Science News in Hindi: जापान के सुबरू टेलीस्कोप ने एक बेहद शानदार तस्वीर ली है. हवाई के माउंट किया में लगा यह टेलीस्कोप अपनी ताजा फोटो में बेहद दुर्लभ ट्रिपल-रिंग आकाशगंगा के दीदार कराता है. जापान की नेशनल एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेटरी ने एक बयान में बताया कि यह आकाशगंगा पृथ्‍वी से लगभग 800 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर है. लेकिन यह दुर्लभ प्रकार की आकाशगंगा आखिर बनी कैसे, यह ब्रह्मांडीय रहस्य अब तक बरकरार है.


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ब्रह्मांड में कितने तरह की आकाशगंगाएं?


आकाशगंगाओं को क्लासिफाई करने के लिए हबल सीक्वेंस मेथड का इस्तेमाल किया जाता है. इसके तहत, आकाशगंगा मुख्‍य रूप से चार तरह की होती हैं: अंडाकार, लेंटिकुलर, सर्पिल और अनियमित.


अंडाकार आकाशगंगाएं टेलीस्कोप से देखने पर काफी चिकनी और अंडे के जैसी दिखाई देती हैं. इनमें तारों का वितरण समान होता है.


लेंटिकुलर आकाशगंगाएं केंद्र में उभार के साथ चपटे दीर्घवृत्त जैसी दिखती हैं. कल्पना करें कि आप तले हुए अंडे को किनारे से देख रहे हैं.


सर्पिल आकाशगंगाएं, जैसे कि हमारी Milky Way, में एक समान केंद्रीय उभार होता है. लेकिन बाहरी डिस्क के बजाय, उनमें घूमती हुई तारकीय 'भुजाएं' होती हैं. 


अनियमित आकाशगंगाएं, जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, का कोई निश्चित आकार नहीं होता.


लेकिन रिंग आकाशगंगाएं इन चार कैटेगरी में फिट नहीं होतीं. इसी वजह से कई वैज्ञानिकों ने हबल सीक्वेंस में अपडेट की जरूरत बताई है. हबल सीक्वेंस वाली आकाशगंगाएं दो तरह से विकसित होती हैं. लेकिन किसी को यह नहीं पता कि रिंग आकाशगंगाएं कैसे बनती और बड़ी होती हैं.


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रिंग वाली आकाशगंगाएं


रिंग आकाशगंगाओं के बारे में एक प्रमुख थ्‍योरी यह है कि वे आकाशगंगाओं की टक्कर का नतीजा हैं. इस सिद्धांत के अनुसार, जब कोई अन्य आकाशगंगा सर्पिल आकाशगंगा के केंद्र से टकराती है, तो इससे गैस और धूल की लहरें उत्पन्न होती हैं, जो एक शॉकवेव की तरह रेडिएट होती हैं, जिससे एक रिंग बनता है. 


दूसरा सिद्धांत यह है कि आकाशगंगाओं के रिंग नेचुरल रेजोनेंस नाम की प्राकृतिक घटना से बनते हैं. जैसे-जैसे आकाशगंगा के अंदर अंतरतारकीय गैस आगे बढ़ती है, गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण यह कुछ क्षेत्रों में जमा हो जाती है. कुछ परिस्थितियों में, यह आकाशगंगा के चारों ओर एक खास रिंग बना सकता है - या एक से अधिक भी.


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