Chitragupta Puja Vidhi: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में द्वितीया अर्थात दीपावली से दूसरे दिन जब भैया दूज का पर्व मनाया जाता है तभी  भगवान चित्रगुप्त का भी पूजन किया जाता है. भगवान चित्रगुप्त संसार के मनुष्यों के कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले यमराज के सहयोगी हैं. भगवान चित्रगुप्त के साथ ही उनके प्रतीक कलम और दावात का भी पूजन किया जाता है. मान्यता है कि दूज के दिन विधि विधान से भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने वाले को मृत्यु के बाद नरक की प्रताड़ना नहीं भोगनी पड़ती हैं. 


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इस तरह करनी चाहिए पूजा
लकड़ी की एक साफ सुथरी चौकी या पाटे पर एक स्वच्छ वस्त्र बिछाने के बाद उस पर भगवान चित्रगुप्त के चित्र को स्थापित करना चाहिए. चित्र पर रोली, अक्षत, पुष्प, माला और मिष्ठान्न तथा दीपावली पर आने वाले खील गट्टा आदि का पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ अर्पण करना चाहिए. इसके बाद एक कोरे कागज पर नए पेन  से श्री गणेशाय नमः लिखने के बाद 11 बार ॐ चित्रगुप्ताय नमः और ब्रह्मा विष्णु महेश, राम सीता और राधा कृष्ण के नाम लिखने के बाद कागज और पेन का पूजन कर भगवान के चरणों में रखना चाहिए. इसके बाद अपनी अज्ञानता के कारण हुई गलतियों की क्षमा मांगते हुए विद्या, बुद्धि, व सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करें. अगले दिन से आप उसी पेन को अपने इस्तेमाल में लें. 


ब्रह्मा जी की काया से हुआ जन्म
स्कंद पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी के सामने उपस्थित होकर यमराज ने निवेदन किया कि उनके कार्य इतना अधिक बढ़ गया है कि अब अकेले नहीं संभाला जाता है. मुझे किसी ऐसे सहयोगी की आवश्यकता है जो धार्मिक, न्यायी, बुद्धिमान, लिखापढ़ी में एक्सपर्ट, और वेद शास्त्रों का भी ज्ञाता हो. इतना सुन ब्रह्मा जी ध्यान मग्न हो गए और जब आंख खुली तो सामने एक हाथ में कलम दवात और दूसरे हाथ में धर्मग्रंथ लिए पुरुष उपस्थित हुआ और उसने उन्हें हाथ जोड़ प्रणाम करते हुए अपना परिचय पूछा.  इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि मेरी काया से उत्पन्न होने के कारण तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त रहेगा और तुम यमराज के सखा बन कर मनुष्यों के कर्मों का लेखा जोखा रखोगे. बाद में ब्रह्मा जी ने सुशर्मा ऋषि की कन्या इरावती और मनु की कन्या दक्षिणा से उनका विवाह कराया जिनसे क्रमशः आठ व चार पुत्र हुए.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)