Surya Grahan Mystery: क्या धधकता सूर्य अब बुझने वाला है? सूर्यरथ के ‘7 घोड़ों’ का कोड अब विज्ञान से होने जा रहा डिकोड! धरती के ‘प्राण दाता’ के खुलेंगे राज
Mystery of solar eclipse (वरुण भसीन): क्या धधकता हुआ सूर्य अब बुझने वाला है. सूर्यरथ के 7 घोड़ों का कोड अब विज्ञान से डिकोड होने जा रहा है. इसके लिए वैज्ञानिक अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं.
Surya Grahan Mystery in Hindi: सूर्य को हमारे वैदिक ग्रंथों में देव तत्व कहा जाता है. यानी सूर्य की मान्यता ईश्वर के बराबर है. आधुनिक विज्ञान से हजारों से पहले ही हमारे ऋषि मनीषियों ने वैदिक अनुसंधानों के जरिए ये जान लिया था- पूरी सृष्टि में सूर्य रौशनी और उर्जा का इकलौता केन्द्र है. वेदों में इस बात का भी जिक्र है, रौशनी के सात घोड़ों पर सवार देवता सूर्य का मूल रंग सफेद है. लेकिन वो सूर्य हमें सुनहरा क्यों दिखाई देता है? ये सवाल नया नहीं है, लेकिन इस सवाल का जवाब सूर्य के और भी बड़े रहस्यों का दरवाजा खोलता है. आज की स्पेशल रिपोर्ट में हमने समझने की कोशिश की है, कि क्या सूर्य का संपूर्ण रहस्य वैज्ञानिकों के नए प्रयास से खुल जाएगा, जिसके तहत सूर्य पर आर्टिफिशियल एकलिप्स, यानी कृत्रिम सूर्य ग्रहण की तैयारी की गई है.
"चक्षो सूर्यो जायतः"
-ईश्वर का नेत्र हैं सूर्य- यजुर्वेद
दुनिया के सबसे पुराने ग्रंथ, हमारे 4 वेदों का पूरा ज्ञान ईश्वर का नेत्र, यानी सूर्य की तरह रौशन है. यहां नेत्र का मतलब सिर्फ आंखे नहीं, बल्कि वैदिक विधानों में नेत्र का मतलब है ज्योति का पूंज, उर्जा का श्रोत और ईश्वर यानी वो अद्वैत, जिसे वेदों में विराट ब्रह्म कहा गया है. सूर्य उसी विराट ब्रह्म का नेत्र है, जिससे पूरी धरा पर जीव जगत का अस्तित्व है.
सूर्य ग्रहण पर शोध करने वाले वैज्ञानिक भी हैरान
अगर ये सूर्य नहीं होता, तो क्या होता? इसकी एक झलक मिलती है ग्रहण के दौरान, जब कुछ देर के लिए सूर्य एक कुदरती कालचक्र के तहत कुछ देर के लिए ओझल हो जाता है. आप में से कितने लोगों ने पूर्ण सूर्यग्रहण का ये नजारा देखा है? अगर देखा है, तो क्या ये महसूस किया है, ग्रहण की इस स्थिति में धरती के जीव जगत में कैसी हलचल होती है?
सूर्य ग्रहण पर शोध करने वाले वैज्ञानिक भी ये देखकर हैरान रह जाते हैं, कि पूर्ण ग्रहण के दौरान सूर्य के लुप्त होने की इस अद्भुत स्थिति विलक्षण गतिविधियां चारों तरफ दिखाई देती हैं. ऐस लगता है, जैसे हमारे अस्तित्व से ईश्वर का अंश कुछ देर के लिए हट गया. वही ईश्वर, जिसका जिक्र हमारे वेदों में मिलता है.
ययुर्वेद में श्रुति कहती है, चंद्रमा मनसोजात सूर्यो वजायतः...सूर्य विराट ब्रह्म के नेत्रों से पैदा हुए हैं. नेत्र यानी ज्योति, नेत्र यानी प्राण, एकाग्रता. शास्त्रों में सूर्य को एकाग्रता का प्रतीक माना गया है. यानी कुछ देर के लिए ही सही, सूर्य नहीं पूरा चित्त बिचलित. आखिर ग्रहण के दौरान ऐसा क्या होता है?
ग्रहण के दौरान सूर्य में क्या होते हैं रहस्यमयी बदलाव?
सूर्यग्रहण का जिक्र हर वैदिक युग समेत सभी सभ्यताओं में मिलता है, जब पूर्ण ग्रहण के दौरान सूर्य का सिर्फ बाहरी किनारा दिखता है. इसे ही कोरोना कहा जाता है. कोरोना यानी सूर्य का बाहरी हिस्सा, जिसे पश्चिमी सभ्यताओं में रिंग ऑफ गॉड कहा गया, तो हमारे वेदों में ईश्वरीय नेत्र का अंतिम सत्य. लेकिन इसकी वैज्ञानिक जानकारी एक सीमा के बाद आज भी मौजूद नहीं.
जो भारत की प्राचीन संस्कृति थी वो नक्षत्रों से जाने क्या क्या निकाल ले जाते थे, तो दूसरी तरफ अब साइंस भी सूर्य को आर्टिफिशल एकलिप्स के जरिए समझने की कोशश कर रहा है. ऐसी ही एक कोशिश है यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने, जिसके प्रोब रॉकेट के लिए लॉन्चिंग पैड और वेहिकल भारत की स्पेस एजेंसी इसरो ने तैयार किया.
सूर्य पर ‘कृत्रिम ग्रहण’ की तैयारी, सुलझाएगी रहस्यमयी ‘सूर्य पहेली’?
सूर्य के बाहरी वातावरण, जिसे कोरोना कहा जाता है, उसे सूर्य ग्रहण के दौरान ही समझ सकते हैं. ये जो सेटेलाइट है वो सूर्यग्रहर की आर्टिफिशिल स्थिति क्रियेट करेगा. सूर्य पर कृत्रिम ग्रहण लगाने की ये पहली कोशिश है. वैज्ञानिकों की स्पेशल टीम ने 5 दिसंबर से ही इस दिशा में कदम आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है, जब यूरोपियन एजेंसी के दोनों प्रोब लॉन्च किए गए. लेकिन सूर्य पर कृत्रिम ग्रहण? आखिर ये कितना चुनौती पूर्ण होगा? ये सवाल वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी पहेली बनी हुई है.
वैज्ञानिकों के सामने बड़ी पहेली खुद सूर्य का आकार है. इसका अभी तक अनुमान लगाया गया है. इसके मुताबिक सूर्य का व्यास 13 लाख 91 हजार किलोमीटर है. यानी पृथ्वी के व्यास से 109 गुना बड़ा. सूर्य इतना बड़ा है कि वैज्ञानिक अनुमानों के मुताबिक इसमें पृथ्वी जितने बड़े 13 लाख ग्रह समा सकते हैं. इससे बड़ा रहस्य है सूर्य के गुरुत्वाकर्षण का. इसके बारे में साइंटिफिक रिसर्च के मुताबिक सूर्य अपने से 20 लाख किलोमीटर दूर किसी भी चीज को अपने अंदर खींच सकता है. तो फिर सवाल है, कि यूरोपियन एजेंसी का प्रोब रॉकेट कितने दूर से सूर्य के सबसे रहस्यमयी क्षेत्र का अध्ययन करेगा? और इतने बड़े सूर्य पर ग्रहण कैसे लगाएगा?
बिना ग्रहण के नहीं देख सकते सूर्य का बाहरी हिस्सा
सूर्य ग्रहण अपने आप में धरती के लिए जितनी दुर्लभ घटना है, उतना ही रहस्यमयी भी क्योंकि सूर्य की चमक इतनी होती है, कि बिना ग्रहण के वो हिस्सा देख ही नहीं सकते. वो हिस्सा है कोरोना. यानी सूर्य का बाहरी मंडल.
सूर्य के बारे में इन दो तथ्यों से आप अंदाजा लगा सकते हैं, कि कोरोना ना सिर्फ दृर्लभ दृश्य है, बल्कि अपनी बनावट और तापमान में वेरिएशन, यानी विविधता की वजह से रहस्यमयी है. इसे समझने के लिए जरूरी है पूर्ण सूर्य ग्रहण की स्थिति. लेकिन ये इतना दुर्लभ है, कि धरती के एक हिस्से में पूर्ण सूर्यग्रहण और पूर्ण कोरोना पौने चार सौ साल बाद ही दिखाई देता है.
और जब तक इस कोरोना का पूरा अध्ययन हमारे सामने नहीं होता, सूर्य के भीतरी रहस्यों से परदा नहीं हटेगा. सूर्य का जो टेंपरेचर है वो वैज्ञानिकों के लिए जिज्ञासा का विषय है. क्योंकि कोर से लेकर कोरोना तक टेंपरेचर बहुत वैरी करता है. यही जिज्ञासा इंसानों को सूर्य को समझने के लिए प्रेरित करती है. सूर्य के इसी रहस्य को समझने के लिए यूरोपियन एजेंसी के दोनों प्रोब यान पूर्ण ग्रहण को रीक्रियेट करने की तैयारी में हैं. लेकिन कितनी दूरी से और कैसे, पहले इसे समझते हैं.
सूर्य पर कैसे लगेगा कृत्रिम ग्रहण?
सेटेलाइट-1 धरती से ऊपर
क्रोनोग्राफ 60,000 किमी
सेटेलाइट-2 दोनों प्रोब सेटेलाइट
ऑक्ल्टर 150 मीटर की दूरी पर
ग्रहण के दौरान क्यों दी जाती है चेतावनी?
जैसा कि आप ग्राफिक्स इमेज में देख रहे हैं, यूरोपियन एजेंसी के दो प्रोब यान- ऑकल्टर और क्रोनोग्राफ धरती से ऊपर 60,000 किलोमीटर दूर स्थापित किए गए हैं. दोनों के बीच डेढ़ सौ मीटर की दूरी है. ये दोनों प्रोब सूर्य की सीधी रेखा में हैं. इसमें जो कोरोनाग्राफ यान है, ये खास तकनीक के जरिए सूर्य की रौशनी को ब्लॉक करेगा, जिसकी वजह से कोरोना को देख पाना संभव हो पाएगा.
इसे आसान भाषा और दृश्य में समझें, तो सूर्य की तरफ भेजे गए दोनों प्रोब यान कुछ ऐसे काम करेंगे, जैसे आप सूर्य की तरफ अंगूठे को आगे करके, उसके क्लोज शॉट्स में सूर्य की किरणों को रोकने की कोशिश करते हैं. यूरोपियन एजेंसी के प्रोब यान इसी तरह के दृश्य अंतरिक्ष में क्रियेट करेंगे, जिससे उस कोरोना को देखना आसान हो जाएगा, जिसकी चमक ग्रहण के दौरान इतनी तेज होती है, कि नंगी आंखों से देखने पर इंसान अंधेपन का शिकार हो जाता है.
अगर आपको याद हो, तो तिहाई या चौथाई अंश वाले सूर्यग्रहण के दौरान ये चेतावनी बार बार दी जाती है कि इसे आप सीधी आंखों से नहीं देखें. इसकी वजह से कोरोना का रहस्यमी तापमान, जो 30 लाख डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. ये भी एक अनुमानित गणना है, क्योंकि इतना ताप नापने का कोई यंत्र अभी तक धरती पर नहीं बना. बस इसकी चमक के आधार पर सटीक आकलन किया जाता है.
आग का दहकता गोला है सूर्य
दरअसल सूर्य अपने आप में दहकता गैसीय गोला है, जो विघटन की क्रिया से लगातार गुजरता है. इसी की वजह से ये हमेशा ज्वलनशील अवस्था में रहता है. सूर्य का पूरा ताप इस प्रक्रिया में रहस्ययी तरीके से घटता बढ़ता रहता है. सूर्य की सतह का ताप 600 डिग्री C, सूर्य के केन्द्र का ताप 1.5 करोड़ डिग्री C और सूर्य का बाहरी ताप 10 से 30 लाख डिग्री C होता है.
सूर्य के तापमान में इसी रहस्यमयी अंतर को आज का विज्ञान समझने की कोशिश कर रहा है. लेकिन हमरे वैदिक मनीषियों ने आज के विज्ञान से ज्यादा आकलन हजारों वर्ष पहले ही कर लिया था. सूर्य को देवता, भगवान माना गया, जब तकनीकी विज्ञान विकसित नहीं था. तब भी मानव को सूर्य की गरिमा का महत्व मालूम था. सूर्य का प्रकाश, उसकी उर्जा से पूरी पृथ्वी पर जीव बनस्पति पुष्पित हो रहे थे.
हमारे यहां सूर्य की उम्र 4.5 अरब साल बताई गई है. 14 मनवंतर के बाद एक सूर्य परिवर्तित होता है. तो सूर्य प्राण देवता है, अभी येअस्त नहीं होने वाला, तो इसकी (कृत्रिम सूर्य) की आवश्यकता नहीं थी. जैसा कि वैदिक रिसर्च के एक विशेषज्ञ ने बताया, सूर्य कभी खत्म नहीं होने वाला. इसकी वजह है वेदों में 8 सूर्य का कॉन्सेप्ट, जिनका उदय एक के बाद एक पूरे कल्प यानी ब्रह्मांड की उम्र के दौरान होता रहेगा. इसमें मौजूदा सूर्य को कश्यप सूर्य का नाम दिया गया है, जिसकी उम्र 4.5 अरब साल बताई गई है.
क्या सूरज किसी दिन बुझ जाएगा?
सूर्य की तकरीबन यही उम्र वैज्ञानिक गणना भी बताती है, लेकिन वेदों और आज के विज्ञान, दोनों में ये भी जिक्र है, कि सूर्य गैसों और कुछ खास धातुओं से बना है, जो उसकी अथाह उर्जा में ईंधन का काम करते हैं. तो क्या सूर्य का ये ईंधन कभी किसी काल में खत्म हो जाएगा, क्या सूरज बुझ जाएगा...? तो फिर धरती का क्या होगा. जिस एक सौरमंडल को मौजूद विज्ञान ने खोजा, उसके जीवनदाता सूर्य को पहले भारतीय वैदिक नजरिए से समझिए.
स्पत दिशो नानासूर्याः
देवा आदित्या ये सप्तः
-ऋगवेद (9.114.3)
सूर्य के अस्तित्व पर दुनिया के सबसे पुराने ग्रंथ ऋगवेद का ये श्लोक बताता है, सूर्य एक नहीं, ब्रह्मांड की 7 दिशाओं में 7 सूर्य और उनका पूरा मंडल है. लेकिन विज्ञान अभी एक में ही जीवन की तलाश कर पाया है. हमारे यहां आठ सूर्यों का वर्णन है. (श्लोक पढता है) 7 घोड़ों के रथ पर वो आरुढ़ हैं. हमारी वैदिक विधि कहती है, सूर्य स्थिर है, अपनी जगह घूमता है.
जी हां, सूर्य दिखने में स्थिर है, लेकिन वो अपनी जगह घूमते हुए आकाशगंगा की परिक्रमा करता है. आकाशगंगा में सूर् एक सेकेंड में 220 किलोमीटर की दूरी तय करता है. ये ठीक वैसे ही है, जैसे धरती सूर्य की परिक्रमा करती है. ये जानकारी वैदिक ग्रंथो में लिखित है. सफेद है सूर्य का प्रकाश मंडल धरती पर 8.20m में आती है किरण!
अथाह ऊर्जा से भरा हुआ है सूर्य
वैदिक गणना के मुताबिक सूर्यरथ के 7 घोड़े धरती पर उतरने वाली सूर्य किरण के 7 रंगों के प्रतीक है. आज विज्ञान भी ये मानता है, कि सूर्य अथाह उर्जा की वजह से इतना चमकीला है कि वो सफेद दिखता है. लेकिन लेकिन धरती पर आते आते उसकी किरणें 7 रंगों में बदल जाती है. वेदों में बकायदा हर किरण के नाम भी दिए गए हैं.
सूर्यरथ के 7 घोड़े, 7 किरणों के प्रतीक
1- सुषुम्णा
2- सुरादना
3-उदन्वसु
4-विश्वकर्मा
5-उदावसु
6-विश्वव्यचा (और)
7-हरिकेश
बहुत रहस्यमयी है सूर्य की संरचना
धरती पर 7 जीवनदायनी किरणों वाले सूर्य की संरचना भी रहस्यमयी है. लेकिन उसकी संरचना के बारे में इसी ऋगवेद की एक ऋचा और भी बहुत कुछ बता जाती है, जिसका आकलन करने में में विज्ञान को शहस्त्राब्दियां लगी.
शकमयं, धूमम्, अराद् अपश्यम
विषुवता पर एनावरेण
ऋगवेद (1.164.43)
नैट (ऋग्वेद और सूर्य...)
किन-किन चीजों से बना सूर्य?
ऋग्वेद के मुताबिक सूर्य के चारों और और दूर दूर तक धूल और गैस फैली हुई है, इसमें गंधक जैसी कुछ ज्वलनशील धातु भी है, जिनके जलने से अथाह ऊर्जा का संचार होता है. इसे लेकर जो वैज्ञानिक रिसर्च हुए, उसके मुताबिक
गैस धातु
हाइड्रोजन- 71% लोहा, सिलिकॉन,
हीलियम- 26.5% मैग्निशियम, सल्फर- 0.5%
कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन- 1.5%
हाइड्रोजन और हीलियम से निकलती हैं गर्म गैसें
सूर्य की संरचना में सबसे ज्यादा हाइड्रोजन और हीलियम है. इसके बाद कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन की भी मात्रा है. इन गैसों के अलावा लोहा, सिलिकॉन, मैनिशियम और सल्फर भी है. लेकिन इन सभी गैसों और धातुओं का फ्यूजन किस पैटर्न पर होता है कि सूर्य के कोर से लेकर कोरोना तक तापमान एक जैसा नहीं रहता.?
इसे समझने के लिए सूर्य की धरातल पर उतरना तो कभी मुमकिन होगा नहीं, हो सकता है, सूर्य के कोरोना क्षेत्र की स्टडी ही कुछ ऐसे रहस्यों का खुलासा कर दे, जो आज तक इंसानों के सामने पहेली है.