अदालतों में कोर्ट मैनेजर से सेवाएं लेने में क्या कठिनाइयां आएंगी... (भाग- 2)
किसी भी संगठन या प्रणाली के सिर्फ एक क्षेत्र को पेशेवर रूप से व्यवस्थित नहीं किया जा सकता. पूरी व्यवस्था में सुधार प्रक्रिया एक साथ शुरू किए बिना अपेक्षित परिणाम मिलना मुश्किल है.
भारत की अदालतों में कोर्ट मैनेजर की नियुक्तियों का सिलसिला शुरू करने के पहले प्रशासनिक अधिकारियों को सबसे पहले यह तो जानना समझना ही होगा कि प्रशिक्षित मैनेजरों क्या पढ़ाया और सिखाया जाता है. यानी उनकी कौन सी योग्यता या हुनर का इस्तेमाल अदालतों की दक्षता बढ़ाने में किया जा सकता है. बेशक मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी के विभिन्न क्षेत्रों में अभी न्याय व्यवस्था के क्षेत्र शामिल नहीं हैं. लेकिन किसी भी काम के लिए मैनेजर के मुख्य कार्य जरूर तय हैं. मैनेजमेंट के पाठ्यक्रम में मैनेजर के मुख्य कार्य सबसे पहले पढ़ाए जाते हैं. और उनका प्रशिक्षण उसी मकसद से होता है.
मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी का कार्यक्षेत्र
मैनेजर के कार्यों की सूची एक प्रतिष्ठान, संस्था या संगठन को प्रभावी रूप से चलाने के लिए मैनेजर का कार्यक्षेत्र तय करती है. न्यायालय भी एक संस्था ही हैं. और इनके प्रबंधकीय कार्यों की सूची भी पेशेवर तरीके अपनाकर ही बन सकती है. इस प्रौद्योगिकी के प्रशिक्षाणिर्थियों को आजकल आमतौर पर प्रबंधन में मुख्य कार्यों की जो सूची बताई जाती है उसे ‘POSDCORB’ के नाम से जाना जाता है.
इसके पहले अक्षर पी का मतलब है प्लानिंग यानी योजना. दूसरे अक्षर ओ से ऑर्गेनाइजिंग यानी संयोजन. एस यानी स्टाफिंग यानी सही उम्मीदवारों का चुनाव करके नियुक्तियां कराना. डी से डायरेक्टिंग यानी काम की दिशा और उसे करने का तरीका तय कराना. सीओ से मतलब है कंट्रोलिंग यानी पर्यवेक्षण और प्रशिक्षण से काम की गति और परिणाम को नियंत्रित रखना. आर यानी रिपोर्टिंग यानी डेटाबेस बनाना और प्रगति विवरण तैयार करना. और अंत में बी से आशय है बजटिंग यानी सुचारू रूप से किसी काम पर होने वाले खर्च का अनुमान.
कायदे से इन्हीं कार्यों की सूची को न्यायायिक कार्यों के आधार पर परिभाषित कर कोर्ट मैनेजरों के लिए जॉब प्रोफाइल और जॉब डिस्क्रिप्शन बनाने का काम सबसे पहले होना चाहिए. उसी के बाद न्यायालयों में उपयुक्त मैनेजरों का चुनाव हो पाएगा.
कौन सी कठिनाइयों के लिए तैयार रहना पड़ेगा
अब तक का अनुभव यह है कि किसी भी संगठन या प्रणाली के सिर्फ एक क्षेत्र को पेशेवर रूप से व्यवस्थित नहीं किया जा सकता. पूरी व्यवस्था में सुधार प्रक्रिया एक साथ शुरू किए बिना अपेक्षित परिणाम मिलना मुश्किल है. एक कोर्ट मैनेजर का कार्य अदालत के दूसरे अधिकारियों के काम पर भी निर्भर होगा. बल्कि कोर्ट मैनेजर एक तरह से कोर्ट के बाकी अधिकारियों और जजों के काम को व्यवस्थित रूप से करने का तरीका भी सुझा रहा होता है. ऐसा कर पाने के लिए उसे अधिकारियों की भागीदारी और सहयोग की भी जरूरत पड़ती है. और तभी वह विभिन्न अधिकारियों के काम को और उसमें आने वाली मुश्किलों को समझ पाता है.
कोर्ट मैनेजर की अब तक की व्यवस्था की कोई समीक्षा या स्थिति का विश्वसनीय अध्ययन उपलब्ध नहीं है. फिर भी सामान्य अनुभव है कि कोर्ट परिसर में जब एक नया मैनेजर पहुंचता है या पहुंचेगा तो उसके सामने अपने पदक्रम से लेकर अधिकार तक की दुविधा आ जाती है. यह अंदेशा स्वाभाविक है कि अदालत के प्रशासनिक या मैनेजरीय कार्यों को पेशेवर लोगों को सौंपे जाने को जज और कोर्ट के दूसरे अधिकारी अपनी शक्तियों या अधिकारों के अतिक्रमण के रूप में देखेंगे.
प्रशासनिक जगत की यह ऐसी विकट और जटिल समस्या है जिसके लिए विशेषज्ञ सेवाएं तक ली जाने लगी हैं. दरअसल किसी भी संस्था में जब कोई बदलाव लाने की कोशिश की जाती है तो परिवर्तन के प्रति प्रतिरोध एक सामान्य नियम है. इसीलिए अंदेशा है कि कई वर्षों से कार्यरत कोर्ट स्टाफ को अपने काम में किसी नए व्यक्ति का दखल स्वीकार कर पाने में असहजता होगी.
अनुभवसिद्ध ज्ञान और वैज्ञानिक तरीके से अर्जित ज्ञान का द्वंद्व स्वाभाविक है. नए सिरे से प्रशिक्षण और नई तकनीक को अपनाने की प्रक्रिया में अड़चनें आती हैं. इसीलिए बदलाव लाने की सुविचारित प्रक्रिया भी तय होने लगी है. इसके लिए मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी में चेंज मैनेजमेंट का व्यवस्थित पाठ उपलब्ध है. प्रशासनिक अधिकारियों के चेंज मैनेजमेंट की मुख्य बातें भी समझ लेनी चाहिए.
भरीपूरी टीम का सवाल
एक और बड़ी दिक्कत कोर्ट मैनेजर्स की संख्या या टीम की होगी. एक संस्था के प्रबंधन के लिए भरीपूरी टीम की जरूरत पड़ती है. ऐसी टीम में मैनेजरों के साथ साथ उस क्षेत्र के जानकारों की ज़रूरत भी पड़ती है जो नीतियों और मानकों के निर्माण में मदद कर सकें. इसके लिए या तो हम कानून के छात्रों को ही प्रबंधन का पाठ भी पढ़ाकर उन्हें इस काम के लिए तैयार करें या फिर अदालतों में कार्यरत स्टाफ में से सुपात्रों को टीम का हिस्सा बनाया जाए और उन्हें प्रशिक्षित किया जाए. सकारात्मक बात यह है कि अदालतों में कार्यरत लोग ऐसे प्रशिक्षण के लिए तैयार बताए जाते हैं.
जरा महंगा भी है यह काम
अभी तो हमारे पास कोर्ट प्रबंधन में प्रशिक्षण की औपचारिक व्यवस्था ही नहीं है. हालांकि एक कोशिश जरूर हुई थी. मसलन कोर्ट मैनेजमेंट का पाठ्यक्रम हैदराबाद की NALSAR लॉ यूनिवर्सिटी में शुरू किया गया था. लेकिन उसके छात्रों को अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियां न मिल पाने की वजह से वह पाठ्यक्रम भी बंद होने की कगार पर आ गया. ठेके पर परामर्शक सेवाओं वाले इस दौर में एक और परेशानी फुल टाइम मैनेजर न रखने की है. कई न्यायालयों में टेम्परेरी या कुछ समय के लिए ठेके पर मैनेजर रखे गए.
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कोर्ट एडमिनिस्ट्रेशन में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक़ 2017 में यह स्थिति थी कि देश में एक भी कोर्ट मेनेजर ऐसा नहीं था जिसने 4 साल से ज्यादा का कार्यकाल पूरा किया हो. यानी जरूरत नियमित मैनेजरों की पड़ेगी. क्योंकि न्याय प्रणाली और उसकी प्रक्रिया जटिल होती है लिहाजा कानून के छात्रों तक को उसे ठीक से समझने में कई कई साल लग जाते हैं.
मसले का लब्बोलुआब यह निकलता है कि न्यायालय मैनेजर की परिकल्पना तो अच्छी है. लेकिन इसके क्रियान्वन की कोई व्यवस्थित योजना अभी सरकार या न्यायालयों ने विकसित नहीं कर पाई है. लिहाजा सुझाव यह बनता है कि प्रबंधन के प्रशिक्षित लोगों को नियुक्त करने के लिए भी प्रबंधन की विशेषज्ञ सेवाएं चाहिए और इन कोर्ट मैनेजर के काम करने के लिए अदालतों में अनुकूल परिस्थितियां बनाने का काम भी प्रबंधन के विशेषज्ञ ही कर पाएंगे.
(लेखिका, मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ और सोशल ऑन्त्रेप्रेनोर हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं)