Popular Marriage Traditions: दुनिया के अन्य धर्मों की तरह इस्लाम (Islam) में भी शादी के कई नियम और परंपराएं हैं. वैसे भी कहा जाता है कि शादी इंसान की पसंद की हो तो ज्यादा बेहतर रहता है. इसलिए इस्लाम में शादी से पहले अपने मंगेतर को देखना जायज है. वहीं कई हदीसों में शादी से पहले अपने मंगेतर को देखे जाने की इजाजत दी गई है.


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मंगेतर को देखने की हिदायत


हालांकि मंगेतर के एक दूसरे को देखने की इस प्रथा के लिए भी साफ निर्देश दिए गए हैं. इसलिए इस्लाम में ये एकदम साफ बताया गया है कि शादी से पहले अपने मंगेतर को देखना मजे के लिए और दिल्लगी के लिए न हो बल्कि पूरी तरह से शादी के इरादे से ही होना चाहिए. यानी अगर किसी ने पहले से ही मन बना लिया गया है कि उसे शादी से इंकार करना है तो ऐसी सूरत में अपने मंगेतर को देखना जायज नहीं माना जाता है.


इस्लाम की रोशनी में इस प्रथा का मतलब


इस्लाम में शादी से पहले अपने मंगेतर को देखने के इजाजत इसलिए भी दी गई है, क्योंकि इंसान की फितरत है कि वो अंदरूनी खूबियों के साथ साथ जाहिरी यानी दिखने वाली खूबसूरती की तरफ आकर्षित होता है. यानी इंसान खूसबसूरत और बेऐब चीजों की तरफ खिंचाव महसूस करता है. इस्लाम चाहता है कि शादी के जरिए न सिर्फ दो दिल मिलें बल्कि दो खानदान भी आपस में जुड़ाव करें. ऐसे में अगर दिखने वाली बुराई को नजरअंदाज करते हुए कोई शादी की जाती है तो ये मुमकिन है कि उसके अच्छे नतीजे न निकलें.


मंगेतर को देखने की इजाजत की वजह


हजरत अबु हुरैरा (रज0) फरमाते हैं कि, 'मैं अल्लाह के रसूल (सल्ल0) की खिदमत में था कि एक शख्स ने हाजिर होकर कहा कि 'मैं एक अंसारी औरत से निकाह करना चाहता हूं.' अल्लाह के रसूल (सल्ल0) ने पूछा, 'क्या तुमने उसको देख लिया है?' उस शख्स ने कहा, 'नहीं'. आप (सल्ल0) ने फरमाया 'जाओ देख लो क्योंकि अंसार की औरतों में कुछ होता है.' (यानी अंसारी औरतों की आंखें छोटी होती हैं.)" (हदीस: मुस्लिम, नसई)


वहीं एक दूसरी हदीस में है कि 'उस औरत को देख लो. तुम दोनों के बीच प्यार मोहब्बत कायम रहने और उसके मजबूत होने के लिए यह ज्यादा मुनासिब है.'


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