Global Warming News: ग्लोबल वार्मिंग के चलते दुनिया तबाही के कगार पर पहुंच चुकी है. नई रिसर्च के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह चेतावनी दी है. उनका कहना है कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी होने से पृथ्वी के औसत तापमान में पिछले अनुमानों से कहीं ज्यादा इजाफा हो सकता है. वैज्ञानिकों ने कैलिफोर्निया के तट से प्रशांत महासागर की तलछट का एनालिसिस किया. NIOZ (The Royal Netherlands Institute for Sea Research), यूट्रेक्ट एवं ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स की स्टडी Nature Communications पत्रिका में छपी है.


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वैज्ञानिकों को इस बात के सबूत मिले कि धरती के औसत तापमान में 7 से 14  डिग्री का इजाफा हो सकता है. स्टडी के लीड ऑथर कैटलिन विटकोव्स्की ने कहा कि वर्तमान अनुमानों और उनकी रिसर्च के नतीजों में जमीन-आसमान का अंतर है. विटकोव्स्की के मुताबिक, 'हमें तापमान में जितनी बढ़ोतरी का पता चला, वह संयुक्त राष्‍ट्र के जलवायु पैनल IPCC के अनुमानों से 2.3 से 4.5 डिग्री अधिक है.'


प्रशांत महासागर में 45 साल पुराने ड्रिल कोर से हुई रिसर्च


अपनी रिसर्च के लिए वैज्ञानिकों ने प्रशांत महासागर की सतह पर मौजूद 45 साल पुराने ड्रिल कोर का इस्तेमाल किया. इससे उन्हें 1.8 करोड़ साल के जलवायु डेटा का रिकॉर्ड मिला. प्रोफेसर जाप सिनिंगहे डैमस्टे के मुताबिक, कोर जहां है वहां ऑक्सीजन नहीं पाई जाती, इससे ऑर्गेनिक मैटर और कार्बन का बेहतर संरक्षण हो सका.


रिसर्चर्स ने नई तकनीकों की मदद से समुद्री जल के पिछले तापमान और वायुमंडलीय CO2 के स्तर का पता लगाया. NIOZ के TEX86 तरीके से माइक्रोबिलियन मेम्ब्रेन सबस्टेंसेज के तापमान का अनुमान लगाया गया. CO2 के स्तरों का पता लगाने के लिए शैवाल से मिले क्लोरोफिल और कोलेस्ट्रॉल को शामिल करते हुए एक नया अप्रोच विकसित किया गया.


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कार्बन डाइऑक्साइड कम हुई तो घटा तापमान!


स्टडी में पता चला कि डेढ़ करोड़ साल पहले CO2 की सांद्रता 650 पार्ट्स पर मिलियन (ppm) थी. औद्योगिक क्रांति से पहले यह घटकर 280 ppm तक पहुंच गई थी. जब वैज्ञानिकों ने तापमान को CO2 के स्तर से जोड़कर देखा तो उन्हें पता चला कि डेढ़ करोड़ साल पहले का तापमान आज की तुलना में 4 डिग्री अधिक था.


प्रोफेसर डैमस्टे के मुताबिक, ये नतीजे 'भविष्य की झलक दिखाते हैं अगर हम CO2 उत्सर्जन को कम करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाते.' रिसर्च से पता चलता है कि जलवायु मॉडलों में CO2 की सांद्रता का जितना असर समझा जाता है, उसका ग्लोबल तापमान पर कहीं ज्यादा असर पड़ता है.