श्रीनगर: श्रीनगर (Srinagar) में एक व्यापारी माखन लाल बिंदरू सहित तीन लोगों के मारे जाने के बमुश्किल दो दिन बाद, आतंकवादियों ने श्रीनगर के ईदगाह इलाके में एक अन्य स्कूल पर हमला किया. इस दौरान सभी कर्मचारियों के पहचान पत्रों की जांच करने और यह सुनिश्चित करने के बाद कि स्कूल की प्रधानाचार्य और एक अन्य शिक्षक अल्पसंख्यक समुदाय के हैं, उनकी बर्बरता से हत्या (Murder) कर दी. 


आतंकियों ने कश्मीर में बदली रणनीति


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48 घंटे से भी कम समय में हुई पांच कायराना हत्याओं ने कश्मीर घाटी (Kashmir) में आतंकवादियों के बदलते तौर-तरीकों पर एक और बहस छेड़ दी है. इस तरह का आतंकवादी व्यवहार नया नहीं है. धारा 370 के हटाए जाने और 'ऑपरेशन ऑल आउट' की शुरुआत के बाद से, आतंकी गतिविधियों में कई नए परिवर्तन देखे गए. सबसे पहले, आतंकवाद से सहानुभूति रखने वालों और वित्तपोषितों पर बढ़ती कार्रवाई के कारण, नए आतंकवादियों की भर्ती प्रभावित हुईं. 


दूसरा, चूंकि भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पर तीन स्तरीय सुरक्षा बनाई हुई है, जिससे आतंकवादियों के लिए हथियारों और गोला-बारूद की उपलब्धता कम हो गई. तीसरी बात यह कि अपनी हताशा के कारण, आतंकवादी समूहों ने अभी राजनीतिक नेताओं, छुट्टी पर आए हुए सैनिकों और अन्य सामाजिक नेताओं जैसे नरम लक्ष्यों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है.


कश्मीर की शांति को भंग करने की कोशिश


पिछले कुछ महीनों में ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिन्होंने हमारी पश्चिमी सीमा के पार बैठे आतंकवादी सरगनाओं को आतंकवाद को दोबारा ज़िंदा करने के लिए एक नई रणनीति बनाने को प्रेरित किया. श्रीनगर का लाल चौक जहां कुछ वर्ष पहले तक हमारा राष्ट्रीय ध्वज फहराना भी संभव नहीं था, वहां जन्माष्टमी का जुलूस लगभग तीन दशक बाद बड़े ही धूमधाम से निकला. बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित अपने मूल स्थानों पर लौटने लगे और श्रीनगर में काफी हद तक शांति बनी हुई थी. 


दोनों समुदायों मिल जुलकर कश्मीर (Kashmir) की संस्कृति को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया शुरू कर रहे थे, इसलिए सीमा पार बैठे आतंकवादियों का चिंतित होना स्वाभाविक था. यही कारण था कि इसलिए उन्होंने कश्मीर घाटी बैठे अपने गुर्गों को हिंदू समुदाय पर निशाना बनाकर हमले शुरू करने का निर्देश दिया ताकि समुदाय में एक सांप्रदायिक दरार पड़े और समूचे कश्मीर में एक भय का माहौल बनाया जा सके. पाकिस्तान (Pakistan) की नई आतंकी रणनीति के कुछ प्रमुख बिंदुओं को मैं विस्तार से समझाना चाहूंगा.


सुरक्षा बलों के सीधे टकराव से बचना 


भारतीय सेना की नयी रणनीति के कारण पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में आतंकी कमांडर मारे गए हैं. आतंकवादी रैंक में कमांडर के रूप में नियुक्त किसी भी व्यक्ति को विभिन्न तरीकों से ट्रैक किया जाता है और नई तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए उसका पता लगाया जाता है और सीधे ऑपरेशन में निष्क्रिय कर दिया जाता है. इसके कारण जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों की संख्या में भारी कमी आई है. जिसके चलते पाकिस्तान ने आतंकवादियों को नए निर्देश जारी किए कि वे सुरक्षा बलों के साथ सीधे टकराव से बचें. पिछले कुछ वर्षों में हुए आतंकवादी हमले इस रणनीति को स्पष्ट रूप से प्रतिध्वनित करते हैं.


नए अनजान युवा लड़कों की भर्ती 


पाकिस्तान (Pakistan) ने यह देखा कि जो कोई भी आतंकवादी सुर्ख़ियों में आ जाता है, चाहे वह किसी आतंकवादी समूह में शामिल होने के समय हो या फिर किसी महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति के समय, कुछ ही समय में मार दिया जाता है. इसकी वजह ये है कि भारतीय सुरक्षा बल उसे आसानी से ट्रैक कर लेते हैं. इसलिए ऐसे लड़कों की भर्ती की, जिनको सुरक्षा बल नहीं जानते थे. यही नहीं, उन्होंने उनकी भर्ती को गुप्त रखा और मीडिया में इससे संबंधित कोई जानकारी लीक नहीं की. 


उन्होंने ऐसे लड़कों को किसी भी आतंकवादी कार्य पर भेजने से पहले पूरी तरह से ब्रेनवॉश करने की कोशिश की. पिछले कुछ महीनों में कुछ मुठभेड़ों के दौरान यह देखा गया कि मारा गया आतंकवादी सुरक्षा बलों की सूची में नहीं था और चुपचाप भर्ती किया गया था. यह पिछले वर्षों के प्रतिकूल था, जहां नए भर्ती हुए आतंकवादी का पुरजोर तरीके से महिमामंडन किया जाता था.


असुरक्षित लक्ष्यों को बनाया जा रहा निशाना  


जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया कि ये युवा आतंकवारी अनुभवहीन और नौसिखिए हैं, इसलिए इनका उपयोग अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों, छोटे स्तर के राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे निहत्थे और असुरक्षित लोगों को मारने के लिए किया जाता है. आतंकवादी समूहों के ओवर ग्राउंड कार्यकर्ता लक्ष्य का अच्छी तरह से विश्लेषण करते हैं और जब आसपास के क्षेत्र में सुरक्षा बलों का कोई खतरा नहीं होता है तो वे आतंकवादियों को हमले के लिए हरी झंडी दिखते हैं. 


इतना ही नहीं, आतंकवादी शूट एंड स्कूट रणनीति का भी सहारा लेते हैं जिसका अर्थ है लक्ष्य पर प्रहार करना और भाग जाना. इनमें से ज्यादातर मामलों में बचकर भागने की योजना पहले से बनाई जाती है और आतंकवादी समूहों के हमदर्द उस में मदद करते हैं. इसके कारण, सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में मारे जाने का खतरा कम हो जाता है और हत्यारे की पहचान गुप्त रहती है,.जबकि समूचे इलाक़े में आतंक का माहौल काफी बढ़ जाता है.


छोटे हथियारों और हथगोलों का प्रयोग


इस साल के दौरान जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में हुए लगभग सभी हमलों में आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों या सॉफ्ट टारगेट को मारने के लिए पिस्तौल और ग्रेनेड का इस्तेमाल किया. इन हथियारों को आसानी से छिपाया जा सकता है और सुरक्षा बलों की निगाह से बचाकर घटना स्थल पर ले जाया जा सकता है. इसके अलावा, इन हथियारों का उपयोग करके बचकर भागना आसान है जिससे अपराधी का पता लगाना और उसकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है. नियंत्रण रेखा /अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पिछले कुछ समय में जब्त हथियारों का एक बहुत बड़ा हिस्सा केवल पिस्तौल और हथगोले ही थे, जो दर्शाते हैं कि पाकिस्तानी रणनीति में बदलाव हो रहा है और आतंकवादी अपने काम करने के तरीके को बदल रहे हैं.


मुद्दे को सांप्रदायिक और अंतरराष्ट्रीय रंग देना 


पिछले कुछ समय में हुई इस प्रकार की सभी हत्याओं के अंदर एक समानता है. वह है कुछ चुनिंदा राजनीतिक नेताओं की प्रतिक्रिया. ऐसी किसी भी घटना के बाद वे प्रतिक्रिया देने वाले पहले व्यक्ति होते हैं और इसकी जिम्मेदारी सीमा पार से चल रहे आतंकवाद पर डालने के बजाय वे भारत सरकार की नीतियों की निंदा करने लगते हैं. 


इसके साथ ही ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर आईएसआई नियंत्रित हैंडलों द्वारा भेजे गए संदेशों की बाढ़ सी आ जाती है, जो गलत सूचना फैलाते हुए भारत विरोधी प्रचार करते हैं. वहीं उसी दौरान पाकिस्तानी (Pakistan) राजनेता उग्र बयान देकर इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश करते हैं. यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि सीमा पार से कोई तो है जो यह सब चला रहा है.


कश्मीर में आतंक को जिंदा रखने की कोशिश


कश्मीर (Jammu Kashmir) में एक बार फिर शांति की वापसी हो रही है और लोग समझ गए हैं कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद अब और अधिक नहीं पनप सकता. पिछले सात दशकों से अधिक समय से कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश कर रहे पाकिस्तान के लिए यह सबसे बड़ा दर्द है. सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा करके वह जम्मू-कश्मीर में मरते हुए आतंकवाद को कुछ और दिन का जीवनदान देना चाहता है. 


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वह आम कश्मीरी लोगों के मन में यह डर भी पैदा करना चाहता है कि मारे जाने के लिए एक प्रभावशाली व्यक्ति होने की जरूरत नहीं है. आपका सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय से होना ही काफी है. हालांकि, जिस तरह से शक्तिशाली झेलम के तटों पर परिवर्तन दिख रहे हैं और लोग एक शांतिपूर्ण राज्य के निर्माण में भाग ले रहे हैं, यह निश्चित है कि पाकिस्तान (Pakistan) की बुरी हरकतें कुछ ही समय में विफल हो जाएंगी.


(लेखक मेजर अमित बंसल (रि.) रक्षा विशेषज्ञ हैं और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के साथ आतंरिक सुरक्षा की भी गहरी समझ रखते हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी विचार हैं.)


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