Jain Food Rules: तिरुपति बालाजी मंदिर के पवित्र प्रसादम में मछली का तेल और चर्बी होने के मामले पर जमकर विवाद हो रहा है. भक्‍तों की आस्‍था से खिलवाड़ का यह मसला अब कई मंदिरों में प्रसाद को लेकर नियमों में सख्‍ती की वजह बन रहा है. इस मौके पर एक ऐसे धर्म के बारे में जानिए जिसमें भोजन की पवित्रता का इतना महत्‍व दिया गया है, कि वह अपनेआप में एक बेंचमार्क है. यह है जैन धर्म. जैन धर्म में भोजन-पानी की शुद्धता और पवित्रता को बनाए रखने के लिए बेहद कठिन नियमों का पालन किया जाता है. जानिए ये नियम क्‍या हैं और खाने में अशुद्ध चीजों की मिलावट के दौर में ये नियम और भी महत्‍वपूर्ण हो गए हैं. 


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पूरी दुनिया में मशहूर है जैन फूड 


अधिकांश लोग जैन फूड के बारे में जानते हैं और देश ही नहीं दुनिया के कई देशों में खाद्य पदार्थों का एक लंबा मेन्‍यू जैन फूड के नाम से अलग से उपलब्‍ध रहता है. यहां जैन फूड से मतलब है शुद्ध शाकाहारी भोजन जिसमें लहसुन-प्‍याज का इस्‍तेमाल भी नहीं किया गया हो. जैन धर्म में ना केवल मांस-मदिरा वर्जित है, बल्कि जमीन के अंदर से निकलने जमीकंद जैसे-आलू, प्‍लाज, लहसुन आदि खाना भी वर्जित होता है. इसलिए खानपान के मामले में जैन धर्म को सबसे सख्‍त माना जाता है. लेकिन यह तो हुई वह सामान्‍य जानकारी जो आमतौर पर लोग जानते हैं. जबकि जैन धर्म में खानपान को लेकर नियम इससे कहीं ज्‍यादा सख्‍त हैं. बल्कि कुछ नियम तो ऐसे हैं, जिन्‍हें जानकर कई लोग हैरान रह जाएंगे. 


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जैन धर्म में भोजन को लेकर सख्‍त नियम 


जैन संत-मुनि तो भोजन से जुड़े नियमों का सख्‍ती से पालन करते ही हैं लेकिन आम जैन घरों में भी इनमें से अधिकांश नियमों का पालन होता है. उस पर जैन व्रत रखते समय तो खाने-पीने से जुड़े इन नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है, तभी वह व्रत मान्‍य होते हैं. आम दिनों में भी बाहर की चीजें खाने-पीने से बचने के लिए कहा गया है और केवल घर में बना साफ-शुद्ध भोजन करने की ही सलाह दी गई है. 


- जैन धर्म में चाहे पीने का पानी हो या खाना पकाने, सब्‍जी धोने आदि का पानी, सभी जगह पानी उबालकर और छानकर ही इस्‍तेमाल होता है. वह भी ऐसे पानी को कुछ घंटों तक ही इस्‍तेमाल कर सकते हैं. तय समय सीमा के बाद पानी को दोबारा छानकर ही उपयोग किया जा सकता है. 


- खाने की हर चीज, मसाले, आटा, बेसन आदि सब कुछ घर में पीसे जाते हैं और घर में बना भोजन ही खाया जाता है. यही वजह है कि अधिकांश जैन घरों में मिनी आटा चक्‍की होती है. अचार-पापड़ से लेकर हर खाद्य पदार्थ की तय समय सीमा होती है, उसके बाद उसे नहीं खाया जाता है. 


- जैन व्रत में घर का बना घी उपयोग किया जाता है. संभव हो तो तेल भी घानी से निकलवाकर ही उपयोग किया जाता है. 


- संत-मुनियों का भोजन और व्रत का भोजन बनाते समय ऐसे कपड़े पहने जाते हैं, जिन्‍हें एक दिन पहले धोया गया हो और धोने के बाद उन्‍हें किसी ने ना छुआ हो. यानी कि भोजन बनाने वाले व्‍यक्ति के कपड़े भी पूरी तरह साफ और पवित्र हों यह जरूरी है. 


- जैन व्रत के भोजन में उसी दिन पीसे गए, मसाले, नमक का ही इस्‍तेमाल किया जाता है. यानी कि हर चीज ताजी और शुद्ध हो. 


- जैन घरों में गर्मी में अनाज को घर में धोकर-सुखाकर रखा जाता है और फिर पूरे साल थोड़ा-थोड़ा करके घर में ही पीसकर उपयोग किया जाता है. ताकि वह पूरी तरह शुद्ध और ताजा हो. 


- साथ ही सूर्यास्‍त के बाद भोजन नहीं किया जाता है. केवल जरूरत महसूस होने पर दूध, चाय-पानी पी सकते हैं.