Tulsi Vivah 2023: वनस्पतियों में तुलसी का पौधा हर घर में रखा जाता है, इतना ही नहीं इस पौधे के प्रति श्रद्धा से शीश भी नवाया जाता है क्योंकि यह कोई साधारण पौधा नहीं है बल्कि गंगा, यमुना, गोदावरी जैसी नदियों की भांति पवित्र माना गया है, यह पौधा औषधीय गुणों की खान है. कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव हिंदू समाज के लोग बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाते हैं. कुछ लोग कार्तिक शुक्ल नवमी, दशमी और एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देकर पर्व मनाते हैं तो कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन कर पांचवें दिन तुलसी का विवाह करते हैं. कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी पूजन किया जाएगा जो 23 नवंबर को है. तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं. तुलसी की पूजा करने के पीछे एक लंबी कथा छिपी है, आइए जानते हैं. 


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राक्षस वध और वृंदा के सतीत्व से जुड़ी है कथा
प्राचीन काल में शंखचूड़ नाम का एक वीर और पराक्रमी राक्षस था, जल से उत्पन्न होने के कारण उसका एक नाम जालंधर भी था. उसने चारों तरफ उत्पात मचा रखा था. उसका विवाह असुर कुल के हिरण्याक्ष के पुत्र कालनेमि की कन्या वृंदा से हुआ था. उसकी वीरता का रहस्य पत्नी वृंदा थी. उसे वरदान था कि जब तक उसकी स्त्री का सतीत्व सुरक्षित है उसे कोई नहीं मार सकता. जालंधर के आतंक से भयभीत ऋषि और देवता विष्णु के पास गए और उससे उद्धार  दिलाने की प्रार्थना की. इस पर विष्णु जी ने योगमाया से एक मृत शरीर वृंदा के घर में फेंकवा दिया. जिसके शरीर की आकृति जालंधर जैसी थी. माया का पर्दा होने से वृंदा को वह शव अपने पति जालंधर का दिखा और पति का मृत देख वह विलाप करने लगी. इसी समय एक सिद्ध साधु उधर से निकले और वृंदा को विलाप करते देख रुक गए और रोने का कारण पूछा. इस पर साधु ने वृंदा से विलाप बंद करने का आग्रह करते हुए उस मृत शरीर में जान फूंक दी. इससे वृंदा बहुत प्रसन्न हुई और भावना में बह कर उसने उस शरीर का आलिंगन कर लिया जिससे उसका पतिव्रत धर्म नष्ट हो गया. वृंदा का सतीत्व भंग होते ही देवताओं से युद्ध कर रहा उसका पति जालंधर मारा गया, बाद में वृंदा को भगवान विष्णु के इस छल की जानकारी हुई.  जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, उसके सतीत्व के नष्ट होते ही मारा गया. 


वृंदा के शाप से पत्थर बन गए श्री विष्णु
जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो क्रोधित हो कर उसने विष्णु जी को पत्थर होने का श्राप दे दिया. उसने कहा कि जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी पत्नी के छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्युलोक में जन्म लोगे. उन्होंने पत्थर होने का श्राप भी दिया और अपने पति के शव के साथ सती हो गयी. उनके शाप के प्रभाव से विष्णु जी शालिग्राम पत्थर बन गए. अपने किए पर लज्जित  भगवान विष्णु ने कि हे वृंदा, तुम मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो. यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बन कर मेरे साथ रहोगी और मनुष्य मेरे साथ तुम्हारे विवाह का उत्सव मनाएंगे. जो ऐसा करेगा वह परमधाम को प्राप्त होगा. इसी कारण शालिग्राम या विष्णु शिला की पूजा बिना तुलसी के अधूरी मानी जाती है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)