दिल्ली विधानसभा चुनाव में तमाम आशंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए आम आदमी पार्टी (आप) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। 'आप' के इस अभूतपूर्व जीत की शायद ही किसी को उम्‍मीद थी। हां, इस बात की संभावना जरूर थी कि आम आदमी पार्टी बहुमत के साथ इस बार दिल्‍ली की सत्‍ता में कदम रखेगी। खुद 'आप' को भी ये अनुमान नहीं रहा होगा दिल्‍ली की जनता इस कदर केजरीवाल के झाड़ू को पसंद करेगी और जोरदार मुहर लगाएगी। दिल्‍लीवासियों के इस फैसले ने न सिर्फ सभी को चौंकाया बल्कि राजनीतिक दलों को कई नसीहत दे गई। अब इसे आम आदमी पार्टी की सुनामी कह लें, या आंधी कह लें या तूफान या कुछ और..., केजरीवाल के आगे सभी पस्‍त हो गए। बीजेपी और कांग्रेस का इस तरह सफाया हो जाना कई बातों की ओर इशारा करती हैं। दोनों राष्‍ट्रीय दलों की ओर से नेताओं की पूरी फौज चुनाव प्रचार में झोंक दी गई थी। मगर आम आदमी पार्टी के अभियान का नेतृत्व अरविंद केजरीवाल ने खुद ही किया। नतीजा यह हुआ कि एक अकेले केजरीवाल सब पर भारी पड़ गए। केजरीवाल के नेतृत्व में बीजेपी और कांग्रेस दोनों को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।


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महज कुछ महीने पहले बीजेपी के पक्ष जमकर मतदान करने वाले दिल्‍लीवासियों का बदलता मूड वाकई चौंकाने वाला है। जीत भी ऐसी कि बीजेपी को नेता विपक्ष के पद से भी महरूम कर दिया। आलम यह रहा कि आम आदमी पार्टी दिल्‍ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटें अपनी झोली में ले गई। जबकि लोकसभा चुनाव में सातों सीटें जीतने वाली बीजेपी सिर्फ तीन सीटों पर सिमटकर रह गई और राष्ट्रीय राजधानी में 15 साल तक सरकार चलाने वाली कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पाई है। नतीजों से स्‍पष्‍ट है कि दिल्ली के लोगों ने सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ मतदान किया। यूं कहें कि केंद्र की सत्ता में आने के आठ महीनों के अंदर ही नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार को लोगों ने नकार दिया। कुछ राजनीतिक जानकार 'आप' की इस प्रचंड जीत के लिए मोदी सरकार के अहं और कामकाज की निरंकुश शैली को भी जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। ये चुनाव परिणाम केंद्र की एनडीए सरकार के खिलाफ देशवासियों के बदलते मूड को भी परिलक्षित करता है। आम आदमी पार्टी के पक्ष में आए इस नतीजे से देश की राजनीति में भी बदलाव के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। हालांकि ये कहना थोड़ी जल्‍दबाजी जरूर लगेगी लेकिन राष्‍ट्रीय राजधानी की सियासी फिजां पर गौर करें तो चीजें खुद स्‍पष्‍ट होने लगेगी। दिल्‍ली में ऐतिहासिक जीत और इतने बड़े  जनादेश से पूरे देश में निश्चित तौर पर एक संदेश गया। यदि दिल्ली के समस्त मतदाताओं का यही मत है तो इसमें कोई संशय नहीं है कि यह राजनीतिक बदलाव का भी एक संकेत है। वैसे भी दिल्ली को राष्ट्र का दिल कहा जाता है, जहां देश के विभिन्न भागों से आए लोग रहते हैं।


दिल्‍ली चुनावों में ‘आम आदमी' की ताकत ने छह दशक से अधिक समय तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी का जहां सूपड़ा साफ कर दिया तो वहीं लोकसभा चुनाव में मिली भारी जीत से गौरवान्वित बीजेपी को यह बड़ा सबक सिखाया कि ‘आम आदमी की ताकत’ को कमतर मत समझा जाए। इस चुनाव में एक बात यह भी देखने को मिली कि मुद्दों की राजनीति करके धर्म और जातिवादी राजनीति के कुचक्र को तोड़ा जा सकता है। ये नतीजे जातिवादी और विघटनकारी राजनीति के अंत की तरफ भी इशारा करते हैं। दिल्ली की जीत से मिली ऊर्जा के बाद यदि ‘आप’ अन्‍य राज्‍यों की जनता के सामने अपनी बात बेहतर ढंग से रखती है तो निश्चित ही पार्टी को लोगों से जुड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।


किरण बेदी को जब दिल्ली चुनाव से ठीक पहले जब बीजेपी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया गया तो इसे केजरीवाल के खिलाफ पार्टी का ‘मास्टर स्ट्रोक’ बताया गया था, लेकिन यह कदम पूरी तरह नाकाम साबित हुआ। बेदी समेत अन्‍य नेताओं के बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी के अंदर का माहौल अचानक बदलने लगा। जल्‍द ही पार्टी के अंदर का अंतर्कलह भी सामने आने लगा। बीते कुछ सालों में बीजेपी की यह करारी चुनावी शिकस्त है। दिल्‍ली चुनाव के नतीजों से बीजेपी को बड़ा झटका लगा है। बता दें कि पिछले चुनाव में बीजेपी 31 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। आप 28 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर और कांग्रेस आठ सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही थी। बता दें कि चुनावी राजनीति में उतरने के साथ ही केजरीवाल पहली बार में ही दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए थे। केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी और लोकपाल मुद्दे पर पिछले साल 14 फरवरी को 49 दिन तक सत्ता में रहने के बाद इस्तीफा दे दिया था। परंतु नतीजों से अब यह स्‍पष्‍ट है कि दिल्‍ली की जनता ने इस बार महसूस किया कि उन्हें एक और मौका दिया जाना चाहिए।


केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा जनांदोलन खड़ा किया और मतदाताओं को जागरूक किया। भ्रष्टाचार, बिजली एवं पानी के बिल में बढ़ोतरी, महिला सुरक्षा के मुद्दों को लेकर बीजेपी और कांग्रेस पर उन्होंने जमकर हमला बोला। इसके जरिए उन्होंने इन पार्टियों के पारंपरिक वोटबैंक में बड़ी सेंध लगाई। अन्ना हजारे के नेतृत्व में चले जनलोकपाल आंदोलन से चर्चित हुए केजरीवाल ने धीरे-धीरे राजनीतिक क्षेत्र में व्‍यापक जनसंपर्क और अभियान चलाकर आम आदमी पार्टी को आज इतनी मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया। इसी का परिणाम रहा कि आम आदमी पार्टी की आंधी विरोधियों के गढ़ को उड़ा ले गई और  दिल्ली में एक बार फिर से सत्‍ता में पहुंच गई। इस बार तो मनीष सिसोदिया, सोमनाथ भारती, गोपाल राय समेत आप के तमाम महत्वपूर्ण नेताओं ने जीत का परचम लहराया।


महज दो महीने में केजरीवाल की ओर से 110 से ज्यादा जनसभाएं करना, पार्टी के ढांचे में बदलाव करना, लोगों से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से उठाना, सुनियाजित अभियान और कार्यकर्ताओं का समर्थन उन प्रमुख कारणों में शामिल हैं जिनकी वजह से आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। ‘आप’ ने बहुत सोच-समझकर अपने उम्मीदवार चुने और जीत की संभावनाएं नाप-तौल कर अन्य पार्टियों से भी उम्मीदवारों का स्वागत किया। हालांकि ‘आप’ को कई उथल-पुथल भरी स्थिति का भी सामना करना पड़ा लेकिन उसके बावजूद केजरीवाल ने पार्टी को फिर से खडा किया। पार्टी ने हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव न लड़कर पहले दिल्ली पर पूरा ध्यान देने का फैसला किया। इसके अलावा, पार्टी ने उन विधानसभा सीटों पर काम करने का फैसला किया जहां पिछले विधानसभा चुनाव में उसे बहुत ही कम अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। उसने बाहरी दिल्ली पर भी पूरा ध्यान केंद्रित किया।


अब सवाल यह भी उठता है कि क्‍या दिल्‍ली चुनाव का परिणाम केंद्र सरकार पर कहीं रायशुमारी तो नहीं है। हालांकि इसके अभी कोई स्‍पष्‍ट कारण नहीं हैं लेकिन चुनावों के दौरान जिस तरह बीजेपी ने तमाम केंद्रीय नेताओं, बीजेपी सांसदों और अन्‍य राज्‍यों के नेताओं को प्रचार अभियान में उतारा, इसके बावजूद मिली यह विफलता बीजेपी के शीर्ष नेताओं पर तो सवाल जरूर उठाती है। वैसे देखा जाए तो दिल्‍ली की जनता ने स्थानीय मुद्दों पर ज्‍यादा फोकस किया और वोट दिया। बीजेपी के प्रति जनता की नाखुशी इस बात से भी जाहिर होती है कि पार्टी मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी को स्तब्धकारी हार झेलनी पड़ी। बीजेपी के गढ़ माने जाने वाले कृष्णा नगर सीट से बेदी की शिकस्‍त हार के कारणों को स्‍पष्‍ट कर जाता है। बता दें कि ये वही सीट है, जो पिछले लंबे समय से बीजेपी का गढ़ रही है और पूर्व मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित के 15 के शासन के दौरान भी वहां से कोई बीजेपी को हिला नहीं पाया था। इस सीट से केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन लगातार जीतते रहे हैं। बेदी ने मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पूरी ताकत लगाई और नरेंद्र मोदी सहित बीजेपी के सभी शीर्ष नेताओं ने उनके लिए जमकर प्रचार किया, लेकिन वह वोट में तब्‍दील नहीं हो सकता। बेदी की उम्‍मीदवारी के बाद पार्टी के अंदर मतभेद बढ़ गए थे और प्रदेश भाजपा के नेताओं को यह नाराजगी थी कि बेदी को उन पर थोपा गया है। दिल्‍ली में इस बार निचले तबके के लोगों ने ही नहीं, बल्कि मध्यम वर्ग के लोगों ने आम आदमी पार्टी के पक्ष में वोट दिया। इससे ऐसा लगा कि मोदी का विजयी रथ रुकता दिख रहा है। हो सकता है कि बीजेपी के शीर्ष नेता ये बात न मानें, लेकिन वे सोचने के लिए जरूर मजबूर होंगे।


बीजेपी के हारने के पीछे कुछ ऐसे कारण हो सकते हैं, जिसका असर चुनाव पर पड़ा। जैसे मुख्‍यमंत्री उम्‍मीदवार के ऐलान में देरी, किरण बेदी को सीएम प्रत्‍याशी बनाना, आप संयोजक केजरीवाल के खिलाफ निगेटिव कैंपेन, बीजेपी के अंतर्कलह, चुनाव से ऐन पहले दूसरे पार्टी के नेताओं की एंट्री, बीजेपी नेताओं के प्रचार के दौरान विवादित बयान, चुनाव रणनीति में बार बार बदलाव, घोषणापत्र की जगह आए दृष्टिपत्र लाने में देरी, पार्टी कैडर की बेरुखी, टिकट बंटवारे पर टकराव आदि। दिल्‍ली की सियासत में अब तक के इस सबसे महंगे इलेक्‍शन में बीजेपी की चुनावी रणनीति कामयाब नहीं हो पाई। बीजेपी को इस करारी शिकस्‍त की गहराई में जाना होगा। उन्‍हें यह ढूंढना होगा कि हार की ऐसी प्रमुख वजह क्‍या है, जिसने यह राजनीतिक तूफान खड़ा किया। दिल्‍ली की हार मोदी सरकार के लिए एक बड़ा सबक है।


केजरीवाल की इस प्रचंड जीत के पीछे कई कारण हैं, जिस पर दिल्‍ली की जनता ने आंख मूंदकर भरोसा किया। केजरीवाल के चुनावी वायदों पर जनता का भरोसा, बीजेपी से पहले चुनाव प्रचार की शुरुआत करने, 49 दिन की सरकार से हटने पर बार बार सफाई, स्थानीय मुद्दों को जगह देने और प्रभावी बनाने, समुचित पेयजल आपूर्ति और सस्‍ती बिजली के वायदे, जहां झोपड़ी वहां मकान के वायदे, पूरी दिल्‍ली में वाई-फाई, महिला सुरक्षा, जन सुविधाएं, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, रोजगार आदि काफी कारगर रहे। एक दिलचस्‍प बात यह देखने को मिली कि चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए नेताओं को  मतदाताओं ने पूरी तरह नकार दिया जबकि अन्य पार्टियों से आप में शामिल हुए नेताओं को मतदाताओं ने हाथों हाथ लिया और उन्‍हें जीत से नवाजा। इसके अलावा, आम आदमी पार्टी की एकजुटता और विरोधियों पर निजी प्रहार के बजाय केवल विकास पर मुद्दों को केंद्रित करने का लाभ पार्टी को मिला। केजरीवाल की सत्‍ता में वापसी के बाद इस बात की उम्‍मीद अब सभी को है कि वे जनता से किए गए वायदों को पूरा करने के साथ दिल्ली का विकास सुनिश्चत करेंगे।