Shiv Parvati Vivah Katha: शुभ समय अब आ चुका था, जब स्वर्ग से लेकर पाताल तक खुशियां मनाई जा रही थीं. अप्सराएं नृत्य, ढोल नगाडे और शंखों की गूंज से सभी का रोम-रोम प्रसन्नता से प्रफुल्लित हो रहा था. शिवजी दूल्हा बनकर चले. सभी भगवान और देवता भी अपने-अपने विमानों से सज-धजकर हिमालय राज के घर पहुंच गए. सभी लोगों को चलते हुए देखकर विष्णु जी ने हंसते हुए कहा कि सभी लोग अपने-अपने दलों के साथ अलग-अलग होकर चलो. क्या दूसरे के घर पर जाकर अपनी हंसी कराओगे. 


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भगवान विष्णु की बात सुनकर सब देवता भी मुस्कुराने लगे और अपनी अपनी सेना लेकर अलग हो गए. इस पर महादेव भी मन ही मन मुस्कुराने लगे कि ये विष्णु जी भी मजाक करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. इस पर शिवजी ने भी अपने सहयोगी को भेजकर सभी गणों को बुलाने के लिए कह दिया.


रामचरित मानस के बाल कांड में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि इतना सुनते ही उनके गण तरह-तरह की सवारियों के साथ उपस्थित हो गए और तरह-तरह के वेश वालों को देखकर स्वयं शिवजी की भी मुस्कुराने लगे. किसी के कई मुख तो कोई बिना मुख का था. किसी के बहुत सारी आंखे तो कोई बिना नेत्र वाला था. कोई बिना हाथ-पैर तो कुछ लोग कई हाथ-पैर वाले भी थे. 


कोई बहुत ही दुबला-पतला तो कोई बहुत ही मोटा ताजा था. भयंकर गहने पहने, हाथों में कपाल लिए और शरीर में ताजा खून लपेटे हुए था. कुछ के मुंह गधे, कुत्ते, सूअर और सियार जैसे थे. प्रेत-पिशाच आदि भी सभी उपस्थित थे और अपने स्वामी के विवाह समारोह में शामिल होने से अत्यधिक प्रसन्न थे. प्रसन्नता में वह पूरी मस्ती में नाचते-गाते हुए चल रहे थे. अब पूरी बारात में एकरूपता दिख रही थी, क्योंकि जैसा दूल्हा और उनके परिधान थे, उसी के अनुरूप बारात भी थी.


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