राजनीति के गैंग्स ऑफ वासेपुर
पार्टी का मतलब लोकतांत्रिक इकाई स्तर के कार्यकर्ताओं द्वारा चुना हुआ संगठन जो सदस्यों की सामूहिक राय के आधार पर चलता है.
पार्टी का मतलब लोकतांत्रिक इकाई स्तर के कार्यकर्ताओं द्वारा चुना हुआ संगठन जो सदस्यों की सामूहिक राय के आधार पर चलता है.
गिरोह में आंतरिक लोकतंत्र की कोई जगह नहीं होती.
माफिया सत्तातंत्र के समानांतर अपराधियों का समूह होता है जो व्यवस्था को अपनी जेब में रखता है.
अब इस परिभाषा के बरक्स जांचिए कि देश की चुनावी राजनीति में चलायमान दलों में कौन पार्टी है, कौन गिरोह और कौन माफिया?
मुख्यधारा की कौन सी पार्टियां है, जिनमें आज भी सचमुच आंतरिक लोकतंत्र जिंदा है. वोट देने से पहले इस पैमाने के आधार पर उन्हें जरूर परखिए, जिनके हवाले आप दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश करने जा रहे हैं, क्योंकि जो पार्टी के भीतर लोकतंत्र का लिहाज नहीं करते, यकीन मानिए कि वे संवैधानिक व्यवस्था को भी गिरोह या माफिया के मानिंद हांकने की कोशिश करते हैं.
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एक कहावत आपने सुनी होगी- तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर. इसे चरितार्थ होते हुए देखना है तो देश के किसी कोने में नजर दौड़ाइए. चलिए हाईवोल्ट पॉलिटिकल स्टेट यूपी से शुरू करते हैं. सपा बोले तो मुलायम सिंह, इनका पूरा कुनबा राजनीति में. खुद के लिए मैनपुरी और दूसरे बेटे प्रतीक के लिए आजमगढ़ से पट्टा लिखा है. बहू डिंपल वहीं से जहां से जीत आसान बने.
मुख्यमंत्री के लिए बेटे अखिलेश हैं ही, भाई शिवपाल के कहने ही क्या, पद के लेनदेन में झगड़ा-झांसा खत्म, सरकार बने तो सुपर कबीनामंत्री से कमतर क्या? फिलहाल शैडो ऑफ मुलायम. राज्यसभा के लिए चचा रामगोपाल से बड़ा विद्वान और कौन?
फुफेरे, ममेरे भाई और साले-सरहज सब उसी तरह राजनीति में किसी न किसी पद में हैं, जैसे कि बिहार के लालू यादव के.
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सजा पड़ने पर चुनाव लड़ने से वंचित लालूजी की बेटी मीसा, धर्मपत्नी राबड़ी ही लोकसभा के लिए सबसे मुफीद. तेजस्वी तो राजद के घोषित विक्रमादित्य हैं ही, तेजप्रताप को कुछ भी चलेगा. साले साधू यादव, सुभाष यादव फिलहाल किसी दूसरे दल में खेल खा रहे हैं.
लोजपा के रामविलास पासवान क्यों पीछे रहें. उनकी पार्टी में बेटे चिराग और भाई रामचंद्र के अलावा भी क्या कोई है जो चुनाव लड़ने के लायक हो.
का बरनौं छवि करुणानिधिजी की, उनकी तो बात ही निराली है. इनका कुनबा इतना बड़ा हो गया है कि इनके डीएमके के हर गुट में इन्हीं के बेटे, बेटी, साले नाम बोले तो स्टालिन, अझगिरी, कानीमोझी, मुरासोली मारन, दयानिधि मारन हैं.
महाराष्ट्र मे ठाकरे साहब का कुनबा... उद्धव उनके बेटे, नाते रिश्तेदार, मनसे में भतीजे राज ठाकरे और उनका कुनबा.
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शरद पवार की भी पावर कम नहीं. किसानों को मूत से सिंचाई का तालाब भरने की राय देने वाले मसखरे भतीजे अजीत पवार और बेटी सुप्रिया सुले के बाद ही दूसरों का नंबर.
पंजाब में तो "गॉडफादर" के डॉन कारलोन-टाटग्लिया फैमिली की तर्ज में बादल फैमिली, तो हरियाणा में फैमिली ही फैमिली.
ये देवीलाल की चौटाला फैमिली है, जिसमें उनके बेटे-नाती-पोते नाम बोले तो ओमप्रकाश, अजय, अभय चौटाला हैं.
भजनलाल फैमिली के चंद्रमोहन बिश्नोई अपनी चंद्रमुखी को लेकर सरनाम हो ही चुके हैं.
और ऊपर चलें, जम्मू-कश्मीर की राजनीति तो सईद और अब्दुल्ला फैमिली के दो पाटों में फंसी हुई है.
राजनीति में वंश-परंपरा का जो सजरा कांग्रेस ने तैयार किया था, वो सबको एक रोल मॉडल की तरह भाया, भाजपा को भी.
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अब अपने सूबे में कई नेताओं के कुलदीपक लॉन्च होने के लिए तैयार बैठे हैं. इस पवित्र काम के लिए चमचे-चुरकुन तेल-हल्दी-दूरबा चढ़ा रहे हैं.
अपन मीडिया वाले अभी खंजड़ी बजा रहे हैं.. कल बिगुल भी फूंकेंगे, क्योंकि हमारा मालिक भी इसी परंपरा का है. उसका बेटा भी तो कल चौथाखंभा संभालकर नया मीडियामुगल बनेगा.
देश में दर्जनों राजनीतिक दल हैं जो किसी इंटरप्राइजेज की तरह चल रहे हैं. अब तो एक नया चलन शुरू हुआ है, जिसके पास अकूत दौलत है वे भी बतौर साइड बिजनेस लगे हाथ एक पार्टी रजिस्टर्ड करवा लिया.
और अंत में अपने देश के मतदाता इतने कृपालु हैं कि इन सभी को फलने-फूलने का बराबर मौका देते हैं... इसलिए हर चुनाव में बोलते रहिए लोकतंत्र की जय...जय.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)