Shiv ji ke gale me naag kyu hai: भगवान शिव को महादेव, शंकर, नीलकंठ समेत कई नामों से जाना जाता है. भोलेनाथ को शांति, समृद्धि और ज्ञान का दाता माना जाता है. कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति भगवान शिव की विधि विधान से पूजा करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है और सुख-शांति जीवन में वास करती है. मान्यता है कि भोलेनाथ को केवल एक लोटा जल और बेलपत्र से ही प्रसन्न किया जा सकता है. महाशिवरात्रि, शिवरात्रि, सावन जैसे पर्व देवों के देव महादेव को समर्पित होते हैं. इसके अलावा सोमवार के दिन भी भोलेनाथ की पूजा करना शुभ माना जाता है.


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भगवान शिव के गले में क्यों रहते हैं नाग?
भगवान शिव को अक्सर ध्यान में लीन, सांपों से लिपटे हुए और बैल नंदी पर सवार चित्रित किया जाता है. उनके गले में नीला कंठ होता है. क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के गले में हमेशा सांप को क्यों लिपटा रहता है? इसके अलावा जहां पर भी शिवलिंग होता है वहां भी नाग देवता विराजमान किए जाते हैं. इसके पीछे का क्या कारण है? आइए जानते हैं इसका रहस्य और पौराणिक कथा.


 


पढ़ें पौराणिक कथा
प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार नागराज वासुकी जिन्हें नागों का देवता कहा जाता है वे देवों के देव महादेव के परम भक्त थे. जब समुद्र मंथन हो रहा था नागराज वासुकि को रस्सी के रूप में मेरू पर्वत के चारों ओर लपेटकर इस्तेमाल किया गया था. एक तरफ से नागराज वासुकि को देवताओं ने और दूसरी तरफ असुरों ने पकड़ा था. इसके बाद समुंद्र मंथन में से कई चीजें उत्पन्न हुईं जो असुरों और देवताओं ने लेली थी. इनके अलावा समुंद्र मंथन से विष भी निकला था. संसार को बचाने के लिए भगवान शिव ने इस विष को ग्रहण कर लिया लेकिन गले से नीचे नहीं उतारा था. इससे उनका गला नीला पड़ गया था, जिसके बाद उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाता है. 


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भक्ति से प्रसन्न हुए भगवान शिव
समुंद्र मंथन के दौरान नागों के देवता नागराज वासुकी बुरी तरह से लहुलुहान हो गए थे. इसके बाद उनकी भक्ति से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने उन्हें गले में स्थान दे दिया था. इसके बाद से भगवान शिव के गले पर नाग देवता लिपटे रहते हैं.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)