1831 Volcano Eruption: 1831 में एक रहस्यमय ज्वालामुखी का ऐसा शक्तिशाली विस्फोट हुआ जिसने पृथ्वी की जलवायु को ठंडा कर दिया. यह विस्फोट इतना भयानक था कि उत्तरी गोलार्ध का औसत तापमान लगभग 1 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया. लगभग 200 साल बाद, वैज्ञानिकों ने इस 'रहस्यमय ज्वालामुखी' की पहचान कर ली है.


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कहां है वह 'मिस्ट्री' ज्वालामुखी?


ऐतिहासिक विस्फोट की लोकेशन का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड की बर्फ की परतों पर स्टडी की. इन परतों में सल्फर आइसोटोप, राख के कण और छोटे ज्वालामुखीय कांच के टुकड़े मिले, जो 1831 से 1834 के बीच जमा हुए थे.


जियोकेमिस्ट्री, रेडियोएक्टिव डेटिंग और कंप्यूटर मॉडलिंग के इस्तेमाल से, वैज्ञानिकों ने इन कणों को उत्तर-पश्चिम प्रशांत महासागर में एक द्वीप ज्वालामुखी ज़ावारित्स्की (Zavaritskii) से जोड़ा. यह ज्वालामुखी रूस और जापान के बीच विवादित कुरिल द्वीपसमूह के सिमुशिर द्वीप पर स्थित है.


कब-कब फटा यह ज्वालामुखी, नहीं है कोई रिकॉर्ड


ज़ावारित्स्की ज्वालामुखी का पिछला ज्ञात विस्फोट 800 ईसा पूर्व में हुआ था. बेहद दूर होने के चलते इसके विस्फोटों का कोई व्यापक रिकॉर्ड नहीं है. स्टडी के प्रमुख लेखक, डॉ. विलियम हचिसन के अनुसार, 'ज़ावारित्स्की एक ऐसा ज्वालामुखी है, जिसकी गतिविधियों का इतिहास बेहद सीमित जानकारी पर आधारित है.'


हचिसन और उनके साथियों की रिसर्च के नतीजे सोमवार को Proceedings of the National Academy of Sciences में छपे हैं.


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कैसे चला 1831 में हुए विस्फोट का पता?


वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड से मिली राख और कांच के कणों की रासायनिक संरचना की तुलना जापान और कुरिल द्वीपसमूह के ज्वालामुखीय नमूनों से की. ज़ावारित्स्की के नमूनों और बर्फ की परतों के नमूनों में समानता पाई गई.


रेडियोकार्बन डेटिंग से यह भी पता चला कि ज़ावारित्स्की का विस्फोट 1700 से 1900 के बीच हुआ था. सल्फर आइसोटोप और ज्वालामुखीय गड्ढे के अध्ययन ने पुष्टि की कि यह गड्ढा 1831 के बड़े विस्फोट के बाद बना था.


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इंसान पर आ गई थी आफत


1831 के विस्फोट के बाद, उत्तरी गोलार्ध में ठंडा और सूखा मौसम शुरू हो गया. इस जलवायु परिवर्तन ने वैश्विक स्तर पर भुखमरी और कठिनाइयों को जन्म दिया. भारत, जापान और यूरोप में अकाल की खबरें सामने आईं, जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए.


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