Science News in Hindi: मंगल ग्रह में वैज्ञानिकों की दिलचस्पी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. विज्ञान की प्रगति ने हमें अब मंगल को बेहद करीब से देखने और समझने की क्षमता दी है. एलन मस्क जैसे रईस मंगल पर इंसानी बस्तियां बसाने का ख्वाब देखते हैं. कुछ वैज्ञानिकों को लगता है कि शायद मंगल पर जीवन हो सकता है या कम से कम जीवन पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां हो सकती हैं. हालांकि, अभी तक की रिसर्च में मंगल पर जीवन की मौजूदगी का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है. अब एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि शायद मंगल पर जीवन था, लेकिन करीब पांच दशक पहले मानवीय दखल के चलते वह नष्‍ट हो गया.


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NASA के वाइकिंग मिशन


1970 के दशक में, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने मंगल की जांच करने वाइकिंग मिशनों को भेजा. वाइकिंग लैंडर्स लाल ग्रह की सतह पर उतरने और घूमने वाले पहली मशीन थे. एक जर्मन रिसर्चर के मुताबिक, उस समय तक मंगल पर जीवन मौजूद था लेकिन वाइकिंग मिशनों से वह नष्‍ट हो गया. आज तक, ये मंगल ग्रह पर किए गए इकलौते जैविक प्रयोग हैं. बर्लिन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी में एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट, डिर्क शुल्ज-मकुच के मुताबिक, मंगल पर माइक्रोबियल जीवन के संकेतों का पता लगाने वाले ये प्रयोग घातक हो सकते थे.


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Nature Astronomy के लिए अपनी कमेंट्री में डिर्क ने अनुमान लगाया है कि हमारे तरीके अपने आप में विनाशकारी रहे होंगे. अगर ऐसा है, तो हमारे लिए यह जरूरी है कि हम भविष्य के प्रयोगों को डिजाइन करते समय मंगल की पारिस्थितिकी पर गहराई से विचार करें. वह सलाह देते हैं कि मानवता को इन विचारों को ध्यान में रखते हुए, खासतौर पर जीवन की खोज के लिए समर्पित एक और मिशन भेजना चाहिए.


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इंसान ने ही मंगल को पहुंचाया नुकसान


वाइकिंग मिशनों के तहत चले प्रयोगों में से एक, गैस क्रोमाटोग्राफ-मास स्पेक्ट्रोमीटर (GCMS) भी था. तब मंगल पर क्लोरीनयुक्त कार्बनिक पदार्थ पाए. उस समय, इन नतीजों को यह कहकर नकार दिया गया कि इंसान के सफाई करने वाले उत्पादों से संक्रमण हुआ होगा. हम अब जानते हैं कि क्लोरीनयुक्त कार्बनिक पदार्थ मंगल ग्रह पर पहले से पाए जाते हैं.


हाल के सालों में वाइकिंग मिशनों के प्रयोगों से नुकसान को लेकर कुछ अटकलें लगाई गई हैं. GCMS को नमूनों को गर्म करने की जरूरत थी ताकि उनमें मौजूद विभिन्न चीजों को अलग किया जा सके. बाद के एनालिसिस से पता चला कि इससे वही कार्बनिक पदार्थ जलकर राख हो सकते थे जिन्हें खोजने की उम्मीद थी.


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क्या हमने नकार दिए सबूत?


अब डिर्क शुल्ज-मकुच ने सुझाया है कि GCMS की तरह कई अन्य प्रयोगों ने भी सबूत नष्‍ट किए होंगे. डिर्क ने पाइरोलिटिक रिलीज प्रयोग का उदाहरण दिया, जिसमें मंगल ग्रह के नमूनों को पानी में मिलाया गया था. उस समय हमने यह मान लिया था कि मंगल पर जीवन भी पृथ्‍वी के जैसा होगा और पानी की मौजूदगी में पनपता होगा, जितना अधिक पानी, उतना अधिक जीवन. लेकिन अब हम जानते हैं कि जीवन बेहद सूखी स्थितियों में भी रह लेता है और मंगल बहुत सूखा है. शायद मंगल पर जीवन ने बिना पानी के जिंदा रहना सीख लिया था, लेकिन हमने पानी मिलाकर खत्म कर दिया.


दिलचस्प बात यह है कि, पायरोलिटिक रिलीज प्रयोग में पहचाने गए जीवन के संकेत ड्राई कंट्रोल रन में बहुत मजबूत थे, जहां नमूने में पानी नहीं मिलाया गया था. ऐसे में यह सवाल तो उठता है कि क्या इन प्रयोगों में जीवन के ऐसे संकेत पाए गए जिन्हें हमने खारिज कर दिया था?


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