सपनों के `बजट` में घुमड़ता किसान
वित्त वर्ष 2016-17 के लिए संसद में पेश किए गए केंद्रीय बजट में मोदी सरकार ने अगले पांच वर्षों में किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य तय किया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा आज पेश किए गए बजट की यह सबसे अहम बात है। हालांकि बजट का अर्थशास्त्र कैसे काम करता है इस मामले में मेरी समझ कमजोर है, बावजूद इसके आगामी पांच साल में किसानों की आय को दोगुना करने का सरकार का विचार एक सपने जैसा मालूम पड़ता है। इसलिए जरूरी था, वित्त मंत्री अरुण जेटली देश को यह बताने का साहस करते कि यह लक्ष्य कैसे हासिल किया जाएगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पांच साल में हर वर्ष खेती की आय में करीब 14 फीसदी सालाना बढ़ोतरी की जरूरत होगी। आगे बढ़ने से पहले हम एक नजर खेती और किसानी को सरकार ने बजट में क्या-क्या दिया है, जान लें।
जेटली ने किसानों और कृषि पर बजट को फोकस करते हुए अपने बजट भाषण में कहा कि 'कृषि एवं किसानों के कल्याण के लिए 35,984 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। सरकार का मकसद जल संसाधनों के अधिकतम उपयोग की समस्या को दूर करने, सिंचाई के लिए नए बुनियादी ढांचे का निर्माण करने, उर्वरक के संतुलित उपयोग के साथ मृदा उर्वरता को संरक्षित करने एवं कृषि से बाजार तक संपर्क मुहैया कराने का है। उन्होंने कहा कि '141 मिलियन हेक्टेयर शुद्ध खेती वाले क्षेत्रों में से केवल 65 मिलियन हेक्टेयर ही सिंचित हैं। इस बारे में, उन्होंने 'प्रधानमंत्री सिंचाई योजना' की घोषणा की जिससे कि अन्य 28.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के साथ लाने के लिए मिशन मोड में लागू किया जा सके। एआईबीपी के तहत 89 परियोजनाओं को फास्ट ट्रैक किया जाएगा जो अन्य 80.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के तहत लाने में मदद करेगा। इन परियोजनाओं में से 23 को 31 मार्च 2017 से पहले पूरा कर लिया जाएगा। इस मद में अगले वर्ष 17 हजार करोड़ रुपए और अगले पांच वर्षों में 86,500 करोड़ रुपए की जरूरत होगी।
वित्त मंत्री ने घोषणा की कि लगभग 20 हजार करोड़ रुपए की प्रारंभिक कार्पस राशि से नाबार्ड में एक समर्पित दीर्घावधि सिंचाई निधि बनाई जाएगी। बहुपक्षीय वित्त पोषण के लिए 6 हजार करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से भूजल संसाधनों के ठोस प्रबंधन के लिए एक ऐसे ही कार्यक्रम का भी प्रस्ताव रखा गया है। इसके अलावा मार्च 2017 तक 14 करोड़ कृषि जोतों के कवरेज को मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के लिए लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। यह किसानों को उर्वरक का उचित उपयोग करने में मदद करेगा। उन्होंने कहा कि 'उर्वरक कंपनियों के 2,000 मॉडल खुदरा विक्रय केंद्रों को अगले तीन वर्षों में मृदा एवं बीज परीक्षण सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी।
वित्त मंत्री के मुताबिक यह सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है कि किसानों को पर्याप्त और समय पर ऋण मिले। उन्होंने कहा, ‘वित्त वर्ष 2015-16 में 8.5 लाख करोड़ रुपए के लक्ष्य के मुकाबले 2016-17 में कृषि ऋण का लक्ष्य 9 लाख करोड़ रुपए होगा जो आज तक का उच्चतम स्तर है।’ किसानों के ऋण भुगतान का बोझ कम करने के लिए वित्त मंत्री ने कहा कि ब्याज छूट के लिए 2016-17 के बजट में 15,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।
जैविक खेती के तहत 5 लाख एकड़ वर्षा जल क्षेत्रों को लाने के लिए 'परंपरागत कृषि विकास योजना' की घोषणा की गई है। इसी वर्ष 14 अप्रैल को डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर के जन्मदिवस पर एकीकृत कृषि विपणन ई-मंच राष्ट्र को समर्पित किया जाएगा। इसके तहत सभी किसानों तक न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए तीन विशिष्ट पहलों को अमल में लाया जाएगा जिसमें खरीदारी का विकेन्द्रीकरण, एफसीआई के माध्यम से ऑनलाइन खरीदारी प्रणाली और दालों की खरीदारी के लिए प्रभावी प्रबंध करना शामिल है।
दुग्ध उत्पादन को अधिक लाभकारी बनाने के लिए पशुधन संजीवनी, नकुल स्वास्थ्य पत्र, उन्नत प्रजनन प्रौद्योगिकी, ई-पशुधन हॉट और देसी नस्लों के लिए राष्ट्रीय जीनोमिक केन्द्र की स्थापना करने की भी घोषणा बजट में की गई है। इन परियोजनाओं में अगले कुछ वर्षों के दौरान 850 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इसके अलावा जेटली ने ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं को ग्रांट इन एड के रूप में 2.87 लाख करोड़ रुपए आवंटित करने की घोषणा की। ऐसा 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार किया गया है और यह राशि पिछले पांच वर्ष की तुलना में 228 प्रतिशत अधिक है। दीन दयाल अंत्योदय मिशन को प्रत्येक सूखाग्रस्त विकास खंड में और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को ऐसे ही जिलों में शुरू किया जाएगा।
खेती और किसानी के लिए सरकार द्वारा बजट में की गई इन बातों से तो समझ में नहीं आया कि पांच साल में किसानों की आय दोगुनी कैसे हो जाएगी। ये तो बस कृषि क्षेत्र को आवंटित बजट राशि में किस मद में कितना खर्च होना है उसका ब्योरा बताया गया है। इस बजट राशि से सीधे तौर पर किसानों का कोई भला नहीं हो सकता। हां! खेती और किसानी क्षेत्र को बेहतर बनाने के लिए धीरे-धीरे एक ढांचा जरूर खड़ा होगा जिसका फायदा एक वक्त के बाद किसानों को मिलेगा। देश का किसानों इस वक्त जिन हालातों से गुजर रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। दो दिन पहले आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया कि औसतन एक किसान की सालाना आमदनी 20 से 30 हजार रुपये है। तो क्या ये मानें कि पांच साल बाद इस किसान की सालाना आमदनी 40 हजार से 60 हजार रुपए हो जाएगी। अगर हो भी गई तो क्या इस बात का दावा किया जा सकता है कि महंगाई का आंकड़ा दोगुना या उससे अधिक नहीं होगा।
दूसरी अहम बात यह कि खेती-किसानी पर लगातार आपदा की वजह से किसान भीषण कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक घाटे का सौदा होने की वजह से हर रोज ढाई हजार किसान खेती छोड़ रहे हैं और हर दिन 50 के करीब किसान मौत को गले लगा रहे हैं। और तो और, देश में अभी किसानों की कोई एक परिभाषा भी नहीं है। वित्तीय योजनाओं में, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो और पुलिस की नजर में किसान की अलग-अलग परिभाषाएं हैं। ऐसे में किसान हितों से जुड़े लोग उम्मीद जता रहे थे कि आम बजट में गांव, खेती और किसान के अस्तित्व को बचाने के लिए सकारात्मक तौर पर फौरी राहत देने वाली कोई पहल होगी। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के पिछले 5 वर्षों के आंकडों के मुताबिक सन् 2009 में 17 हजार, 2010 में 15 हजार, 2011 में 14 हजार, 2012 में 13 हजार और 2013 में 11 हजार से अधिक किसानों ने खेती-बाड़ी से जुड़ी तमाम दुश्वारियों समेत अन्य कारणों से आत्महत्या की राह चुन ली। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या की दर सबसे अधिक रही है।
यह उस देश के लिए बहुत दुर्भाग्य की बात है जहां की 60 प्रतिशत आबादी खेती-किसानी से गुजारा करते हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए था कि जिस तरह से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को उबारने के लिए एक लाख करोड़ से अधिक की राशि का बजट में प्रावधान किया गया, उसी तरह से किसानों का कर्जा माफ करने के लिए बजट में यथोचित धनराशि का प्रावधान किया जाता। सब-कुछ अगर किसान के लिए किया जा रहा है तो उस किसान को बचाने का काम तो पहले किया जाना चाहिए। बजट में इसके लिए तात्कालिक राहत जैसी कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है। हां थोड़ी राहत जरूर मिल सकती है कर्ज पर ब्याज माफी के मद में 15 हजार करोड़ रुपये से, लेकिन यह तो ऊंट के मुंह में जारी के समान है।
कुल मिलाकर कहें तो देश एक बड़े संकट की तरफ बढ़ रहा है जहां कोई किसानी नहीं करना चाहता, लेकिन भोजन सबको चाहिए। इस गम्भीर विषय पर समय रहते सरकारों को संजीदा होना होगा और व्यावहारिक रणनीति बनानी होगी।’ विशेषज्ञों का भी मानना है कि आने वाले दशकों में खाद्यान्न जरूरतों में वृद्धि के चलते वैकल्पिक खाद्य वस्तुओं, मसलन डेयरी उत्पादों, मत्स्य व पोल्ट्री उत्पादों के विकल्पों पर भी ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि खेती के समानांतर रोजगार के नऐ विकल्पों की जरूरत महसूस की जा रही है। जब औद्योगिक उत्पादन लगातार उतार चढ़ाव झेल रहा है ऐसे में अर्थव्यवस्था को आधार प्रदान करने वाले कृषि क्षेत्र के लिए मौसम की बेरूखी के कारण खाद्यान्न उत्पादन में कमी की आशंका संकट की स्थिति का संकेत दे रही है।