Tatiya Vrindavan: उत्तर प्रदेश की ऐसी जगह जहां अब तक नहीं आया कलियुग, कारण भी जान लें
Tatiya Sthan Vrindavan: उत्तर प्रदेश में एक ऐसी जगह है जहां अब तक कलयुग नहीं आया है. यहां का माहौल तेजी से आगे बढ़ रही दुनिया से बेहद अलग है. लोग शांति और सुकून की तलाश में यहां आते हैं.
Tatiya Sthan History in Hindi: भागती-दौड़ती जिंदगी में सुकून के पल पाने के लिए लोग प्रकृति के बीच समय गुजारने जाते हैं. धार्मिक और अध्यात्मिक स्थानों पर जाते हैं. आज हम एक ऐसे स्थान के बारे में जानते हैं जिसके बारे में अधिकांश लोग नहीं जानते हैं. साथ ही सुकून-शांति पाने के लिए यह जगह बहुत ही अच्छी है. कहा जाता है कि यह ऐसा स्थान है जहां अब तक कलयुग नहीं आया है. यह स्थान है उत्तर प्रदेश के वृंदावन का टटिया स्थान. वृंदावन का टटिया स्थान ऐसा धाम है जहां ठाकुर जी विराजमान हैं और इस जगह पर अलग ही शांति और मानसिक सुकून मिलता है.
क्यों नहीं आया कलयुग?
दरअसल, यहां कलयुग का मतलब मशीनी युग से है. हरिदास संप्रदाय से जुड़ा टटिया स्थान ऐसी जगह है जहां पर साधु संत संसार से विरक्त होकर बिहारी जी के ध्यान में लीन रहते है. साथ ही टटिया स्थान में विशुद्ध प्राकृतिक सौंदर्य है, जो तकनीकी प्रगति से पूरी तरह अछूता है. टटिया स्थान में जाते ही ऐसा लगता है जैसे व्यक्ति कई शताब्दी पीछे चला गया है. यहां प्रकृति से निकटता, पवित्रता, दिव्यता और आध्यात्मिकता का अलग ही अहसास होता है. यहां पर किसी भी यंत्र, मशीन या बिजली का इस्तेमाल नहीं होता है. मोबाइल फोन आदि तो छोडि़ए यहां पंखे और बल्ब तक नहीं हैं.
आरती के समय बिहारी जी को पंखा भी पुराने समय की तरह डोरी की मदद से किया जाता है. साथ ही यहां के सारे पेड़-पत्ते भी खास है. माना जाता है कि यहां के पत्तों पर राधा नाम उभरा हुआ देखा गया है.
टटिया स्थान का इतिहास
टटिया स्थान स्वामी हरिदास संप्रदाय से जुड़ा हुआ है. स्वामी हरिदास जी बांके बिहारी जी के अनन्य भक्त थे. उन्होंने प्रेम और दिव्य संगीत का पाठ वृंदावन के पक्षियों, फूलों और पेड़ों से सीखा है. इसके बाद हरिदास संप्रदाय के 8 आचार्य हुए हैं. इस स्थान को शिकारियों और तीमारदारों से सुरक्षित करने के लिए यहां पर बांस के डंडे का इस्तेमाल कर पूरे इलाके को घेर लिया गया था. स्थानीय बोली में बांस की छड़ियों को 'टटिया' कहा जाता है. इस तरह इस स्थान का नाम टटिया स्थन पड़ा.
नहीं ले जा सकते मोबाइल
टटिया स्थान में रहने वाले साधु - संत आज भी देह त्याग के लिए समाधि लेते है. यहां साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है. संत कुएं के पानी का उपयोग करते है. यहां के साधु संत किसी भी प्रकार की दान - दक्षिणा नहीं लेते है. ना ही इस पूरे स्थान पर आपको दान पेटी मिलेंगी. यहां आने वाले भक्त मोबाइल नहीं ला सकते हैं. ना ही किसी अन्य आधुनिक वस्तु का उपयोग कर सकते हैं. महिलाओं को सिर ढंककर ही यहां पर प्रवेश करने की अनुमति है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)