजाना सूर्य देव को प्रणाम करना भी शिवपूजन है.


छठी मूर्ति


छठी मूर्ति शब्द है. शास्त्र कहता है कि संसार में कोई भी शब्द ऐसा नहीं है, जिसमें मंत्र बनने की ताकत न हो. अतः नाप तोलकर न बोलना, बेकार बकवास करना, कटु, अप्रिय और झूठ बोलना, झूठे आरोप लगाना या झूठी गवाही देना. शब्दों के साथ जालसाजी करने से शब्द ब्रह्म या शब्द रूप भगवान शिव का निरादर होता है.


सातवीं मूर्ति


सातवीं मूर्ति सर्वबीज प्रकृति और सबके भीतर घट-घट वासी प्राण हैं. किसी भी रूप में जीवनदान, जीवन रक्षा, प्रकृति के खजाने की सुरक्षा सदुपयोग, आग, पानी, धरती, हवा को प्रदूषित न करना और प्राणियों की निःस्वार्थ सेवा भी शिवपूजा ही है.


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