Science News in Hindi: आज से कोई 970 साल पहले, 1054 ईस्वी में लोगों ने आसमान में एक नए तारे को उभरते देखा. वैज्ञानिक प्रगति ने बताया कि हमारे पूर्वजों ने जो देखा, वह कोई नया तारा नहीं बल्कि एक तारे की भयानक मौत यानी 'सुपरनोवा' था. लेकिन यह कोई आम सुपरनोवा नहीं था. यह एक ऐसा सुपरनोवा था जिससे आगे चलकर क्रैब नेबुला बना.


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क्रैब नेबुला, हमारी आकाशगंगा में अंतरतारकीय धूल और गैस का कोलॉज है. यह तेजी से सिकुड़ती परमाणु भट्टी की मृत्यु के दौरान उत्सर्जित ऊर्जा से प्रकाशित होता है. यह तारा अंत में एक पल्सर बन जाएगा - एक तेजी से घूमने वाला न्यूट्रॉन तारा - जो ईथर में विद्युत चुम्बकीय विकिरण के पल्स भेजता है.


यह खास इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के हाई-फ्रीक्वेंसी बैंड में एक 'जेब्रा' पैटर्न निकालता है. ऐसा पैटर्न अब तक देखे गए किसी भी अन्य पल्सर से अलग है. कंसास यूनिवर्सिटी के एक एस्ट्रोनॉमर के मुताबिक, उन्होंने शायद यह गुत्थी सुलझा ली है.


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ब्रह्मांड में अपनी तरह का इकलौता पल्सर


रिसर्च के लीड ऑथर, मिखाइल मेदवेदेव ने कहा कि 'यह उत्सर्जन, जो प्रकाश स्तंभ की किरण जैसा दिखता है, तारे के घूमने पर बार-बार पृथ्वी के पास से गुजरता है. हम इसे स्पंदित उत्सर्जन के रूप में देखते हैं, आमतौर पर प्रति चक्कर एक या दो स्पंदन के साथ. मैं जिस पल्सर की बात कर रहा हूं, उसे क्रैब पल्सर के नाम से जाना जाता है, जो हमसे 6,000 प्रकाश वर्ष दूर क्रैब नेबुला के केंद्र में स्थित है.'


मेदवेदेव ने क्रैब पल्सर में जेब्रा पैटर्न वाला बताया क्योंकि इसके उत्सर्जन में बैंड फ्रीक्वेंसीज के अनुपात में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम में असामान्य बैंड स्पेसिंग दिखाई देती है. मेदवेदेव ने कहा, 'यह व्यावहारिक रूप से सभी तरंग बैंडों में बहुत उज्ज्वल है.'


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मेदवेदेव के मुताबिक, 'यह इकलौती चीज है जिसके बारे में हम जानते हैं कि जेब्रा पैटर्न पैदा करती है.' वैज्ञानिकों ने पहली बार 2007 में जेब्रा पैटर्न को नोटिस किया था, लेकिन अब तक कोई इसकी वजह नहीं समझा सका था. मेदवेदव ने पल्सर के प्लाज्मा का घनत्व नापने के लिए एक नई तरीके का इस्तेमाल किया. उनकी रिसर्च Physical Review Letters जर्नल में छपी है.


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