Science News in Hindi: हमारे सौरमंडल में केवल दो चट्टानी ग्रह हैं जिनके चंद्रमा हैं: पृथ्‍वी और मंगल. अपने चंद्रमा के नमूने और कंप्यूटर सिमुलेशंस बताते हैं कि इसका निर्माण पृथ्‍वी और मंगल के आकार के प्रोटोप्लैनेट - थिया - की प्राचीन टक्कर से हुआ था. हम अब तक मंगल के दोनों चंद्रमाओं- फोबोस और डीमोस से नमूने नहीं ला पाए हैं, इसलिए हमें साफ-साफ नहीं पता कि ये कैसे बने. हालांकि, एक नई रिसर्च में दावा किया गया है कि मंगल के चंद्रमाओं का निर्माण भी पृथ्‍वी के चंद्रमा की तरह हुआ था. यह नई स्टडी पिछले दिनों arXiv पर छपी है.


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एस्टेरॉयड नहीं हैं मंगल के चंद्रमा!


फोबोस और डीमोस को सीधे देखने पर वे छोटे एस्टेरॉयड जैसे नजर आते हैं. यह उस विचार से मेल खाता है कि मंगल के चंद्रमा असल में एस्टेरॉयड थे जो ग्रह के शुरुआती इतिहास में मंगल द्वारा झपट लिए गए. लेकिन इस विचार के साथ दिक्कत यह है कि मंगल एक छोटा ग्रह है जिसका गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्‍वी या शुक्र से कम है. मंगल के लिए किसी छोटे एस्टेरॉयड को भी पकड़ना मुश्किल होगा, दो की तो बात ही छोड़िए. साथ ही साथ, पकड़े गए चंद्रमाओं की कक्षाएं अधिक दीर्घवृत्ताकार होंगी, न कि डीमोस और फोबोस की तरह गोलाकार.


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नई रिसर्च हमें क्या बताती है?


एक वैकल्पिक मॉडल कहता है कि मंगल के चंद्रमा पृथ्वी और थिया के समान ही एक शुरुआती टक्कर का नतीजा हैं. इस मॉडल के अनुसार, मंगल ग्रह के द्रव्यमान का लगभग 3 प्रतिशत द्रव्यमान वाला एक एस्टेरॉयड या धूमकेतु ग्रह से टकराया. यह इतना बड़ा नहीं था कि मंगल को खंडित कर सके, लेकिन इसने एक बड़ा मलबा घेरा बनाया होगा जिससे दो चंद्रमा बन सकते थे.


इस मॉडल से फोबोस और डीमोस की अधिक गोलाकार कक्षाओं को समझाया जा सकता है, लेकिन दिक्कत यह है कि मलबे के छल्ले ग्रह के करीब बनते हैं. जबकि फोबोस यानी मंगल ग्रह का बड़ा चंद्रमा, मंगल के करीब परिक्रमा करता है, डीमोस ऐसा नहीं करता है.


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नया मॉडल एक बीच का रास्ता सुझाता है. स्टडी के लेखक यह प्रस्ताव रखते हैं कि किसी प्रभाव या सीधे कब्जे के बजाय, कोई बड़े एस्टेरॉयड मंगल से टकराने से चूक गया होगा. अगर कोई एस्टेरॉयड मंगल के काफी करीब से गुजरता है, तो ग्रह की ज्वारीय ताकतें क्षुद्रग्रह को चीरकर टुकड़ों की एक श्रृंखला बना देंगी.


इनमें से कई टुकड़े मंगल के चारों ओर एक दीर्घवृत्ताकार कक्षा में कैद हो जाते. कंप्यूटर सिमुलेशंस दिखाते हैं कि कक्षाएं समय के साथ-साथ बदलीं और सौरमंडल के अन्य पिंडों के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में आकर कुछ टुकड़े आपस में टकराए होंगे. इससे इम्पैक्ट इवेंट के जैसे मलबे का एक घेरा बनेगा, लेकिन इसकी दूरी अधिक होगी, जिससे फोबोस और डीमोस का बेहतर ढंग से पता लगाया जा सकेगा.


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मंगल के चंद्रमा कैसे बने, इस रहस्य से पर्दा तभी उठ पाएगा जब हम वहां से सैंपल लाकर उनकी स्टडी करेंगे. 2026 में लॉन्च होने जा रहा Mars Moons eXploration mission (MMX) यही करेगा. तब शायद हमें लाल ग्रह‍ के चंद्रमाओं के बनने की कहानी पता लग पाए.


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