बासु चटर्जी- जिनके ‘हीरो’ न राजेश खन्ना थे न अमिताभ!
बासु चटर्जी के साथ ही हिंदी सिनेमा की मिडिल क्लास पहचान चली गई.
किसी स्टार का देहांत हो तो टीवी से लेकर अखबारों और मैगजीन तक... हर जगह खबर होती है. अच्छी पैकेजिंग के साथ शो बनाए जाते हैं. खूबसूरत तस्वीरों से सजे आर्टिकल्स छपते हैं, लेकिन उन लोगों की मौत खबर नहीं बन पाती, जो पर्दे के पीछे रहते हैं. हां अगर उनके नाम के आगे शोमैन जैसा कोई टाइटल जुड़ा हो, तो जरूर उनकी बात होती है, लेकिन अगर उन्होंने शो बिजनेस में रहकर भी अपनी फिल्मों या किरदारों के जरिए show off न किया हो, तो उनकी कोई बात नहीं करता. मौत तो दबे पांव आती ही है... उनकी खबर भी शोर नहीं मचाती.
गुम हुई मिडिल क्लास आवाज
इसलिए आज हम आपको उस फिल्ममेकर के बारे में बता रहे हैं, जिसके निधन के साथ ही हिंदी सिनेमा की मिडिल क्लास पहचान चली गई. ऋषिकेश मुखर्जी की ही तरह बासु चटर्जी की फिल्मों में भी कुछ भी Larger than life नहीं था. वो आम लोगों की कहानी कहते थे. आम आदमी की जिंदगी को सिल्वर स्क्रीन पर दिखाते थे. उनकी फिल्मों का हीरो अकेले 10 गुंडों को नहीं मारता था, न ही अपनी प्रेमिका को खुश करने के लिए लंबे-लंबे डायलॉग्स वाली शायरी बोलता था.
उनकी फिल्मों के हीरो-हीरोइन एक गाने में 10 बार costume नहीं बदलते थे. देखा जाए तो उनकी फिल्मों में सिर्फ किरदार होते थे, जो कहानी में ऐसे फिट हो जाते थे कि दर्शकों को लगता था जैसे उनके आस-पास के ही तो ये लोग हैं जो बड़े पर्दे पर दिख रहे हैं. दरअसल, आम बातें ही बासु चटर्जी और उनकी फिल्मों को खास बनाती थीं.
सादगी में ही सुंदरता
70-80 के दशक में जब प्रकाश मेहरा, मनमोहन देसाई, रमेश सिप्पी और यश चोपड़ा जैसे निर्देशकों की फिल्मों का दौर था. उस वक्त बासु चटर्जी ने अपनी अलग पहचान बनाई. एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन की आंधी के बीच भी अमोल पालेकर को एक ऐसे पेड़ की तरह खड़ा किया जिसे कोई हिला नहीं पाया. बासु चटर्जी की फिल्मों के रोमांस में मासूमियत थी, कॉमेडी में मर्यादा थी, भारतीय संस्कारों की झलक थी, समाज की गलतियों पर कटाक्ष था, आम लोगों की आम परेशानियों का ज़िक्र था. वो मानते थे कि सादगी में ही सुंदरता है और यही सादगी उनकी हर फिल्म में नजर आई.
बासु चटर्जी ने देव आनंद, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी जैसे स्टार्स को भी जब अपनी फिल्मों में लिया तो उन्हें साधारण किरदारों में ढाल दिया. राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के साथ भी फिल्में बनाईं, लेकिन किसी स्टार के पीछे भागना उनकी आदत नहीं बनी. उन्होंने दूरदर्शन के लिए शोज भी बनाए, जिनमें बेहतरीन कहानी और दमदार एक्टिंग को ही अहमियत दी गई. बासु चटर्जी ये बात जानते थे कि उनका काम भारत के मध्यम वर्ग का आइना है और उस आइने पर उन्होंने कभी धूल नहीं चढ़ने दी.
बासु चटर्जी अब हमारे बीच भले ही न हों, लेकिन साधारण को असाधारण बनाने वाला उनका काम हमेशा रजनीगंधा के फूलों की तरह महकता रहेगा.
(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के निजी विचार हैं)