Shivling Abhishek Niyam: भगवान शिव की उपासना से हर प्रकार के मनवांछित फल प्राप्त होते हैं, ऐसा धर्म-ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. कहते हैं कि भगवान शिव सिर्फ एक लोटा जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं. इसलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है. सनातन धर्म में हर देवी-देवता के जुड़े खास पूजन-पद्धतियों का जिक्र किया गया है. शास्त्रों में भगवान शिव को जल अर्पित करने के लिए भी कुछ खास नियम बताए गए हैं. शिवलिंग पर जल अर्पित करने के लिए कुछ नियमों का विशेष ध्यान रखना होता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि भगवान शिव को कब-कब जल नहीं चढ़ाना चाहिए और इससे जुड़े खास नियम क्या हैं. 


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कब-कब नहीं चढ़ाना चाहिए शिवलिंग पर जल?


शिवपुराण के मुताबिक, सूर्यास्त या उसके बाद का समय शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए उचित नहीं माना गया है. सूर्यास्त के बाद शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल विष के समान माना गया है. इसके अलावा जब शिवलिंग का महाश्रृंगार हो जाए तो उसके बाद भी उस पर जल नहीं चढ़ाना चाहिए. मान्यता है कि इससे भोलेनाथ रुष्ट हो सकते हैं. 


दोपहर के समय भी शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ाना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि धर्म-शास्त्रों में इसे उचित नहीं माना गया है. सनातन धर्म शास्त्रों में इस बात का जिक्र है कि भगवान सूर्य का समस्त तेज शिवलिंग में समाहित है. इसलिए, शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल सूर्य को साक्षी माना जाता है. सूर्यास्त या उसके बाद शिवलिंग पर अर्पित किया हुआ जल सूर्य देव के साक्ष्य में नहीं माना जाता. ऐसे में इस दौरान शिवलिंग पर जल अर्पित करने का कोई लाभ नहीं मिलता है. 


शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए सबसे शुभ समय क्या है


शास्त्रों के मुताबिक, ब्रह्ममुहूर्त का समय सूर्य देव को जल अर्पित करने के लिए सबसे शुभ है. इस दौरान शिवलिंग पर जल अर्पित करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. साथ ही शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. 


शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए 3 धातु हैं सबसे शुभ


लिंग पुराण के अनुसार, शिवलिंग पर जल अर्पित करने के लिए सोना, चांदी और तांबे के बर्तन सबसे शुभ माने गए हैं. इन तीन धातु के पात्रों के अलावा किसी अन्य धातु के पात्र से शिवलिंग पर जल चढ़ाना शुभ नहीं माना गया है. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)