Helium Leak Explained: बोइंग स्टारलाइनर हो या स्पेसएक्स का पोलारिस डॉन, अंतरिक्ष के तमाम मिशनों में एक समस्या बार-बार पेश आती है- हीलियम लीक की. स्टारलाइनर में हीलियम लीक की वजह से NASA के एस्ट्रोनॉट्स को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर कई महीने एक्स्ट्रा बिताने पड़ेंगे. वहीं SpaceX के पोलारिस डॉन मिशन का लॉन्च भी हीलियम से जुड़ी गड़बड़ियों की वजह से देरी से हुआ. हीलियम लीक की समस्या से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भी दो-चार हो चुका है. इसरो के चंद्रयान-2 मिशन और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के Ariane 5 मिशन के दौरान भी हीलियम लीक की प्रॉब्लम सामने आई थी.


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हीलियम क्या है?


हीलियम (He) एक निष्क्रिय गैस है यानी यह किसी अन्य पदार्थ के साथ प्रतिक्रिया नहीं करती और न ही जलती है. हीलियम की परमाणु संख्या 2 है, जो इसे हाइड्रोजन के बाद दूसरा सबसे हल्का तत्व बनाती है. 


क्यों स्पेसक्राफ्ट और रॉकेटों में होता है हीलियम का यूज?


रॉकेटों को निश्चित कक्षा में पहुंचने और वहां बने रहने के लिए तय रफ्तार और ऊंचाई पर पहुंचना होता है. भारी रॉकेट न सिर्फ ज्यादा ऊर्जा इस्तेमाल करेगा, यानी न सिर्फ ईंधन ज्यादा चाहिए होगा बल्कि ताकतवर इंजन भी. ऐसा करना न सिर्फ खर्चीला साबित होगा, बल्कि उसे टेस्ट और मेंटेन करना भी मुश्किल होगा.


इसकी तुलना में, हीलियम का बॉइलिंग प्वाइंट बेहद कम (– 268.9 डिग्री सेल्सियस) है. यानी यह बेहद ठंडे माहौल में भी यह गैस बनी रहती है. यह हीलियम को आदर्श ईंधन बनाता है क्योंकि अधिकतर रॉकेटों का ईंधन इसी तापमान रेंज में स्टोर किया जाता है.


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स्पेसक्राफ्ट के फ्यूल टैंकों को हीलियम से प्रेशराइज किया जाता है ताकि रॉकेटों के इंजन तक ईंधन का फ्लो बना रहे. कूलिंग सिस्टम में भी हीलियम यूज होती है. जैसे-जैसे रॉकेट के इंजन में ईंधन और ऑक्सिडाइजर जलते हैं, टैंक में खाली जगह को हीलियम भरती है जिससे ओवरऑल प्रेशर बना रहता है.


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हीलियम लीक क्यों होती है?


हीलियम के परमाणु का साइज छोटा होता है और इसका आणविक द्रव्यमान भी कम होता है. दूसरे शब्दों में कहें तो स्टोरेज टैंकों या फ्यूल सिस्टमों के छोटे-छोटे गैप और सील से हीलियम के परमाणु निकल सकते हैं. चूंकि, पर्यावरण में बहुत कम हीलियम है, लीक का पता आसानी से चल जाता है.


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