जेल में तिलक, पत्रकारिता और उनका लेखन
तिलक ने मराठी में मराठा दर्पण और केसरी नाम से दो दैनिक अखबार शुरू किए, जो बेहद लोकप्रिय हुए. इनमें वे अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति को लेकर अपने विचार बहुत खुलकर व्यक्त करते थे.
जेल में रहकर लिखने वालों की सीरीज में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जनक माने जाने वाले समाज सुधारक और राष्ट्रीय नेता बाल गंगाधर तिलक का नाम खास तौर से याद किया जाना चाहिए. भारतीय इतिहास, संस्कृत, हिन्दू धर्म, गणित और खगोल विज्ञान के विद्वान तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ एक दमदार संघर्ष किया था. वे आधुनिक कॉलेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी में थे. वे डबल ग्रेजुएट थे और उन्हें आधुनिक भारत का प्रधान आर्किटेक्ट माना जाता है.
तिलक ने मराठी में मराठा दर्पण और केसरी नाम से दो दैनिक अखबार शुरू किए, जो बेहद लोकप्रिय हुए. इनमें वे अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति को लेकर अपने विचार बहुत खुलकर व्यक्त करते थे. केसरी में छपने वाले अपने लेखों की विषय-सामग्री और उनके पैनेपन की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया. इसके बावजूद वे अपनी लेखनी के जरिए भारतीय समाज को जागरुक और एकजुट करने के अभियान मुहिम में जुटे रहे.
अपने जीवन के अंतिम दौर में उन्हें 3 जुलाई 1908 को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर 6 साल के लिए बर्मा के मांडले जेल भेज दिया गया था. मांडले मध्य म्यांमार में है. अंग्रेजों के शासनकाल में वहां किलानुमा जेल थी. लाजपत राय, सुभाष बाबू वगैरह समेत कई कैदी यहां एकांतवास में रखे गये. पर सबसे अधिक दिनों तक तिलक को ही यहां पर रखा गया.
तिलक को जब सजा सुनायी गयी, तब अंगरेज उन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते थे. राज्य सभा के उप सभापति और प्रभात खबर के पूर्व संपादक हरिवंश अपने एक आलेख में लिखते हैं कि तिलक को गुप्त रूप से बंबई से रंगून भेजा गया. उन्हें डेक के नीचे कमरे में बंद रखा गया था. वहां वह लेट कर कभी हवा के लिए बनाये गोल सुराखों में से सांस लेकर समय काटते थे. सुबह-शाम महज एक घंटे अंगरेज अफसर के सख्त पुलिस पहरे में डेक पर घूमने की इजाजत थी. मांडले जेल में बड़े-बड़े बैरक हैं. एक बैरक में पार्टशिन कर उन्हें एकांतवास में 6 साल तक रखा गया. मांडले का मौसम उग्र है. सर्दियों में कड़ी सर्दी, गर्मियों में आकाश-धरती भट्टी की तरह तपता है. वह लकड़ी के बने कमरे में रहते थे. यह कमरा हर मौसम के प्रतिकूल था. मांडले जेल जाते समय उनकी उम्र थी 52 वर्ष स्वास्थ्य कमजोर था.
जेल में रहने के दौरान भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन को लेकर उनके विचारों ने आकार लिया और साथ ही उन्होंने 400 पन्नों की किताब गीता रहस्य भी लिख डाली. अपने जेल जीवन के बारे में उन्होंने लिखा है, 'वर्षों से मेरा यह विचार था कि भगवद्गीता पर आजकल जो टीकाएं प्रचलित हैं, उनमें से किसी में उसका रहस्य ठीक से नहीं बताया गया. अपने इस विचार को कार्यरूप में परिणत करने के लिए मैंने पश्चिमी और पूर्वी तत्वज्ञान की तुलना करके भगवद्गीता का भाष्य लिखा.’
गीता रहस्य नामक पुस्तक की पूरी रचना लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने मांडला जेल में ही की थी. इसमें उन्होने श्रीमदभगवद्गीता के कर्मयोग की विस्तृत व्याख्या की. गांधीजी ने गीतारहस्य को पढ़ कर कहा था कि गीता पर तिलकजी की यह टीका ही उनका शाश्वत स्मारक है.
बाल गंगाधर तिलक की लोक मान्यता उनके राजनीतिक और सामाजिक कामों के अलावा वैज्ञानिक शोध के कारण भी थी. इसी वजह से उन्होंने ओरायन जैसा गहन शोधपरक ग्रंथ लिखा. ओरायन, मृगशीर्ष/ मृगशिरा नक्षत्र का ग्रीक नाम है। ग्रंथ का पूर्ण नाम 'ओरायन या वैदिक प्राचीनता की खोज' है.
लेकिन जेल का यह प्रवास उनके लिए इतना कष्टकारी था कि सिर्फ 4 महीने में उनका वजन 30 पाउंड घट गया था. लेकिन यह तिलक का मजबूत मनोबल ही था कि वे जेल की तमाम कठिनाइयों के बीच कालजयी लेखन कर सके और यह भी उनके लेखन का दम ही था कि जर्मन विद्वान मैक्समूलर ओरायन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तिलक के लिए मध्यस्थता करते हुए उन्हें जेल से मुक्ति दिलाने का घोर समर्थन किया था.
लेखिका जेल सुधारक हैं और तिनका तिनका की संस्थापक.
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)