बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और ढाका में पाकिस्तानी उच्चायुक्त इमरान अहमद सिद्दीकी के बीच 3 दिसंबर को हुई एक शिष्टाचार मुलाकात से अटकलों का बाजार गर्म हो गया है. शेख हसीना के विरोधी व पाकिस्तान समर्थक इस बैठक से बेहद उत्साहित हैं और अपने निष्कर्ष निकालने में लगे हैं. हालांकि, शेख हसीना ने साफ कर दिया है कि जो अत्याचार पाकिस्तान ने बांग्लादेश पर किए हैं, उसके निशान इतने गहरे हैं कि उन्हें आसानी से भुलाया नहीं जा सकता. शेख हसीना एक चतुर राजनीतिज्ञ हैं और उन्हें सरकार चलाने का लंबा अनुभव है इसलिए वह तोल-मोलकर बोलने में ज्यादा विश्वास रखती हैं.


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पीएम शेख हसीना का स्पष्ट संदेश
अपने पिता और बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान से जुड़े एक गुप्त दस्तावेज का हवाला देते हुए शेख हसीना ने कहा है कि उनके पिता की किताब, खासकर उसका उर्दू संस्करण आज भी पाकिस्तान में बेस्ट सेलर बना हुआ है. जिसमें 1948 से 1971 तक पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेशियों पर किए गए अत्याचारों का जिक्र है. शेख हसीना का यह बयान एक तरह से पाकिस्तान और उसके समर्थकों के लिए स्पष्ट संदेश है कि इस मुलाकात से ज्यादा उम्मीदें न पाली जाएं और इसे भारत-बांग्लादेश के बीच बढ़ती दूरी के संदर्भ में कतई न देखा जाए.


साजिश रच रहे पाकिस्तान-चीन
इसके अलावा, बांग्लादेश ने पाकिस्तान को यह भी समझा दिया है कि दोनों देशों के बीच केवल सामान्य द्विपक्षीय संबंध ही आगे बढ़ सकते हैं. ढाका में पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने प्रधानमंत्री इमरान खान के विचारों से शेख हसीना को अवगत कराया. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि इमरान चीन के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं. बांग्लादेश को लेकर उनकी तरफ से जो भी सक्रियता दिखाई जा रही है, उसमें चीनी सोच साफ नजर आती है.


चीन बांग्लादेश में विशेष रुचि ले रहा है. खासकर 15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसा के बाद से वो बांग्लादेश के अधिक करीब पहुंचना चाहता है और पाकिस्तान उसके लिए एक ब्रिज की तरह है. कुछ वक्त पहले इमरान खान ने अपनी बांग्लादेशी समकक्ष को फोन भी किया था. दरअसल, चीन और पाकिस्तान को लगता है कि भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में गर्माहट खत्म हो रही है और इसलिए वो बांग्लादेश के करीब जाकर भारत विरोधी मंसूबों को अंजाम दे सकते हैं.


पाकिस्तानी मीडिया उत्साहित
टेलीफोन कॉल और ढाका में हुई मुलाकात के बाद इस तरह की बातें फैलाई जा रही हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं. पाकिस्तान द्वारा कई सालों बाद इस वर्ष जनवरी में अपने उच्चायुक्त को ढाका भेजने से भी इस तरह की अफवाहों को बल मिला है. पाकिस्तान 3 दिसंबर की बैठक से बेहद उत्साहित है. पाकिस्तानी मीडिया को लगता है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की गाड़ी अब पटरी पर लौट आई है. उनका यह भी दावा है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने दोनों मुल्कों के रिश्तों को बेहतर बनाने की बात कही है.


कुछ न कुछ अलग पक रहा है
विश्लेषणात्मक रूप से, यह दिसंबर का महीना है जब बांग्लादेश की आजादी के युद्ध को 50 साल पूरे होने जा रहा हैं. बांग्लादेश में 16 दिसंबर को बिजॉय दिवस या विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. बांग्लादेश के निर्माण में भारत के योगदान को शेख हसीना कई मौकों पर स्वीकार कर चुकी हैं और उनका यह भी मानना रहा है कि भारत उनके साथ मजबूती से खड़ा है. हालांकि, फिर भी उनके दिमाग में कुछ न कुछ नया चल रहा है. अगला साल यानी 2021 बांग्लादेश में मुजीब शताब्दी वर्ष के रूप में मनाया जाएगा. इस अवसर पर कई कार्यक्रम आयोजित होने हैं, जिनके लिए तुर्की के राष्ट्रपति सहित कई अंतरराष्ट्रीय नेताओं को न्यौता भेजा जाएगा. यह बात यहां गौर करने वाली है कि तुर्की भी बांग्लादेश को लुभाने वालों की फेहरिस्त में शुमार है.


दोनों स्थितियों में जीत की आस
बांग्लादेश पर करीब से नजर रखने वालों का मानना है कि शेख हसीना एक अलग ताना-बाना बुन रही हैं, जिसमें उन देशों से संपर्क शामिल है जो भारत के विरोधी रहे हैं. दरअसल, शेख हसीना संतुलन बनाए रखना चाहती हैं. वो इस हिसाब से रणनीति बना रही हैं कि भविष्य में यदि भारत के साथ बांग्लादेश के रिश्ते खराब होते हैं तो उनका साथ देने के लिए कई देश मौजूद हों. यानी वो दोनों ही स्थितियों में अपनी जीत देखना चाहती हैं.


बांग्लादेश में आंतरिक गतिरोध
सुरक्षा के दृष्टिकोण से यह देखना महत्वपूर्ण है कि ढाका में पाकिस्तानी उच्चायुक्त केवल औपचारिक बातचीत तक ही सीमित रहें और पहले की तरह ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल न हों, जो भारत के सुरक्षा संबंधी हितों के लिए हानिकारक है. बांग्लादेश इस वक्त आंतरिक गतिरोध से जूझ रहा है. कट्टर इस्लामिक समूहों ने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की प्रतिमा लगाने के खिलाफ आंदोलन चला रखा है, जिसके कारण सत्ताधारी अवामी लीग और कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों के बीच टकराव पैदा हो गया है. कट्टरपंथियों का कहना है कि मूर्तियों को स्थापित करना गैर-इस्लामी है. इसके अलावा फ्रांस को लेकर भी विरोध के स्वर लगातार उठ रहे हैं.


तो कड़ा जवाब देने की जरूरत
बांग्लादेश के जमात-ए-इस्लामी सहित कुछ अन्य चरमपंथी संगठनों को पाकिस्तान का समर्थक माना जाता है. हालांकि, भारत के प्रति शेख हसीना का जो दृष्टिकोण अब तक रहा है, वो नई दिल्ली के लिए किसी खतरे को रेखांकित नहीं करता है. शेख हसीना की सत्ता पर पकड़ मजबूत है और जिस तरह से उन्होंने ढाका की मुलाकात को लेकर बयान दिया है, उससे पाकिस्तान को समझ आ गया होगा कि भारत-बांग्लादेश के बीच खाई खोदने की उसकी हसरत पूरी नहीं हो पाएगी, लेकिन फिर भी यदि पाकिस्तान भारत के हितों को प्रभावित करने के लिए कोई कदम उठाता है तो उसका कड़ाई से जवाब दिया जाना चाहिए.


(लेखक शांतनु मुखर्जी सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और सुरक्षा विश्लेषक हैं. शांतनु मुखर्जी मॉरीशस के प्रधानमंत्री के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी रहे हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी विचार हैं)