Explainer: आइंस्टीन की कामयाबी में उनकी पहली पत्नी मिलेवा मैरिक का कितना योगदान था?
Mileva Maric Einstein First Wife: अल्बर्ट आइंस्टीन की पहली पत्नी, मिलेवा मैरिक खुद भी प्रतिभाशाली वैज्ञानिक थीं. तमाम पत्र और सबूत कहते हैं कि आइंस्टीन की रिसर्च में मिलेवा की अहम भूमिका थी.
Mileva Maric Einstein Story: अल्बर्ट आइंस्टीन और मिलेवा मैरिक की पहली मुलाकात 1896 में हुई थी. दोनों ज्यूरिख के पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट में साथ भर्ती हुए. अल्बर्ट और मिलेवा की खूब बनती थी, दोनों रोजाना घंटों साथ पढ़ा करते. अल्बर्ट को लेक्चर्स में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी, वह अधिकतर समय घर पर ही पढ़ते. मिलेवा का तरीका अलग था. उन्हें सब सही से करना होता था. जब स्कूल की छुट्टियां होतीं तो दोनों एक-दूसरे को चिट्ठियां लिखा करते.
1899 की एक चिट्ठी में अल्बर्ट लिखते हैं, '...यहां की आबोहवा मुझे बिल्कुल रास नहीं आती... मैं खुद को अंधकारमय विचारों में घिरा पाता हूं - दूसरे शब्दों में, मैं तुम्हारे आस-पास होने की कमी महसूस करता हूं, जो मुझे नियंत्रित रखती थी और मुझे भटकने से रोकते थी.' 1900 में जब उनकी क्लासेज खत्म हुईं, मिलेवा और अल्बर्ट के नंबर लगभग एक जैसे थे, सिवाय अप्लाइड फिजिक्स के. मिलेवा उस विषय में अव्वल आई थीं लेकिन अल्बर्ट को सिर्फ 1 अंक मिला था.
मिलेवा को प्रयोग भाते थे, अल्बर्ट को प्रयोगों में खास रुचि न थी. लेकिन जब ओरल एग्जाम हुआ तो प्रोफेसर ने लड़कों को 12 में से 11 अंक दिए लेकिन मिलेवा को सिर्फ 5. डिग्री सिर्फ अल्बर्ट को मिली.
मिलेवा से शादी के सपने देखते थे आइंस्टीन
अल्बर्ट के परिवार को मिलेवा से रिश्ता पसंद न था. मिलिवा न तो यहूदी थी, न ही जर्मन. वह लंगड़ाती थी और अल्बर्ट की मां का कहना था कि मिलेवा बहुत ज्यादा बौद्धिक थी. विदेशी लोगों के प्रति पूर्वाग्रहों की तो बात ही छोड़िए. अल्बर्ट के पिता ने जोर दिया कि उनका बेटा शादी से पहले काम ढूंढ ले.
सितंबर 1900 में अल्बर्ट ने मिलेवा को पत्र में लिखा, 'मैं अपने नए साझा काम को फिर से शुरू करने के लिए उत्सुक हूं. अब तुम्हें अपनी रिसर्च जारी रखनी चाहिए - मुझे कितना गर्व होगा जब मेरा जीवनसाथी एक डॉक्टर होगा और मैं एक साधारण आदमी.' दोनों अक्टूबर 1900 में वापस ज्यूरिख आ गए. लेकिन अल्बर्ट को नौकरी नहीं मिली और बिना नौकरी उन्होंने मिलेवा से शादी करने से मना कर दिया.
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13 दिसंबर, 1900 को उन्होंने पहला लेख जमा किया, लेकिन उस पर सिर्फ अल्बर्ट का नाम था. हालांकि, आपसी चिट्ठियों में दोनों ही यह जाहिर करते हैं कि लेख पर दोनों ने काम किया था. अल्बर्ट ने 27 मार्च, 1901 को मिलेवा के नाम जो पत्र लिखा, उससे साफ हो जाता है कि दोनों ने 'विशेष सापेक्षता' पर साथ काम किया था. आइंस्टीन ने उस चिट्ठी में कहा था, 'मुझे कितनी खुशी और गर्व होगा जब हम दोनों मिलकर अपने सापेक्ष गति के काम को विजयी निष्कर्ष पर पहुंचाएंगे.'
मिलेवा की जिंदगी में आया भूचाल लेकिन...
अगले साल, मिलेवा की जिंदगी एकदम से बदल गई. अल्बर्ट के साथ प्रेम संबंधों ने उसे गर्भवती कर दिया. बेरोजगार अल्बर्ट अब भी उससे शादी को राजी न थे. खुद को दोराहे पर पाकर मिलेवा ने एक बार फिर से ओरल एग्जाम देने की ठानी. इस बार प्रोफेसर ने उसे फेल कर दिया. मिलेवा को पढ़ाई छोड़नी पड़ी और वह सर्बिया लौट गई. कुछ वक्त के लिए ज्यूरिख वापसी लौटी ताकि अल्बर्ट को शादी के लिए मना सके.
मिलेवा ने जनवरी 1902 में एक बच्ची को जन्म दिया. कोई नहीं जानता कि उस बच्ची का क्या हुआ. कोई जन्म या मृत्यु प्रमाणपत्र कभी नहीं मिला. उधर, अल्बर्ट को पिता के एक दोस्त की वजह से बर्न के पेंटेट ऑफिस में नौकरी मिल गई. जून 1902 से अल्बर्ट ने काम शुरू किया लेकिन पिता की तबीयत बिगड़ने लगे. अक्टूबर में, मरने से पहले पिता ने अल्बर्ट को मिलेवा से शादी की इजाजत दे दी.
आइंस्टीन और मिलेवा की रिसर्च
अल्बर्ट और मिलेवा की शादी 6 जनवरी, 1903 को हुई. अल्बर्ट नौकरी करते और मिलेवा घर संभालतीं. शाम को दोनों साथ काम करते, कभी-कभी देर रात तक. अल्बर्ट को रोज 8 घंटे, हफ्ते में छह दिन ऑफिस जाना होता था. 14 मई, 1904 को मिलेवा ने बेटे हैंस-अल्बर्ट को जन्म दिया.
अगला साल आइंस्टीन के लिए ढेर सारी कामयाबी लेकर आया. 1905 में उन्होंने पांच लेख प्रकाशित किए: एक फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव पर (जिसके कारण उन्हें 1921 में नोबेल पुरस्कार मिला), दो ब्राउनियन गति पर, एक विशेष सापेक्षता पर और प्रसिद्ध E = mc2 पर. अल्बर्ट की इन उपलब्धियों में मिलेवा का बराबर का योगदान था.
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देसांका त्रबुहोविक-गुजरीक ने 1969 में सर्बियाई भाषा में मिलेवा की पहली जीवनी प्रकाशित की. उन्होंने लिखा है कि मिलेवा का भाई अक्सर अपने घर पर नौजवान बुद्धिजीवियों को बुलाता था. इन्हीं में से एक शाम के दौरान, अल्बर्ट ने कहा होगा, 'मुझे अपनी पत्नी की जरूरत है. वह मेरी सभी गणितीय समस्याओं का समाधान करती है...', ऐसा कहा जाता है कि मिलेवा ने इस बात की पुष्टि की थी.
मौसेरी बहन से आइंस्टीन का अफेयर
अगले कुछ सालों के दौरान, आइंस्टीन के तमाम बौद्धिक कामों में मिलेवा की छाप मिलती रही. 28 जुलाई, 1910 को उनका दूसरा बेटा एडवर्ड पैदा हुआ. अल्बर्ट अब भी मिलेवा को प्यार भरे पोस्टकार्ड्स भेजा करते थे लेकिन दिल कहीं और लगने लगा था. दरअसल अल्बर्ट का परिवार अब बर्लिन में रहता था. 1912 में जब अल्बर्ट अपने परिवार से मिलने गए तो उनका अपनी मौसेरी बहन, एल्सा लोवेंथल से अफेयर शुरू हो गया.
अगले दो साल तक एल्सा और अल्बर्ट के बीच प्रेम-पत्रों का आदान-प्रदान होता रहा. इस बीच, आइंस्टीन कुछ समय के लिए पहले प्राग में प्रोफेसर रहे, फिर ज्यूरिख और आखिरकार 1914 में बर्लिन आ गए, ताकि एल्सा के पास रह सकें. एल्सा के साथ अफेयर की वजह से आइंस्टीन की पहली शादी टूट गई. मिलेवा 29 जुलाई, 1914 को दोनों बेटों को साथ लेकर ज्यूरिख चली आईं.
तलाक और नोबेल प्राइज की वह शर्त
मिलेवा तलाक को राजी थीं मगर उन्होंने एक शर्त रखी कि अगर अल्बर्ट को कभी नोबेल पुरस्कार मिला तो उसकी रकम उन्हें मिलेगी. 1921 में अल्बर्ट को नोबेल प्राइज मिला और उसकी रकम मिलेवा को. मिलेवा ने दो छोटे अपार्टमेंट खरीदे और उनसे होने वाली आय से गुजारा करने लगी.
बेटा एडवर्ड अक्सर सैनेटोरियम में रहता थ, बाद में उसे सिजोफ्रेनिया हो गया और परमानेंटली भर्ती कराना पड़ा. ऐसे खर्चों की मदद से मिलेवा की माली हालत ताउम्र खस्ता रही. उन्हें दोनों अपार्टमेंट भी बेचने पड़े. वह प्राइवेट ट्यूशन देकर और आइंस्टीन से कभी-कभार मिलने वाले एलिमनी के पैसों से गुजारा करती रहीं.
1925 में आइंस्टीन ने अपनी वसीयत में लिखा कि नोबेल पुरस्कार से मिली रकम उनके बेटों की विरासत थी. मिलेवा ने इस पर कड़ी आपत्ति जाहिर की. उन्होंने आइंस्टीन की रिसर्च में अपने योगदान के बारे में दुनिया को बताने की सोची मगर कभी ऐसा किया नहीं. हां, अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के सामने जरूर इस बात का जिक्र करती रहीं.
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कभी पूरी तरह नहीं खुला मिलेवा के योगदान का राज
साइंटिफिक अमेरिकन में पार्टिफिल फिजिसिस्ट पॉलीन गगनन लिखती हैं कि हैंस-अल्बर्ट की पहली पत्नी, फ्रीडा ने मिलेवा और अल्बर्ट द्वारा अपने बेटों को भेजे गए पत्रों को छपवाने की कोशिश की, लेकिन आइंस्टीन के एस्टेट एक्जीक्यूटर्स- हेलेन डुकास और ओटो नाथन ने उन्हें अदालत में रोक दिया.
जुलाई 1947 को, अल्बर्ट ने अपने डिवोर्स लॉयर डॉ. कार्ल जुर्चर को लिखा: 'जब मिलेवा नहीं रहेगी, तो मैं शांति से मर सकूंगा.' 04 अगस्त, 1948 को आइंस्टीन की यह ख्वाहिश पूरी हो गई. मिलेवा को भयानक स्ट्रोक पड़ा और उनका निधन हो गया.
उनके पत्रों और तमाम सबूतों से पता चलता है कि मिलेवा मैरिक और अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने स्कूल के दिनों से लेकर 1914 तक एक-दूसरे का बेहद सहयोग किया था.