पूरी दुनिया की निगाहें न्यूयॉर्क में शुरू हो रही संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 76वें सेशन पर होंगी जिसे मंगलवार शाम को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन संबोधित करेंगे. अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे और वहां से अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद पहली बार UNGA का यह सेशन हो रहा है. इससे पहले 15 सितंबर 2020 को सत्र हुआ था लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 100 से ज्यादा वैश्विक नेता वहां पर मौजूद रहेंगे.


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यह सत्र इसलिए भी खास है क्योंकि दुनिया की 4 महाशक्तियों भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका यानी QUAD देशों की बैठक भी इस सेशन से इतर व्हाइट हाउस में होनी है. इस बार की महासभा में मुख्य रूप से क्लाइमेट चेंज, कोरोना महामारी और अफगानिस्तान जैसे मुद्दे छाए रहने वाले हैं. इसके अलावा भी काफी कुछ ऐसा है जो पहली बार होने जा रहा है.


बाइडेन की सत्ता के बाद पहली बैठक


जो बाइडेन के सत्ता संभालने के बाद यह पहली UNGA मीटिंग होगी साथ ही इस बार महासभा की कमान अब्दुल्ला शाहिद के हाथों में है और उनकी अध्यक्षता में यह पहली बैठक होगी. तीसरी और सबसे अहम बात कोरोना महामारी के बाद पहली बार दुनिया भर के बड़े नेता फिजिकली एक मंच पर जुटने जा रहे हैं.


सबसे पहले हमें कोरोना के मुद्दे को समझने की जरूरत है जो इस बैठक का कोर रहने वाला है. चीन से निकली इस महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया और हर देश इससे राहत पाने की जुगत में लगा हुआ है. देशों की इकोनॉमी को कोरोना ने बर्बाद कर दिया साथ ही लोगों का जीवन बदहाल हो गया है. ऐसे में पूरी दुनिया को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं चाहिए और खासकर विकासशील देशों में इसकी ज्यादा जरूरत महसूस की जा रही है.


कोरोना पर कैसे काबू पाएगी दुनिया?


अफगानिस्तान, सीरिया, इराक और अफ्रीका के कुछ राज्य अभी वार जोन में हैं. ऐसे देशों में वैक्सीनेशन की प्रक्रिया को सुचारू रखना UNGA के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा ताकि लोगों के जीवन को बचाया जा सके. वैक्सीन के लिए बने एलायंस GAVI समेत अन्य संगठन WHO के साथ मिलकर इस दिशा में काम भी कर रहे हैं. लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासभा को कोरोना के खिलाफ लड़ाई में पूरी दुनिया को एक साथ लाना होगा. विकसित देशों को ज्यादा प्रयास करने होंगे ताकि विकासशील देशों को उसका फायदा मिल सके. कोशिश होनी चाहिए कि अब मानवता को इस महामारी से और नुकसान न होने पाए और इस दिशा में UNGA बड़ी भूमिका निभा सकता है.


दुनिया के सामने क्लाइमेट चेंज हमेशा से एक चुनौती रहा है और महासभा की पिछली बैठकों में यह मुद्दा लगातार उठता भी रहा है. संयुक्त राष्ट्र का मंच UNFCCC कार्बन और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है. फिलहाल अमेरिका ही सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है और बाकी विकसित देश भी इस होड़ में ज्यादा पीछे नहीं हैं.


क्लाइमेट चेंज की चुनौती


अपनी शुरुआत के साथ ही UNFCCC इन देशों को वक्त की मांग को समझने की सलाह देता रहा है ताकि कार्बन उत्सर्जन को कम करके ग्लेशियर्स को पिघलने से बचाया जा सके और धरती का तापमान भी बेहतर बना रहे. 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल, 2009 के कोपेनहेगन, 2015 का पेरिस समझौता और 2016 के किगाली अमेंडमेंट ने लगातार बदलाव पर जोर भी दिया है.


हालांकि जलवायु परिवर्तन का मुद्दा विकासित और विकासशील देशों की बहस में उलझकर रह जाता है. दोनों पक्ष इसके लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं, बावजूद इसके इस बार की UNGA बैठक में भी क्लाइमेट चेंज का मुद्दा छाया रहने वाला है.


अफगानिस्तान में UNGA की भूमिका


महासभा में तीसरा और सबसे ज्वलंत मुद्दा अफगानिस्तान का रहने वाला है जिस पर दुनिया के ताकतवर देश अब तक एक राय नहीं बना पाए हैं. अमेरिका ने अफगान जमीन छोड़कर तालिबान को मौका दे दिया और अब राष्ट्रपति बाइडेन अपने इस फैसले को सही साबित करने की पुरजोर कोशिश भी करेंगे. अफगान संकट मानवता के लिए सबसे बुरे अध्यायों में से एक है क्योंकि वहां फंड नहीं हैं, गरीब लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं और महिलाओं के अधिकारों को लगातार कुचला जा रहा है.


तालिबान की सरकार में आतंकियों का जमावड़ा है और यह साफ संकेत देता है कि अभी हालात और बिगड़ने वाले हैं. वहां अल्पसंख्यकों का दमन हो रहा है, मानव अधिकारों का मजाक बनाया जा रहा है और ड्रग्स कारोबार और आतंकवाद चरम पर पहुंचने वाला है. तालिबान सत्ता पर काबिज रहने के लिए पाकिस्तान और चीन जैसे देशों की ओर देख रहा है जो वैश्विक मंच पर उसे जगह दिलाने में मदद कर सकें.


महासभा में भी तालिबान को मान्यता देने की मांग होना तय है लेकिन UNGA को इसके आगामी परिणामों के बारे में जरूर सोचना होगा. साथ ही वह कैसे अफगानिस्तान में बेहतर भूमिका निभा सकता है, इस मुद्दे पर भी चर्चा के आसार हैं. आतंकवाद का खतरा सबसे बड़ा है और अगस्त में आए सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के बाद यह और भी अहम हो चुका है.  


भारत के लिए महासभा के सेशन में यह तीनों मुद्दे ही जरूरी हैं. विकासशील देश होने के नाते भारत विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए उनकी जिम्मेदारी जरूर याद दिलाएगा. इसके साथ ही कोरोना की वजह से देश ने काफी कुछ भुगता है और ऐसे में अब उसे वैश्विक शक्तियों के साथ मिलकर चलने की जरूरत है. महासभा की बैठक के जरिए उसे विकसित देशों से यह सहयोग मिलने की उम्मीद है और UNGA इसमें मददगार साबित होगा.


भारत की क्या चिंताएं?


भारत पिछले तीन दशक से इस्लामिक आतंकवाद को झेल रहा है और ऐसे में पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में तालिबान की एंट्री से उसकी चिंता बढ़ना लाजमी है. भारत अपनी इन सभी चिंताओं को UNGA के मंच से उठाने वाला है. इसके अलावा आतंकवाद को पोसने में पाकिस्तान की भूमिका किसी से छिपी नहीं है और 25 सितंबर को जब प्रधानमंत्री मोदी इस मंच को संबोधित करेंगे तो यह मुद्दा फिर से उठा सकते हैं.


रीजन की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत पूरे उपमहाद्वीप में शांति और स्थिरता चाहता है. तालिबान के वैश्विक आतंकी गुटों से रिश्ते किसी से छिपे नहीं है और अब तो वह अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हो चुका है जो सिर्फ भारत के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा है.


(लेखक मेजर अमित बंसल (रि.) रक्षा विशेषज्ञ हैं और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के साथ आतंरिक सुरक्षा की भी गहरी समझ रखते हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी विचार हैं.)