आपने महसूस किया होगा कि संवाद के दौरान किसी व्‍यक्‍ति का जिक्र करते ही अचानक आपका मूड बदल जाता है. एक शब्‍द जो एक नाम है, उसके जिक्र से पूरा माहौल बदल जाता है. ऐसा लगता है मानो किसी नदी में चल रही अच्‍छी भली यात्रा के दौरान नाविक ने अचानक नाव की दिशा मोड़ने का फैसला कर लिया हो. अचानक ही नाव उस दिशा की ओर बढ़ चली जहां कोई नहीं जाना चाहता था.


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यह कोई महीने, दो महीने भर की बात नहीं होती कि नाराजगी का स्‍तर दिमाग में उफनता रहे. बरस दर बरस यह सिलसिला चलता रहता है. यहां तक कि लोग मिलते नहीं, उनके बीच बात नहीं होती फिर भी उनके मन में किसी व्‍यक्‍ति विशेष के लिए नकारात्‍मकता का जाल बुनता चला जाता है.


जयपुर से 'डियर जिंदगी' के पाठक शेखर तिवाड़ी ने लिखा. वह कुछ रोज पहले दिल्‍ली आए. यहां एक कार्यक्रम में उनकी मुलाकात उनके पूर्व बॉस से हुई. जिनके कारण कोई एक दशक पहले उनकी नौकरी गई. क्‍योंकि दोनों के बीच कोई तीसरा नहीं था. अगर था भी तो उसकी भूमिका उतनी अहम नहीं थी.


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इस नौकरी के जाने का शेखर पर गहरा असर हुआ. उनका करियर पटरी से उतर गया. बढ़ती ईएमआई और कर्ज के कारण उनको अपना मकान बेचना पड़ा. आर्थिक और मानसिक रूप से उनके लिए यह कष्‍टकारी समय रहा.


एक दशक तक शेखर अक्‍सर उस व्‍यक्‍ति के जिक्र से परेशान रहते थे. आते जाते कई बार नजरें मिलीं लेकिन संवाद नहीं हुआ. अब जबकि दोनों मिले तो कोई दस मिनट तक बात हुई. सहजता से. अब शेखर खुद लगभग पूर्व बॉस जैसी ही हैसि‍यत रखते हैं. शेखर को भी एक दशक में कुछ ऐसे ही निर्णय लेने पड़े जो दूसरों को अप्रिय लगे. लेकिन अपने दायित्‍वों का निर्वाह करते हुए उनके पास दूसरा रास्‍ता नहीं था.


शेखर लिखते हैं, 'डियर जिंदगी' प्रेम, स्‍नेह और आत्‍मीयता का संवाद है. लेकिन इसकी सबसे अधिक जरूरी चीज है, क्षमा पर निरंतर संवाद. क्षमा मनुष्‍यता के सबसे अधिक काम की चीज़ है. हमारे दिल-दिमाग पर जिस तरह गुस्‍से, नाराजगी और बदले का जुनून सवार है, वह किसी दूसरे से अधिक खुद हमारा सबसे अधिक नुकसान करता है.'


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शेखर दस बरस की नाराजगी से पूरी तरह मुक्‍त हैं. वह प्रोफेशन और जिंदगी को मिक्‍स नहीं करते. दोनों अपनी-अपनी जगह हैं. यह रिश्‍ता एक दूजे से जितना स्‍वतंत्र रहेगा, जिंदगी उतनी ही सुकून से गुजरेगी.


खुशी है कि हमारी विनम्र कोशिश शेखर की जिंदगी में थोड़ा सा प्रभाव दिखा सकी. अगर आप भी 'डियर जिंदगी' से अपनी जिंदगी में कोई बदलाव महसूस कर रहे हैं. तो उसे जरूर हमसे साझा करें. हो सकता है, उसमें दूसरों के लिए रोशनी बख्‍शने की शक्ति हो.


जो कोई भी हमारे समीप दूसरे के लिए नफरत लिए घूम रहा है, हिंसा और गुस्‍से से भरा वह खुद अपना सबसे अधिक नुकसान कर रहा है. कुछ लोगों के बारे में आपने महसूस किया होगा कि उनके पास आते ही कई बार बिना बात किए आपको अच्‍छा नहीं लगता. कई लोगों की शक्‍ल बिना संवाद के भली नहीं लगती. ऐसा क्‍यों होता है!


ऐसा इसलिए होता है क्‍योंकि हमारी और उसकी समझ (वेवलेंथ) एक स्‍तर पर नहीं होती. इसके साथ ही उसके भीतर मौजूद नकारात्‍मकता (भले ही इसे उसने दूसरों के लिए स्‍टोर किया हुआ हो) का असर उसके चेहरे पर देखा जा सकता है. ऐसे लोगों के समीप ऐसी ऊर्जा होती है, जो दूसरों पर सही असर नहीं डालती. यह महत्‍वपूर्ण नहीं कि आपमें किसके लिए कितनी नफरत, घृणा है, इससे कहीं अधिक जरूरी है कि आपमें दूसरों के लिए नफरत की तुलना में प्रेम कितना अधिक है. जो अधिक होगा. असर उसका ही होगा.


इसलिए अपने पास स्‍नेह, प्रेम और क्षमा का स्‍टॉक रखिए. इसे बढ़ाइए, संजोइए. यह गुस्‍से, क्रोध और नकारात्‍मकता को सोखने, उनसे उबारने में सबसे बड़े सारथी हैं.


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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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