न्यूज चैनल की स्क्रीन पर फोनो के जरिए अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम है और #GrillingDawood के साथ सबसे बड़े एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के नाम पर पत्रकार उससे बड़ी आत्मीयता के साथ सवाल पूछा जा रहा है. बीच-बीच में स्क्रीन पर दाऊद की कुछ पुरानी तस्वीरें भी फ्लैश होती हैं और भारत-पाकिस्तान पर सवालों से होता हुआ इंटरव्यू एक मार्मिक कहानी में तब्दील हो जाता है. ऐसी कहानी जो यह बताती है कि दाऊद किस मजबूरी में ‘दाऊद’ बना. इससे पहले कि आप उस ‘स्क्रीन’ की तलाश में टीवी चैनल खंगालना शुरू करें, स्पष्ट कर देता हूं कि फिलहाल तो यह महज एक स्क्रिप्ट है, लेकिन आने वाले दिनों में इसके हकीकत बनने की पूरी संभावना है.


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TRP खुदा नहीं पर खुदा से कम भी नहीं
अब आपको यह भी बता देता हूं कि आखिर इस स्क्रिप्ट को शब्दों में ढालने की जरूरत क्यों महसूस हुई. सुशांत सिंह मामले में जिस तरह का रुख हमारी मीडिया ने अपनाया है, उससे यह साफ हो गया है कि अब मीडिया डिस्कोर्स इतना बदल रहा है कि अब TRP खुदा नहीं पर खुदा से कम भी नहीं है, इस मोड पर आ गई है. कोई सच्चाई से इतर सुशांत की एक अलग ही तस्वीर बयां कर रहा है और कोई रिया चक्रवर्ती को निर्दोष साबित करने में लगा है.


दाऊद के 'कातिल' कृत्य


सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के मुंबई बम धमाकों के मामले में दाऊद इब्राहिम को साजिशकर्ता माना है. दाऊद भारत का मोस्ट वांटेड अपराधी है. मुंबई बम धमाके सहित सैंकड़ों आतंकवादी साजिशों को उसने अंजाम दिया है. 1993 में हुए मुंबई में हुए 13 बम धमाकों में ही 350 लोगों की मौत हुई थी और 1200 से ज्यादा घायल हुए थे. 2003 में भारत सरकार ने अमेरिका से मिलकर दाऊद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करवाया था. 


रिया ने 'खेला' अपना खेल
जब रिया ने इंटरव्यू देने के लिए चैनलों के टाइम स्लॉट बांट दिए, तो ये तय  हो ही गया कि कैसे आज सीबीआई पूछताछ से पहले रिया ने मीडिया के जरिए उसी का मीडिया ट्रायल करते हुए अपना ‘खेल’ खेल लिया है.


मैंने किसी भी चैनल पर वो इंटरव्यू जानबूझकर नहीं देखा और न ही देखने की कोई इच्छा है. निश्चित तौर पर मेरी जैसी सोच रखने वाले भी सैकड़ों लोग होंगे. जब हम मान रहे हैं कि टीवी मीडिया लगातार नैतिकता को कम कर रहा है, तो अब ये हम यानी देश के आमजन को ही तय करना होगा कि टीवी को क्या दिखाना है और क्या नहीं, सिर्फ ‘तमाशे’ के नाम पर कुछ भी टीवी पर प्रसारित कर देना अब इस देश में नहीं चलना चाहिए.


कुछ दाग कभी अच्छे नहीं हो सकते
भारत के संविधान की तरह मैं भी सभी को एक समान समझता हूं. यदि कोई प्रतिद्वंद्वी बेहतर करता है, तो मुझे खुशी होती है और अच्छा करने की प्रेरणा भी मिलती है. लेकिन सुशांत के मामले में मीडिया के रुख ने मुझे बेहद निराश किया है. मैं मानता हूं कि सबको अपनी बात कहने का हक है और हर पक्ष सामने आना चाहिए, मगर इस ‘हक’ की आड़ में इमोशनल कार्ड खेलना, उस व्यक्ति को बेचारा, वक्त का मारा टाइप दिखाना, जो प्राइम सस्पेक्ट हो, कितना उचित है? मेरी नजर में यह महज एक TRP बूस्टर से ज्यादा कुछ नहीं है और इसलिए आने वाले दिनों में यदि हमें दाऊद का ‘प्रायोजित‘ और ‘इमोशनल अत्याचार‘ वाला इंटरव्यू भी देखने को मिले तो कोई आश्चर्य नहीं होगा. पर हमें ये समझना ही होगा कि कुछ दाग कभी अच्छे नहीं हो सकते, इसी तरह आरोपी का महिमामंडन भी जायज नहीं हो सकता.


दाऊद का ‘इमोशनल अत्याचार‘ वाला इंटरव्यू
दाऊद की जिंदगी वैसे ही मसाले से भरपूर है, हमारे पत्रकार उसे और मसालेदार बनाएंगे. हमें बताया जाएगा कि आखिर दाऊद को किन मजबूरियों में अंडरवर्ल्ड जॉइन करना पड़ा. उसकी मंशा कभी मुंबई को दहलाने की नहीं थी, लेकिन उसे इसके लिए विवश किया गया. वह कभी किसी का खून नहीं बहाना चाहता था, मगर उसे पेट की आग बुझाने के लिए ऐसा करना पड़ा. यह ‘इमोशनल अत्याचार‘ वाला इंटरव्यू भले ही उन आतंकी घटनाओं के शिकार परिवारों के लिए नासूर बन जाए, जिन्हें दाऊद के इशारे पर अंजाम दिया गया. लेकिन TRP तो बढ़ ही जाएगी और यही आज की मीडिया का मुख्य मकसद है.


देश की जनता को तय करना है कि उसे क्या देखना है
अब यह देश की जनता को तय करना है कि उसे क्या देखना है. पत्रकार और मीडिया यह तय नहीं कर सकते. जिस तरह जनता ने देश की राजनीतिक दशा सुधारने के लिए सत्ता परिवर्तन का फैसला लिया, वैसा फैसला उसे आज लेना होगा. दशकों से चली आ रही लुटियन जोन से ओत-प्रोत वाली पत्रकारिता को यदि अब रुखसत नहीं किया गया, तो न जाने हमें अब ये न्यूज चैनल क्या क्या न दिखा जाएं. क्या आप ऐसे प्रायोजित इंटरव्यू देखना चाहेंगे? यह फैसला आपको करना है.


लेखक: अभिषेक मेहरोत्रा Zee News के Editor (Digital) हैं.


(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं.)


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