सदैव अटल रहेंगे `भारत रत्न` अटल
बीजेपी के संस्थापक सदस्य और राजनीतिक क्षितिज में अति सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। बता दें कि वाजपेयी के 90 साल के होने के एक दिन पहले उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा नरेंद्र मोदी सरकार ने की थी। यह कहना कोई बड़ी बात नहीं होगी कि वाजपेयी केवल भारतीय राजनेता ही नहीं हैं, बल्कि वे एक अंतरराष्ट्रीय शख्सियत हैं, जिन्हें हर कोई सम्मान और प्यार करता है। चाहे कोई अपनी पार्टी को हो या विरोध पार्टी का, हर कोई उनकी शख्सियत का आज भी कायल है। आज भी संसद में या अन्य सार्वजनिक मंचों पर विरोधी पार्टी के नेता वाजपेयी का गुणगान करने से नहीं चूकते। उनके शब्दों का भाव यदि गौर से देखें तो यह पता चलता है कि उनके जैसा राजनेता कोई और नहीं। वाजपेयी को सम्मान मिलना कुछ ऐसा है कि 'भारत रत्न' हमेशा 'अटल' ही रहेगा।
यह पूरे देश के लिए गर्व की बात है कि उन्हें भारत रत्न प्रदान किया गया। उनका व्यक्तित्व, उनकी भाषण देने की कला, उनकी ईमानदारी और विनम्रता उनकी महानता को दिखाता है। इस महान शख्सियत के राजनीतिक जीवन में कई उपलब्धियां जुड़ीं, जिसकी अहमियत कई मायनों में काफी बड़ी हैं। उन्होंने देश के राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में एक अमिट छाप छोड़ी। संसद में दिए गए उनके भाषण समकालीन व नई पीढ़ी के सांसदों के लिए सदा प्रेरणा के स्त्रोत रहे। वाजपेयी अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते भारतीय राजनीति के शिखर पर पहुंचे और अपनी वाकपटुता से विरोधियों को भी अपना मुरीद बनाया। भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक, कवि और कई भाषाओं के ज्ञाता वाजपेयी गांधी-नेहरू परिवार के बाहर देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे। वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। वाजपेयी ने 2005 में राजनीति से संन्यास ले लिया। उस दौरान संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वाजपेयी को वर्तमान राजनीति का भीष्म पितामह कहा था।
2013 में जब यूपीए सरकार ने क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुललकर और वैज्ञानिक सीएनआर राव को भारत रत्न देने की घोषणा की थी तो बीजेपी ने उस समय राष्ट्र के प्रति वाजपेयी के योगदान को नजरअंदाज करने के लिए कांग्रेस की आलोचना की थी। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लाल बाहदुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के अलावा सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर सहित 43 लोगों को अब तक भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरे से जुड़े होने के बावजूद वाजपेयी की एक धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी छवि है। उनकी लोकप्रियता भी दलगत सीमाओं से परे है। जिक्र योग्य है कि पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले वाजपेयी कांग्रेस से बाहर के पहले प्रधानमंत्री हैं। वाजपेयी 1998 से 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इन दिनों वे उम्र से जुड़ी बीमारियों के चलते इन दिनों सार्वजनिक जीवन से दूर हैं। एक राजनेता के रूप में वाजपेयी की सराहना की जाती है और अक्सर उनका जिक्र बीजेपी के एक उदारवादी चेहरे के रूप में होता है।
वाजपेयी का जन्म 1924 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी हिन्दी एवं ब्रज भाषा के कवि थे तथा गांव के स्कूल में शिक्षक का कार्य करते थे। इस तरह वायपेयी को काव्य विरासत में मिली। वह एक अदद पॉलीटिशियन के साथ-साथ कवि हृदय थे। उनकी कविताएं भी खासी लोकप्रिय हुईं। उनकी ऐसी कई कविताएं हैं जो गहरा संदेश देती हैं। जैसे 'रार नहीं ठानूंगा, हार नहीं मानूंगा काल के कपाल पर, लिखता चला जाऊंगा'।
वाजपेयी राजनीति शास्त्र में एमए करने के उपरांत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्णकालिक सदस्य बन गए। वाजपेयी 1942 में राजनीति में आए जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए। उन्होंने 1951 में आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई। अपनी कुशल वक्तृत्व शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया। वैसे लखनऊ में एक लोकसभा उप चुनाव में वो हार गए थे। बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे। उनके असाधारण व्यक्तित्व को देखकर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा।
साल 1968 में वाजपेयी राष्ट्रीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। वर्ष 1975-77 में आपातकाल के दौरान वाजपेयी अन्य नेताओं के साथ उस समय गिरफ्तार कर लिए गए। जेल से छूटने के बाद उन्होंने जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया। 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वह मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में विदेश मंत्री बने। विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऐसे नेता है जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासंघ को हिन्दी भाषा में संबोधित किया। 1980 में वाजपेयी बीजेपी के संस्थापक सदस्य बने और पार्टी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के कारण गिर गई। 1998 में दोबारा हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्य पार्टियों के सहयोग से वाजपेयी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का गठन किया और फिर प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 13 महीनों तक चली। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी फिर से सत्ता में आई और इस बार वाजपेयी ने अपना कार्यकाल पूरा किया। वाजपेयी पहले जनसंघ फिर बीजेपी के संस्थापक अध्यक्ष रहे। तीन बार प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी के समय देश की आर्थिक विकास दर तेज रही। वह देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री बने, जिनका कांग्रेस से कभी नाता नहीं रहा। साथ ही वह कांग्रेस के अलावा के किसी अन्य दल के ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। उनके प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं, जिसमें कारगिल युद्ध, दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू करना, संसद पर आतंकी हमला और गुजरात दंगे प्रमुख हैं। गुजरात दंगों के समय ही उन्होंने तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म पालन करने की सलाह दी थी। इससे समझा जा सकता है कि वाजपेयी किस तरह सामाजिक जीवन में पूरी निष्पक्षता से अपनी राय रखते थे।
कई नेताओं का यह मानना है कि वाजपेयी के नेतृत्व में काम करना ‘सम्मान’ की बात थी। इनका यह भी मानना है कि वह देश के कद्दावर नेता हैं। वह एक ऐसे उत्कृष्ट नेता हैं जिन्होंने देश हित में अथक काम किया। वाजपेयी के राजनीतिक जीवन में यूं तो अनेक लोग आए लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी के साथ उनकी जो जोड़ी बनी आज भी भारतीय राजनीति में एक मिसाल है। आडवाणी वाजपेयी के साथ उनके सचिव के रूप में जुड़े थे और धीरे-धीरे उनकी दोस्ती और राजनीतिक समझबूझ ने जनसंघ और फिर भाजपा को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित किया। आडवाणी के साथ वाजपेयी के मतभेदों की अनेक अटकलें लगीं लेकिन हर बार वे अटकल बनकर ही रह गईं। राम मंदिर आंदोलन के दौरान आडवाणी भाजपा के कद्दावर नेता के रूप में उभरे लेकिन उन्होंने अपनी दोस्ती और वाजपेयी के राजनीतिक कद का सम्मान करते हुए उन्हें पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। वाजपेयी ने भी दोस्ती के धर्म का निर्वाह करते हुए आडवाणी को उप प्रधानमंत्री बनाया।
करिश्माई नेता, ओजस्वी वक्ता और प्रखर कवि के रूप में प्रख्यात वाजपेयी को साहसिक पहल के लिए भी जाना जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री के रूप में उनकी 1999 की ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा शामिल है, जब पाकिस्तान जाकर उन्होंने वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए।
अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि कोई अपना दोस्त बदल सकता है लेकिन पड़ोसी नहीं। उनके कहने का आशय था कि उस समय की एनडीए सरकार की मंशा पाकिस्तान के साथ दोस्ताना संबंध की थी। हालांकि वो अब भी है, लेकिन वाजपेयी की ये पहल कई मायनों में अहम थी। 90 के दशक के अंतिम वर्षों में वाजपेयी ने पड़ोसी देश के साथ शांति प्रकिया की पहल की थी और पाकिस्तान की तरफ दोस्ती के हाथ बढ़ाए थे। वह न केवल पाकिस्तान के साथ दोस्ताना संबंध चाहते थे बल्कि दोनों देशों के लोगों के दिलों में एक दूसरे के लिये प्यार चाहते थे। हालांकि ये अलग बात है कि बाद में भारत को बदले में कारगिल का युद्ध मिला।
अटल जी के कार्यकाल में भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न देश बना, आर्थिक क्षेत्र में लगातार प्रगति हुई, महंगाई काबू में रहा, विदेशी मुद्रा का भंडार तेजी से बढ़ा और पूंजीगत निवेश की भी भरमार रही। लेकिन अटल जी जैसे व्यक्तित्व को केवल राजग के सफल प्रधानमंत्री के दायरे में रखकर आंकना इस युगपुरुष के साथ अन्याय ही होगा। वह सदा बहुआयामी प्रतिभा के धनी के रूप में जाने जाते रहे हैं। उनका लंबा संसदीय जीवन राजनीतिक क्षेत्र के काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनुकरणीय रहा है।
इसमें कोई दोराय नहीं हो सकती कि अटल जी के नेतृत्व में छह साल तक चली एनडीए की सरकार का कार्यकाल सुशासन का युग माना जाता है। विशेष तौर पर, विभिन्न विचारधाराओं वाले कई राजनीतिक दलों को लेकर जिस प्रकार अटल जी ने एक स्थिर और स्वच्छ सरकार चलाई, वह अपने आप में शासन करने का अनूठा उदाहरण है। पूरा देश आज इस सम्मान पर गौरवान्वित कर रहा है। वास्तव में भारत रत्न अटल तो 'अटल' ही रहेंगे।