Ganesh Chaturthi 2022: भगवान श्री गणेश ने यूं तो कई अवतार लिए हैं, किंतु मुद्गल पुराण के अनुसार उनके आठ अवतार प्रमुख हैं. इनमें से पहला अवतार वक्रतुण्ड का है. उनका यह अवतार ब्रह्मरूप से सम्पूर्ण शरीरों को धारण करने वाला, मत्सरासुर का वध करने वाला तथा सिंह वाहन पर चलने वाला है.


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 वक्रतुण्डावतारश्च देहानां ब्रह्मधारक:।


 मत्सरासुरहन्ता स सिंहवानग: स्मृत:।।


पौराणिक कथा के अनुसार, देवराज इन्द्र के कारण मत्सरासुर का जन्म हुआ और दैत्य गुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से भगवान शिव की कठोर तपस्या कर अभय होने का वरदान प्राप्त किया. उसके लौटने पर शुकाचार्य ने उसे दैत्यों का राजा बना दिया. उसके मंत्रियों ने विश्व विजय की सलाह दी तो विशाल सेना के साथ उसने पृथ्वी के राजाओं पर आक्रमण कर दिया. उस असुर के सामने कुछ राजा पराजित हुए तो कुछ प्राण बचाकर छिप गए. इस तरह सम्पूर्ण पृथ्वी पर मत्सरासुर का शासन हो गया. पृथ्वी पर कब्जे के बाद उस महापराक्रमी दैत्य ने पहले पाताल फिर स्वर्ग पर चढ़ाई कर दी. वरुण, कुबेर, यम देवता उससे पराजित होकर भाग गए. इन्द्र भी उसके समने न टिक सके और मत्सरासुर स्वर्ग का भी सम्राट हो गया. 


असुरों से दुखी देवता ब्रह्मा जी और विष्णु जी के साथ कैलास पहुंचे और भगवान शंकर को पूरा हाल बताया तो उन्होंने मत्सरासुर के इस कर्म की निंदा की. इस बात को सुनकर मत्सरासुर ने सीधे कैलास पर आक्रमण कर दिया. भगवान शिव से उसका घोर युद्ध हुआ, किंतु त्रिपुरारि भगवान शिव भी उसके समक्ष नहीं ठहर सके. उसने उन्हें भी कठोर पाश में बांध लिया और कैलाश का स्वामी बनकर, वहीं रहने लगा. चारों तरफ दैत्यों का अत्याचार होने लगा. 


देवता चिंतित थे, तभी भगवान दत्तात्रेय वहां पहुंचे. उन्होंने देवताओं को वक्रतुण्ड के एकाक्षरी मंत्र  “गं” का उपदेश दिया. सभी देवता भगवान् वक्रतुण्ड के ध्यान के साथ एकाक्षरी मंत्र जपने लगे. उनकी आराधना से संतुष्ट होकर फलदाता वक्रतुण्ड प्रकट हुए. उन्होंने देवताओं को आश्वस्त किया. भगवान् वक्रतुण्ड ने अपने असंख्य गणों के साथ मत्सरासुर के नगर को चारों तरफ से घेर लिया. पांच दिनों तक भयंकर युद्ध चला. मत्सरासुर के सुन्दरप्रिय एवं विषयप्रिय नामक दो पुत्र थे. वक्रतुण्ड के गणों ने उन्हें मार डाला. पुत्र वध जान व्याकुल मत्सरासुर रणभूमि में आया और उसने भगवान् वक्रतुण्ड को अपशब्द कहे. वक्रतुण्ड ने साफ कहा कि यदि तुझे प्राण प्रिय हैं तो शस्त्र रखकर मेरी शरण में आ नहीं तो मारा जायगा. 


वक्रतुण्ड के भयानक रूप को देखकर मत्सरासुर व्याकुल हो गया. वह भय से कांपने लगा और उनकी स्तुति करने लगा. वक्रतुण्ड ने उसे अभय देते हुए अपनी भक्ति का वरदान दिया और शांत जीवन बिताने के लिए पाताल जाने का आदेश दिया. मत्सरासुर से निश्चिंत हो देवगण वक्रतुण्ड की स्तुति करने लगे.


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