नई दिल्ली: सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़ी कई conspiracy theories आपने सुनी और पढ़ी होंगी. दरअसल जब कोई मशहूर व्यक्ति आत्महत्या करता है तो हर कोई शरलॉक होम्स बनकर खुद ही इसकी वजहें तलाशने लगता है. मामला जब फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा हो तो मौत भी एक मसाला न्यूज बन जाती है. सुशांत सिंह राजपूत के साथ भी यही हुआ, उन्होंने किस मन:स्थति में अपनी जान ली, ये जानने की आड़ में उनकी जिंदगी और मौत का तमाशा बना दिया गया. सुशांत ड्रग्स लेते होंगे. फिल्में नहीं मिल रही होंगी. पैसे की कमी हो गई होगी. किसी रिश्ते की नाकामी की वजह से हुआ होगा. जिसे जो थियोरी ज्‍यादा मसालेदार लगी,उसने वही कहानी सच मान ली.


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अनकही बातें
किसी ने एक बार भी नहीं सोचा कि 34 साल के नौजवान बेटे के फांसी लगा लेने का सदमा उसके बुजुर्ग पिता के लिए कितना तकलीफदेह होगा. सुशांत की बहनें कैसे इस सच को मान पाएंगी कि उनका भाई अब कभी नहीं लौटेगा. हम ये सोच बैठते हैं कि किसी सेलेब्रिटी की जिंदगी का हर पहलू फिल्मी ही होता है. वो खास हैं तो उनकी हर चीज हटकर ही होगी. उनके जीवन में जितनी मात्रा में शोहरत है. उतनी ही मात्रा में सुख और चैन भी होगा. लेकिन हम ये भूल बैठते हैं कि कैमरा 24 घंटे रोल नहीं रहता, लाइट्स ऑफ भी होती हैं और एक्शन खत्म हो जाता है. इसके बाद शुरू होती है वो जिंदगी जिसके बारे में अक्सर लोगों को कुछ पता नहीं होता-The Untold Story.


सुशांत सिंह राजपूत ने 34 साल की जिंदगी में कई सालों का अनुभव बटोर लिया. बिहार के पटना से शुरू हुए सफर का पहला पड़ाव दिल्ली बना. सुशांत बहुत की प्रतिभाशाली छात्र थे. वो फिजिक्स में नेशनल ओलंपियाड विजेता रहे. उन्होंने 11 इंजीनियरिंग एग्‍जाम पास किए.


खुद की काबिलियत पर भरोसा
2003 में दिल्‍ली इंजीनियरिंग कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में उनकी ऑल इंडिया 7th रैंक आई. यही नहीं उन्हें कैलिफोर्निया की प्रतिष्ठित स्‍टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप भी मिली थी. सुशांत ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू भी की. लेकिन कोर्स खत्म होकर डिग्री मिलती, उससे पहले ही उनका सपना बदल गया. जो अक्सर युवाओं के साथ हो जाता है. आप एक फील्ड में करियर बनाने का सोचते हैं और फिर लगता है कि किसी और फील्ड में बेहतर करेंगे, तो उस रास्ते चल देते हैं.


जो लोग आज ये कह रहे हैं कि सुशांत में मजबूत इच्‍छा शक्ति की कमी थी, उन्हें इस बात पर गौर करना चाहिए कि अपनी इच्छा शक्ति के दम पर ही उन्होंने छात्र जीवन में इतना बड़ा फैसला लिया कि इंजीनियर बनकर एक सुरक्षित नौकरी करने के बजाय एक्टिंग की दुनिया में एंट्री की...जहां सब कुछ अनिश्चित होता है. सुशांत का टीवी या फिल्म की दुनिया से कोई कनेक्शन नहीं था. वो एक नौकरीपेशा परिवार से आए थे. जहां अच्छी नौकरी पाना ही सबसे बड़ा सपना होता है. उस सुरक्षा की भावना को छोड़कर एक्टिंग में करियर बनाने का रिस्क वही ले सकता है जिसे खुद की काबलियत पर विश्वास हो.


सुशांत ने एक्टर बनने के लिए खूब मेहनत की. डांस क्लासेज से लेकर एक्टिंग सीखने तक सारे प्रयास किए. टीवी में नाम कमाया. आगे बढ़ते गए. फिल्मों मिलीं. पहली ही फिल्म से ये साबित कर दिया कि उन्हें जो भी अवसर मिले हैं. वो टैलेंट की बदौलत मिले हैं किसी गॉडफादर की वजह से नहीं.


सुशांत का करियर छोटा रहा. लेकिन उस छोटे से करियर में उन्होंने जिस तरह के करिदार निभाए, जो मेहनत की. ख़ासतौर पर धोनी की ज़िंदगी को बड़े पर्दे पर जीने के लिए उन्होंने जैसे खुद को धोनी के रंग-रूप, तौर-तरीके यहां तक की खेलने के स्टाइल में ढाला, उसे देखकर कोई भी ये अंदाजा लगा सकता है कि वो अपने काम को लेकर कितने संजीदा थे.


इंडस्‍ट्री के लोगों से नहीं मिला दिल
लेकिन हर खूबी होने के बावजूद सुशांत के लिए धीरे-धीरे चीजें खराब होने लगीं. सुशांत को फिल्म इंडस्ट्री में काम तो मिल रहा था लेकिन शायद फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से दिल नहीं मिल पाया. सुशांत ने फिल्म इंडस्ट्री में जिन दिक्कतों का सामना किया. उनसे हर उस व्यक्ति को गुजरना पड़ता है जो बाहर से आता है. एक ऐसी इंडस्ट्री जिसमें दादा से लेकर पिता तक और मां से लेकर बड़ी बहन तक की बदौलत काम और स्टारडम मिलता हो. उसका हिस्सा होकर भी हिस्सा ना बन पाना सुशांत को हमेशा अखरता था.


सुशांत मुंबई में अकेले रहते थे. किताबें पढ़ना उनकी आदत थी और Astrophysics में दिलचस्पी थी. घर की बालकनी में टेलिस्कोप रखकर ब्रहमांड की खूबसूरती को निहारना और उसके रहस्य को समझना सुशांत का शौक था. कितने एक्टर होंगे जिनकी ऐसी पसंद होगी...? सुशांत के सोशल मीडिया अकाउंट्स को देखें तो आप समझ जाएंगे कि काफी वक्त से उनकी जिंदगी में कुछ ऐसी घटनाएं हो रही थीं. जो उन्हें डिप्रेशन में धकेल रही थीं.


ट्विटर पर सुशांत ने जो कवर पिक्चर लगाई हुई थी वो The Starry Night पेंटिंग है जिसे प्रसिद्ध चित्रकार विसेंट वैन गॉग (Vincent van Gogh) ने साल 1889 में उस वक्त बनाया जब वो बारह महीने के लिए मेंटल Asylum में थे. 1890 में उन्होंने खुद को गोली मार ली. ये है वो तस्वीर-



सुशांत का इस तस्वीर को लगाना एक संयोग भी हो सकता है. लेकिन अपनी परेशान मानसिक स्थिति की ओर उन्होंने कई ऐसे इशारे किए जो संयोग नहीं हैं. बस किसी ने उन्हें समझने और सुशांत की मदद करने की कोशिश नहीं की.


(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के निजी विचार हैं)