Raksha Bandhan 2020: भाई को राखी बांधते वक्त जरूर करें ये काम, जानें शुभ मुहूर्त
किसी भी व्रत का समय पूरा होने के बाद प्रभु स्मरण के साथ जो अंतिम पूजा की जाती है वही उस व्रत का उद्यापन कहलाता है. सावन माह समाप्ति की ओर है ऐसे में सावन के व्रत करने वाले भक्त और सावन सोमवार के व्रत करने वाले भक्त अब व्रत के उद्यापन की तैयारी करना शुरू कर सकते हैं.
नई दिल्ली: मदन गुप्ता सपाटू के अनुसार रक्षाबंधन के दिन भद्रा सुबह 9 बजकर 29 मिनट तक है. इसके बाद ही रक्षाबंधन का शुभ समय आरंभ होगा. इसके बाद संपूर्ण समय भद्रा रहित और शुभ रहेगा.
शुभ महूर्त-
राखी बांधने का मुहूर्त: 09:30:30 से 21:11:21 तक
रक्षा बंधन अपराह्न मुहूर्त : 13:45:16 से 16:23:16 तक
रक्षा बंधन प्रदोष मुहूर्त : 19:01:15 से 21:11:21 तक
सावन के व्रत का उद्यापन सुबह 9 बजकर 30 मिनट के बाद
सावन मास का पहला सोमवार 6 जुलाई को था, इस दिन से ही सावन मास का आरंभ हुआ था. सावन मास की समाप्ति 3 अगस्त सोमवार के दिन ही है. 3 अगस्त को सावन के अंतिम सोमवार को विशेष पूजा का विधान है. इस दिन स्नान के बाद गंगाजल से पूजा स्थान को शुद्ध करें. इसके बाद पूजा आरंभ करें और व्रत का संकल्प लें. इस दिन भगवान शिव का अभिषेक करें, दान दें. इस दिन क्रोध और हर प्रकार की बुराइयों से बचना चाहिए.
उद्यापन का शुभ मुहूर्त
3 अगस्त को पूर्णिमा की तिथि है. सुबह 9 बजकर 30 मिनट के बाद ही उद्यापन करें. किसी भी व्रत का समय पूरा होने के बाद प्रभु स्मरण के साथ जो अंतिम पूजा की जाती है वही उस व्रत का उद्यापन कहलाता है. सावन माह समाप्ति की ओर है ऐसे में सावन के व्रत करने वाले भक्त और सावन सोमवार के व्रत करने वाले भक्त अब व्रत के उद्यापन की तैयारी करना शुरू कर सकते हैं.
यदि आप अपने व्रत का उद्यापन पुरोहित जी से ना करवाकर खुद करना चाहते हैं तो सुबह के समय दैनिक कार्यों से निवृत्त हो जाएं. फिर गणपति की आरती के साथ पूजा शुरू करें, हवन करें. हवन में काले तिल का प्रयोग करें. आप महामृत्युंज मंत्र 1, 2, 5 या 7 मालाओं का जप अपनी श्रद्धानुसार कर सकते हैं. पूजा के बाद किसी जरूरतमंद को वस्त्रों या दक्षिणा का दान दें. पूजा के बाद ही कुछ खाएं.
अगर आपने पूरे महीने सावन का व्रत किया है या केवल फलाहार लिया है तो आप भी 3 अगस्त को व्रत का उद्यापन कर सकते हैं. आपको पूजा और हवन के बाद ही कुछ खाना है. उद्यापन वाले दिन स्नान के बाद सफेद वस्त्र पहनना उचित होता है. इन्हीं वस्त्रों में पूजा करनी चाहिए. पूजा के लिए एक चौकी तैयार करें. इसे केले के पत्तों और फूलों से सुंदर तरीके से सजाएं. स्वयं या पुरोहित के द्वारा इस चौकी पर भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती, गणपति, कार्तिकेय, नंदी और चंद्र देव की प्रतिमा स्थापित करें. इन्हें गंगा जल से स्नान करवाने के बाद चंदन, रोली और अक्षत का टीका लगाएं.
फिर फूल-माला अर्पित करें और पंचामृत का भोग लगाएं. भोलेनाथ को सफेद फूल अति प्रिय हैं, सफेद मिठाई अर्पित करें. शिव मंदिर में शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी, गंगाजल का पंचामृत अर्पित करें और बिल्व पत्र, धतूरा और भांग चढ़ाएं.