डा. अब्दुल कलाम: परमाणुवीर तुम्हें सलाम...
ऊंचे सपने देखकर उन्हें साकार करने का सबक सिखाने वाले पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल पाकिर जैनुलाबुद्दीन अब्दुल कलाम भले ही दुनिया को अलविदा कहकर अनंत यात्रा पर चले गए हों, लेकिन इस अपूरणीय क्षति की भरपाई लंबे समय तक संभव नहीं होगी। कलाम एक जिंदगी ही नहीं थे, बल्कि पूरी मानवता के लिए पैगाम थे। देश को लेकर कलाम का नजरिया भी खुद में एक मिसाल है। उनकी एक विशेषता यह थी कि वो हमेशा नाकामी से सीखना और फिर उबरना जानते थे। इसी खूबी के चलते उन्होंने मजबूत भारत के ख्वाब को पूरा करने में कामयाबी हासिल की और देश को इतना सशक्त बना दिया कि आज दुनिया भी इसका लोहा मानने लग है। यह साबित करता है कि उनमें दूरदर्शिता और देशभक्ति का जज्बा कूट कूटकर भरा था। वे सही मायनों में एक दूरदर्शी थे और ‘भारत मां के सच्चे बेटे’ थे। इसी को ध्यान में रख 'मिसाइल मैन' के नाम से प्रसिद्ध इस हस्ती ने मजबूत भारत की नींव रखने में उल्लेखनीय योगदान दिया। जिस पर आज पूरे देशवासी को खासा गर्व है।
डा. कलाम का जीवन देश के लाखों युवकों के लिए हमेशा प्ररेणा स्रोत बना रहेगा। कलाम का देश के लिए योगदान बहुमूल्य है और हमेशा रहेगा। इसे यूं समझें कि यदि आज भारत सशक्त हुआ है तो उसमें डा. कलाम का अविस्मरणीय योगदान है। भारत मां का हर लाल उनके योगदान और उपलब्धियों को शायद ही भुला पाएगा। एक वैज्ञानिक के तौर पर, मिसाइल मैन के तौर पर, प्रौद्योगिकी के तौर पर, एक शिक्षक के तौर पर और लीडर के तौर पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र सदैव संजो कर रखेगा। सही मायनों में यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
भारत के परमाणु और अंतरिक्ष कार्यक्रम में ‘मिसाइल मैन’ कलाम के योगदान की तुलना किसी भी चीज से नहीं की जा सकती है। वे ऐसे वैज्ञानिक थे, जिन्होंने भारत की परमाणु क्षमताओं को जबरदस्त तरीके से आगे बढ़ाया। यह देश के लिए गौरव की बात थी कि भारत ने विदेशी शक्तियों की कोई खास मदद लिए बिना अपना परमाणु बम विकसित किया। इसे विकसित कर उन्हें पूरी तरह भारतीय होने का नायाब उदाहरण पेश किया। उन्हीं के नेतृत्व में 1980 के दशक में परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम ‘पृथ्वी’ और ‘अग्नि’ बैलिस्टिक मिसाइलों के डिजाइन बनाए गए। भारत ने जब 1998 में अपने परमाणु हथियारों का परीक्षण किया था तब उन्होंने उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, इस परीक्षण के बाद देश पर प्रतिबंध लगाए गए थे, मगर इस परीक्षण ने भारत में कलाम को जन नायक का दर्जा दिलाने में मदद की। तमिलनाडु में एक गरीब मुस्लिम परिवार में जन्मे कलाम अंतरिक्ष कार्यक्रम विकसित करने के अपने देश में प्रयासों में अग्रणी थे और वह रक्षा तकनीक में भारत को आत्म निर्भर बनाने के मजबूत समर्थक थे। उन्होंने भारत को पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसने देश को अंतरिक्ष के क्षेत्र मे अग्रणी देशों के एक विशिष्ट क्लब में खड़ा किया। यही नहीं, कलाम ने भारत के मिसाइल विकसित करने के कार्यक्रम को भी निर्देशित किया। परमाणु परीक्षण के बाद ही इस विशेष उपलब्धि ने वैश्विक राजनीति में देश के स्थान को मजबूत बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई।
भारत को एटमी ताकत से नवाजने वाले डा. कलाम की कोशिशों की ही बदौलत भारत अंतरिक्ष और मिसाइल कार्यक्रम के क्षेत्रों में प्रमुख शक्ति के तौर पर उभरा। कलाम को नजदीक से जानने वाले यह कहते हैं कि वे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के माध्यम से भारत को और शांतिपूर्ण तथा अधिक समानता वाला तथा मजबूती से उभरते हुए राष्ट्र के तौर पर हुए देखना चाहते थे। उनका जीवन देश के लाखों युवकों के लिए प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।
डा. कलाम साल 2002 से 2007 तक देश के 11वें राष्ट्रपति के तौर पर रहे लेकिन इस अवधि में उन्होंने राष्ट्रपति होने का जैसे मतलब ही बदल दिया था। वे राष्ट्रपति और राष्ट्रपति भवन को लोगों के करीब लेकर आए। राष्ट्रपति के रूप में भी उनका कार्यकाल खासा प्रभावी रहा। राष्ट्रपति पद की कुर्सी संभालने के एक महीने बाद ही उन्होंने सरकार की तरफ से लाए गए चुनाव सुधार विधेयक को वापस कर दिया। मतलब ये कि रबर स्टाम्प माने जाने वाले पद को एक अलग तरह से उन्होंने परिभाषित किया। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने देश के हर एक राज्य का दौरा किया। वैसे तो कलाम स्वभाविक तौर पर एक शिक्षक, एक वैज्ञानिक थे, लेकिन उन्होंने राष्ट्रपति पद पर एक परिपक्व राजनेता की तरह छाप छोड़ी। जिस तरह वे राष्ट्रपति दरबार को आम जनता के करीब लाए, वो बाकी राष्ट्रपतियों के लिए भी एक उदाहरण बन गया। वे कहते भी थे कि देश में असल प्रतिभाएं ग्रामीण भारत में बसती हैं और उन्हें निखारने की जरूरत है। गांव को देश के विकास की धुरी से जोड़ने का उनका एक सपना था। राष्ट्रपति पद से रिटायर्ड होने के बाद भी लोगों के लिए वे प्रेरणास्रोत बने रहे। अंतिम समय तक वो लगातार सक्रिय रहे और ज्ञान की अलख जगाने का काम करते रहे।
कलाम के पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे और पेशे से मछुआरे थे। पांच भाई और पांच बहनों वाले परिवार को चलाने के लिए पिता के पैसे कम पड़ जाते थे इसलिए शुरुआती शिक्षा जारी रखने के लिए कलाम को अखबार बेचने का काम भी करना पड़ा। पढ़ाई को लेकर उनकी लगन और जुनून कुछ ऐसी थी कि आठ साल की उम्र से ही कलाम सुबह 4 बचे उठते थे और नहाकर गणित की पढ़ाई करने चले जाते थे। कलाम अपनी बातों से हमेशा ही युवाओं का मनोबल बढ़ाने का काम किया करते थे। हर युवा के अंदर के जोश को बाहर लाकर उसे देश के लायक कैसे बनाना है वो बखूबी जानते थे। इसलिए हमेशा कुछ न कुछ ऐसा करते या कहते थे जिससे देश का युवा सीधे जुड़ा हुआ महसूस करता था। उनका निधन भी उस दिन हुआ, जिस दिन वे 'क्रिएटिंग ए लाइवेबल प्लेनेट अर्थ' विषय पर व्याख्यान देने गए। यह उनकी जिदंगी का अंतिम व्याख्यान था जो उन्होंने आईआईएम शिलांग के छात्रों को दिया। इसी दौरान उनको दिल का दौरा पड़ा और वो हम सबको छोड़ कर चले गए।
डीआरडीओ के वैज्ञानिक के तौर पर उन्होंने भारत में मिसाइल टेक्नोलॉजी के अगुवा के तौर पर काम किया। उन्हीं की देखरेख में देश में निर्मित पहले प्रक्षेपास्त्र एसएलवी-3 को विकसित किया गया। 1998 के पोकरण परमाणु विस्फोट में भी उनकी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका थी। और उनकी बदौलत ही भारत दुनियाभर में एक एटमी ताकत के रूप में पहचाना जाने लगा। साल 1931 में तमिलनाडु के रामेश्वर में जन्मे इस महान वैज्ञानिक को उम्मीद थी कि 2020 तक भारत दुनिया में एक नई पहचान बना लेगा। उनकी इसी उम्मीद ने उस समय देशवासियों की उम्मीद जगाने का काम किया। डॉक्टर कलाम की देखरेख में भारत ने पृथ्वी, अग्नि जैसी मिसाइलों को विकसित किया और इसकी वजह से चीन और पाकिस्तान भारत की जद में आए।
कुल मिलाकर भारत को सुरक्षा की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने में डॉक्टर कलाम का योगदान बेहद महत्वूर्ण है। देश के लिए दिए गए अमूल्य योगदान के लिए 1997 में उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया था। डॉक्टर कलाम तो हम सब को छोड़कर चले गए लेकिन आधुनिक भारत को बनाने में उनके योगदान को देश सदैव याद रखेगा।