प्रभात झा बाजेपी के शीर्ष नेताओं में से एक हैं। प्रभात झा दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी थे। दिल्ली संगठन के भी प्रभारी थे। दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम से जुड़े तमाम मुद्दों पर इस बार सियासत की बात में प्रभात झा से ज़ी मीडिया के एडिटर (न्यूज़ ऑपरेशंस) वासिंद्र मिश्र ने लंबी बात की। प्रस्तुत है बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश-


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वासिंद्र मिश्र : आपसे जानना चाहेंगे कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के जो परिणाम आए उसके क्या कारण हैं। कहां चूक हुई है लेकिन मेरा सबसे पहला सवाल ये है कि दिल्ली विधानसभा का जो चुनाव हुआ वो किसके नेतृत्व में और किसके नाम पर लड़ा गया?


प्रभात झा : चुनाव का नेतृत्व तो किरण बेदी कर रही थीं ये सबको पता है और ये पार्टी ने तय किया था। वो हमारी तरफ से सीएम पद की उम्मीदवार थीं,  नेतृत्व तो संगठन तय करता है कोई एक व्यक्ति तय नहीं करता और इसलिए हमारी तरफ से सीएम पद की उम्मीदवार किरण बेदी थीं और चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा गया।


वासिंद्र मिश्र : क्या वजह थी जो पूरे कैम्पेन के दौरान पार्टी के अंदर इतना कनफ्यूजन देखने को मिला, जब आठ महीने पहले राष्ट्रीय चुनाव हुए थे उसमें बीजेपी का इलेक्शन मैनेजमेंट अच्छा था। कैंपेनिंग का तरीका  organised, aggressive और assertive था।


प्रभात झा : जब चुनाव जीतते हैं तो सब कुछ व्यवस्थित और अनुशासित लगता है लेकिन जब हारते हैं तो सबकुछ गड़बड़ दिखने लगता है। जीत और हार की ये परिभाषा हमेशा से रही है, हम तब भी organised थे, आज भी organised हैं। हां, चूक ज़रूर हुई है और अभी हम पता नहीं कर पाए हैं कि हमारी स्थिति क्या है। हमने नहीं सोचा था कि हमारे संगठन की, हमारे दल की ये स्थिति होगी कि हमें तीन सीटें मिलेंगी, इसीलिए अब हम बैठेंगे और विचार -विमर्श करेंगे कि चूक कहां-कहां हुई।


वासिंद्र मिश्र : लोकसभा के चुनाव में जो आप लोगों का मैनेजमेंट था, मैनिफेस्टो में कही गयी बातों को ग्राउंड लेवल तक वर्कर्स और जनता ने पहुंचाया लेकिन दिल्ली के चुनाव में आपकी पार्टी एक मैनिफेस्टो भी जारी नहीं कर पायी।
 
प्रभात झा : हमने मैनिफेस्टो जारी नहीं किया लेकिन विजन डाक्यूमेन्ट 2015 तो जारी किया। सवाल ये है कि जारी करने में कोई खोट नहीं थी। बल्कि तय ये हुआ था कि इस बार विजन दिया जाए, इस बार मैनिफेस्टो नहीं दिया जाए। पार्टी ने ये एक प्रयोग किया था लेकिन मैं ये नहीं मानता कि इस प्रयोग की वजह से हार हुई।


वासिंद्र  मिश्र : नहीं, उसके कारण हार होने की बात नहीं है, नहीं लेकिन एक बात तो तय है कि अप बहुत वरिष्ठ हैं राजनीति में, जब आप चुनाव में जाते हैं आप अपना एक्शन प्लान बताते हैं चाहें उसका नाम विजन डाक्यूमेंट दीजिए, मैनिफेस्टो कहिए या कुछ भी कहिए। आप अपने जनता से यह कहते हैं की अगर आप को सत्ता मिले, सरकार में आने का मौका मिला तो आप यह काम करेंगे।


प्रभात झा : हमने वही बात वासिन्द्र जी, अपने विजन डॉक्यूमेंट में कहा है।


वासिंद्र  मिश्र : लेकिन इसमें कन्फ्यूजन ज्यादा रहता है।


प्रभात झा : कनफ्यूजन कहीं नहीं रहा। देखिए ऐसा होता रहा है कि विजन भी आता है और मैनिफेस्टो भी आता है और इस बार हम विजन डॉक्यूमेंट लेकर आए।


वासिंद्र  मिश्र : और दो बार विजन डॉक्यूमेंट रिलीज करने की डेट भी बढ़ानी पड़ी।


प्रभात झा : निश्चित तौर पर वो बन नहीं पाया था इसलिए बढ़ानी पड़ी।


वासिंद्र मिश्र : तो प्रभात जी यही तो सबसे बड़ा सवाल है की जब पार्टी विपक्ष में थी तो उसका हर काम well in time हो रहा था, बहुत ही organised तरीके से हो रहा था लेकिन जब पार्टी सत्ता में आ गई, देश की बागडोर पार्टी के हाथ में थी तो एक विजन डाक्यूमेंट या मैनिफेस्टो कुछ भी कह लीजिए उसका समय से ना तो ड्राफ्ट तैयार हो पाया या प्रिंटिंग हो पायी।


प्रभात झा : वो सब तय था कि कांग्रेस कब लाएगी उसके बाद आम आदमी पार्टी को रिलीज करना था इसलिए हम सब एक दिन लाते clash होता। विजन डॉक्यूमेंट बनाने में देर हुई हो ऐसा नहीं है।  


वासिंद्र  मिश्र : ऐसा भी लग रहा था कि कार्यकर्ताओं पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का level of involvement नहीं है, यहां तक कि अनुषांगिक संगठन या संघ परिवार के लोगों की भी उतना inolvement नहीं दिखा, इसका क्या कारण था?


प्रभात झा : देखिये सबका involvement, सबका सहयोग था। मैं फिर कह रहा हूं महाराष्ट्र या हरियाणा में ये सवाल नहीं उठे, ना ही झारखंड में उठा। हम दिल्ली में चुनाव हार गए इसीलिए अब सवाल ही सवाल खड़े हो रहे हैं, जो लाज़िमी है लेकिन इन सब बातों से कोई नहीं पड़ता, हम फिर कह रहें हैं हम नहीं जीते इसलिए ये सवाल उठ रहे हैं, अगर हम जीत जाते तो ये सवाल उठते ही नहीं।


वासिंद्र मिश्र : किरण बेदी किसकी choice थीं?


प्रभात झा : भारतीय जनता पार्टी की।


वासिंद्र मिश्र : कहा जा रहा है की किरण बेदी के बारे में सिर्फ एक व्यक्ति ने फैसला किया और उस फैसले से संगठन के बाकी लोगों को अवगत करा दिया  गया।


प्रभात झा : कहे जाने के लिए तो कुछ भी कहा जाएगा। ये लोकतंत्र है, हमारे संगठन में भी आंतरिक लोकतंत्र है, विचार-विमर्श करने के बाद ही किरण बेदी का नाम तय हुआ। किसी एक व्यक्ति ने नहीं कहा।


वासिंद्र  मिश्र : प्रभात जी आप तो संगठन के आदमी हैं और grassroot से आप संगठन का काम करते रहे हैं, इस तरह का work culture आपकी याद्दाश्त में इसके पहले कभी इस पार्टी या इस संगठन में देखने को मिला?


प्रभात झा : देखिए, वासिंद्र जी प्रयोग होता है, हमेशा संगठन चलता है नए प्रयोगों से। इस बार भी नया प्रयोग किया गया, ये अलग बात है कि हम सफल नहीं हो पाए। प्रयोग असफल होना एक अलग बात है, तो क्या प्रयोग करना बंद कर दें। हमने देखा कि दिल्ली में एक ईमानदार चेहरा चाहिए, एक कर्तव्यनिष्ठ महिला चाहिए। भारतीय इतिहास में पहली IPS महिला जिसने भारतीय महिला के बीच साहस पैदा किया और संगठन उसका नाम लेकर आया, संगठन ने जो तय किया सबने उसको माना।


वासिंद्र मिश्र : प्रयोग करने के लिए क्या हम अपना DNA भूल जाएंगे?


प्रभात झा : नहीं, नहीं ऐसा नहीं है, इसके कारण कोई DNA नहीं भूले। निश्चित तौर पर वो हमारी विचारधारा से जुड़ी हुई हैं।


वासिंद्र मिश्र : मैं किरण बेदी की बात नहीं कर रहास पूरी कार्यशैली की बात कर रहा हूं।


प्रभात झा : हमारी विचारधारा इतनी कमजोर नहीं है कि कोई आकर हमें प्रभावित कर दे।


वासिंद्र  मिश्र : मैं किरण बेदी या किसी व्यक्ति की बात नहीं कर रहा, पार्टी के अंदर के लोग जो इस विचारधारा के दम पर शीर्ष स्तर तक पहुंचे हैं वो शीर्ष पर पहुंचने के बाद विचारधारा से भटक रहे हैं और व्यक्तिवादी राजनीति को प्रश्रय दे रहे हैं।
 
प्रभात झा : ऐसा नहीं है, हमारे यहां भी ऐसा राजनीति कल्चर नहीं है। हमारा संगठन आधारित संगठन है, कार्यकर्ता आधारित संगठन है, व्यक्तिवादी संगठन नहीं है। नेता हैं तो नेता मानते हैं और नेता की बात भी मानते हैं।


वासिंद्र मिश्र : एक जो सबसे बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है, लोकसभा के चुनाव में कहा गया, संगठन ने प्राइममिनिस्ट्रियल कैंडिडेट तय किया है और सारे अनुशांगिक संगठनों का समर्थन हासिल था, लेकिन उसके बाद जितने फैसले हो रहे हैं we की जगह I के आधार पर हो रहे हैं।


प्रभात झा : नहीं, ये सूचना ही गलत है।


वासिंद्र मिश्र : भाषा शैली देखिए ना।


प्रभात झा : भाषा शैली या व्यक्ति विशेष आज देश के प्रधानमंत्री केंद्र बिंदु में नहीं रहेंगे तो कौन आएगा?


वासिंद्र मिश्र : प्रभात जी उनका भाषण आप देख लीजिए, कोई भी पुरानी स्पीच उठाकर देख लीजिए हमेशा वो कहते हैं, मेरी सरकार, मैं ये कर रहा हूं। कहीं वे नहीं कहते कि हमारी सरकार कर रही है।


प्रभात झा : नहीं-नहीं, ये भाषा हर किसी की शैली होती है। इसमें intention पर नहीं जाना चाहिए, इसके अर्थों पर जाना चाहिए। वो कहते हैं कि 125 करोड़ की लड़ाई लड़ रहा हूं, 125 करोड़ जनता मेरे पीछे खड़ी है, इसमें पूरा हम नहीं है।


वासिंद्र मिश्र : जितना मैं समझ पाया हूं इस संगठन को, इस संगठन की political philosophy को, culture philosophy को, इस संगठन की भाषा चाहे हेडगेवार जी हो या मोहन भागवत जी हों या करोड़ो कार्यकर्ता हों, भाषा एक है लेकिन श्रीमान मोदी जी की भाषा में WE की जगह I होता है।


प्रभात झा : कभी नहीं होता है ऐसा। देखिए, एक व्यक्ति की निरंतर विकास और देश को उस विकास के साथ जोड़कर ले जाने वाले व्यक्तित्व के ऊपर इस छोटी सी बात का प्रश्न नहीं है। जब मोदी स्वयं खड़े होकर कहते हैं कि, 'जब मैं ओबामा से बात करता हूं..तो मैं इसीलिए मजबूती से बात करता हूं कि मेरे पीछे 125 करोड़ की आबादी खड़ी है'  ऐसा कहने वाले व्यक्ति के बारे में, हम इस तरह की सोच तो नहीं रख सकते।


वासिंद्र मिश्र : एक जो मुझे लग रहा है दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूरे कैंप ने श्रीमान मोदी जी को आगे करके चलाया और कहा गया कि मोदी जी के साथ चलिए। अगर आप दिल्ली का विकास चाहते है और जनता ने कह दिया कि हम मोदीजी के साथ नहीं चलेंगे केजरीवाल के साथ चलेंगे।


प्रभात झा : इससे क्या होता है।


वासिंद्र  मिश्र : नहीं, आप भी मानते हैं कि दिल्ली बाकी राज्यों की तरह एक राज्य नहीं है, दिल्ली मिनी इंडिया है। दिल्ली में जितने यहां की लोकल आबादी होगी इससे कई गुना ज्यादा बाहरी आबादी, जो दिल्ली में आकर रहती है। यहां रोजगार करती है अपना जीवीकोपार्जन चलाती है। ये जनमत या जनादेश मोदी जी के खिलाफ है। क्या हम मान लें कि यही मिनी इंडिया का जनादेश है?


प्रभात झा : ये मैं फिर कह रहा हूं जिस व्यक्ति को 2019 तक के लिए चुना गया उसके लिए आप 2014-15 में ये कैसे मान लेंगे, ये तो छोटी मानसिकता है। इस तरह सिर्फ एक इगो क्लास सोच सकता है कि ये सर्किल में चला गया। उसका उत्थान कैसे हो गया, ये मोदी जी का विश्व में नाम कैसे हो रहा है? निश्चित तौर पर जब कोई व्यक्ति उठता है, उससे थोड़ी जलन होनी स्वाभाविक है।


वासिंद्र मिश्र : नहीं, मेरा ये सोचना नहीं है। क्या अब हम मानें कि केजरीवाल जी मोदी जी के मुकाबले खड़े हैं।


प्रभात झा : केजरीवाल कभी उनके मुकाबले खड़े हो नहीं सकते। इस तरह तुलना करना मोदी जी के साथ अन्याय है। मोदी जी ने भारत की दशा और दिशा बदल दी। उस व्यक्ति की तुलना आप उनसे करो ये स्वाभाविक नहीं है, केजरीवाल के साथ भी न्याय नहीं है।


वासिंद्र मिश्र : आप नहीं मानते, आपको मानना भी नहीं चाहिए। मोदी जी आपके नेता हैं। इसी तरह की कार्य संस्कृति कांग्रेस की भी रही है और मुझे थोड़ा दुख हो रहा है आपके जैसा व्यक्ति कार्य संस्कृति को।


प्रभात झा : सत्ता की संस्कृति।


वासिंद्र मिश्र : हां सत्ता की संस्कृति के पोषक नजर आ रहे हैं।


प्रभात झा : नरेंद्र मोदी एक ऐसे शख्स हैं। जो संगठन से सत्ता की ओर गए हैं, उछलकर नहीं गए हैं और उनके बारे में सोचना मेरा धर्म भी नहीं है। ये मैं अधर्म करुंगा अगर मैं उनके बारे में सोचता हूं क्योंकि मैं उन्हें 25-30 साल से जानता हूं कि संगठन की निचली धुरी से वो अपना जीवन देते आए हैं।


वासिंद्र मिश्र : ऐसी कौन-सी मजबूरी आ गई सादगी छोड़कर विलासिता पूर्ण जीवन देखने को मिल रहा है।


प्रभात झा : ये शब्द ही गलत है,  ये पत्रकारिता का शब्द है। हम इसे सिरे से खारिज करते हैं, विलासिता शब्द उनकी डिक्शनरी में नहीं है। उन्होंने समर्पण की जिंदगी जी है।


वासिंद्र मिश्र : प्रभात जी आपका जीवनदर्शन  integrtnatal humanism पर आधारित है। आजादी की लड़ाई भी गांधी ने अंग्रेजों के सामने लाखों-करोड़ों के कपड़े पहनकर नहीं लड़ा था। ऐसा कौन सा inferiority complex था कि एक विदेशी मेहमान के सामने लाखों-करोड़ों के आभूषण धारण करने की जरूरत पड़ गई।


प्रभात झा : किसने कहा, वो अंगूठी तक नहीं पहनते है, वो एक चेन तक नहीं पहनते हैं, कौन सा आभूषण देख लिया। मुझे ये लगता है कि राहुल की बोली और पत्रकार की बोली में अंतर होना चाहिए, वो उनका राजनीतिक दर्शन है। राजनेता विरोध करते है इसलिए कहते है कि 10 लाख का सूट पहन लिया। क्या वो गिनने गए थे, क्या वो देखने गए थे, ये सब झूठी बाते हो रही हैं।


वासिंद्र मिश्र : आप लोगों ने ऐसे ही कपड़ों का विरोध किया था जब शिवराज पाटिल देश के गृह मंत्री थे।


प्रभात झा : जब उस समय पहन के गए थे जब धरती पाकिस्तान के बम से डोल रही थी, दोनों का उद्देश्य अलग है।


वासिंद्र  मिश्र :  आपको लगता है कि भारत जैसा multilingual, multidimensional, multicultural देश event manegment तरीके  से चल पाया है?
 
प्रभात झाः  देखिए किसी के पीछे कुछ जोड़ दीजिए, अब उनके कुर्तें के बारे में चर्चा चल रही है। उन्होंने कहा कपड़ा बड़ा ना होना पड़े इसके लिए फुल स्लीव को हाफ कर दिया और ये डिज़ायन बन गया।
 
वासिंद्र मिश्र : तब इसलिए फुल स्लीव पर आ गए हैं?


प्रभात झाः  ठंड में क्या हाफ स्लीव पहनें?  ये छिद्र अन्वेषण करना आपका कार्य हो सकता है लेकिन इसमें आंखे पीत नहीं होनी चाहिए।


वासिंद्र मिश्र : प्रभात जी आप खुद पत्रकार रहे हैं, छोटी सी घटना याद दिलाते हैं। यूपी में जब कल्याण जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी सरकार की सबसे ज्यादा आलोचना किसी पूंजीवादी अखबार ने नहीं की बल्कि संघ परिवार के मुखपत्र आर्गनाइजर ने की। इस समय आपकी आलोचना आपका कौन कर रहा है। किरण बेदी के candidature पर प्रतिक्रिया मोहन भागवत ने दी।


प्रभात झाः नहीं, कहीं मोहन भागवत जी कि प्रतिक्रिया नहीं आयी। एकदम गलत है। एक सिरे से मोहन जी और संघ परिवार ने खारिज किया है। ये मीडिया में उपजाया गया और भ्रम पैदा करने वाला बयान है।


वासिंद्र मिश्र : मोहन जी और संघ के लोगों ने इस चुनाव में खुलकर साथ नहीं दिया।


प्रभात झाः खूब खुलकर काम किया, जितना सामर्थ्य है काम किया है। एक बार मैं फिर कह देता हूं जो मैंने शुरुआत में कही थी, केजरीवाल के प्रति लोगों में उतावलापन था या जो लोग चाहते थे हम समझ नहीं पाए।


वासिंद्र मिश्र : प्रभात जी हम व्यक्तिगत सवाल नहीं करना चाहते आपके साथ हमारे बहुत पुराने संबंध हैं। मैं आपका कोई महिमामंडन भी नहीं कर रहा लेकिन आप शुरू से ही नहीं चाहते थे कि दिल्ली में कोई जोड़-तोड़ की सरकार बने। Public Domain में आपका कई बार बयान भी आया था, हम निजी रिश्तों की बात नहीं कर रहें हैं, बावजूद इसके आपके कुछ नेता, कुछ मंत्री दिल्ली में खरीद-फरोख्त करके सरकार बनाने की कोशिश कर रहे थे। नतीजा क्या हुआ आपने 6-7 महीने नजीब जंग के जरिये सरकार चलायी। आपको नहीं लगता कि पिछले 6-7 महीनों के दौरान लोगों में anti incumbency ज्यादा  हो गई?


प्रभात झाः मैं फिर कह रहा हूं कि क्या-क्या कारण हुए कौन-कौन से कारण हैं जब हम बैठेंगे तो उस पर विचार होगा। उसके एक कारण नहीं बहुत कारण हैं।


वासिंद्र मिश्र : यही बात तो राहुल और सोनिया गांधी कहते हैं।


प्रभात झाः कहते होंगे लेकिन हम कहते भी हैं और करते भी हैं।


वासिंद्र मिश्र : तो आपको उम्मीद है कि कोई सुधार होगा।


प्रभात झा : बिल्कुल होगा।


वासिंद्र मिश्र :  बीजेपी और जनसंघ जब सत्ता में नहीं था तब भी उनके मूलसिद्धांतों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।


प्रभात झाः कभी परिवर्तन नहीं होगा, हम अपने परिश्रमी कार्यकर्ता की ताकत पर, जनता के समर्थन से सदैव आगे बढे़ हैं, आगे बढे़गे। ये सवाल तब नहीं आया जब हम महाराष्ट्र में शिवसेना के बगैर आगे बढ़े। हरियाणा में 4 से 47 तक पहुंचे, ये सवाल तब भी नहीं आया जब हम झारखंड में सत्ता में आये।


वासिंद्र मिश्र :  क्योंकि आपने हरियाणा में dilute नहीं किया।


प्रभात झाः  हमने कहीं किसी को dilute नहीं किया।


वासिंद्र मिश्र : दिल्ली में तो आपने dilute कर दिया।


प्रभात झाः  सवाल ही नहीं उठता, कहीं किसी को dilute नहीं किया, हम उतने मजबूती से लड़े।


वासिंद्र मिश्र : आप मजबूती से लड़े, कांग्रेस भी लड़ती है मजबूती से।


प्रभात झाः  कांग्रेस लड़ती है तो लड़े।
 
वासिंद्र मिश्र : आपने वर्कर्स पर भरोसा नहीं किया।


प्रभात झाः  कैसी बात करते हैं हम अपने वर्कर्स पर भरोसा नहीं करेंगे। हमें 33 प्रतिशत वोट मिला है।


वासिंद्र मिश्र : यही बात तो कांग्रेस कहती है कि हमारा पोलिंग बना हुआ है।


प्रभात झाः वो नहीं कह सकती। उनका वोट प्रतिशत 25 से 9 पर पहुंच गया है।


वासिंद्र मिश्र : राष्ट्रीय चुनाव में आपको कितना परसेंट वोट मिला था।


प्रभात झाः दिल्ली में 46 परसेंट मिला था।


वासिंद्र मिश्र : पूरे देश में कितना मिला था।


प्रभात झाः पूरे देश में 36-39 परसेंट मिला था।


वासिंद्र मिश्र : विपक्ष यही तो कह रहा है कि 60-65 परसेंट आपको वोट नहीं दिया। फिर भी आपकी सरकार है।  


प्रभात झाः किसने कह दिया आपको।


वासिंद्र मिश्र : विपक्ष कह रहा है।


प्रभात झाः ऐसा हमेशा होता आया है। ये damocracy की सबसे बड़ी परिभाषा है।


वासिंद्र मिश्र : वही formula आप दे रहे हैं।


प्रभात झाः  मैं formula थोड़े दे रहा हूं। अगर वर्कर्स काम नहीं करते तो हमारा 33 परसेंट वोट intact नहीं रहता।


वासिंद्र मिश्र : इसका मतलब साफ हुआ जब मोदी बनाम केजरीवाल हुआ...तो।


प्रभात झाः  मोदी बनाम केजरीवाल नहीं हुआ। केजरीवाल बनाम बीजेपी हुआ। मोदी से तुलना करने में हम कभी पड़ ही नहीं सकते। गांव में कहावत है पिद्दी का शोरबा वाली, ये पिद्दी राजनैतिक कार्यकर्ताओं को मोदी के साथ कर दें, आप इसे मेरा arrogance कह सकते हैं लेकिन मैं इसे ऐसा नहीं मानता, ये मोदी के साथ अन्याय है और केजरीवाल के साथ भी न्याय नहीं है।


वासिंद्र मिश्र : प्रभात जी क्या आपलोगों को लग गया था कि दिल्ली मे चुनाव हार रहे हैं?


प्रभात झाः  हमें नहीं लगा था।


वासिंद्र मिश्र : वेंकैया जी से लेकर अमित शाह तक 4 दिन पहले बयान देने लगे कि दिल्ली की चुनाव को केन्द्र के रेफरेन्डम से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।


प्रभात झाः  नहीं, बातचीत में किसी ने पूछा तो बोल दिया हमसे भी पूछा जाता तो मेरा भी यही जबाब होता।


वासिंद्र मिश्र : मेनिफस्टो या विजन डॉक्यूमेंट पार्टी विशेष का एक तरह कुरान बाइबल या गीता माना जाता है, जनता जनार्दन से वादे किए जाते हैं, क्यों माना जाता है न?


प्रभात झाः देखिये मैं फिर कह रहा हूं।


वासिंद्र मिश्र : लगता है आप मेरा सवाल समझ गए हैं।


प्रभात झाः मैं यह मानता हूं कि वह एक पार्टी का उद्घोष होता है और कमिटमेंट को पूरा करने के लिए मौन अनुबंध होता है।


वासिंद्र मिश्र : सत्ता में जाए तो बदल जाए।


प्रभात झाः  किसने कहा आपको।


वासिंद्र मिश्र : अमित शाह ने कहा है।


प्रभात झाः कहीं नहीं कहा उन्होंने।


वासिंद्र मिश्र : 15 लाख।


प्रभात झाः अगर मेरे मेनिफेस्टो में दिखा दीजिएगा तो मैं मीडिया में अपने आपको जाने से वंचित कर दूंगा।


वासिंद्र  मिश्र : पब्लिक स्पीच में तो बोला गया था।


प्रभात झाः पब्लिक स्पीच में क्या कहा गया था कि अगर पैसा कालाधन का आता है तो पब्लिक एकाउण्ट में डाल देंगे। ऐसा कभी नहीं कहा था।


वासिंद्र मिश्र : उनके सामने ये क्या मजबूरी आ गई कि कह दिया, क्या ये चुनावी जुमला था?


प्रभात झाः उन्होंने कहा था कि कहीं से पैसा आएगा तब डालेंगे। जब उसकी सच्चाई में जा रहे हैं तो मामला सामने आ रहा है। सारा क्रेडिट बीजेपी को देना चाहिए कि SIT का गठन किया गय़ा।


वासिंद्र मिश्र : SIT का गठन तो सुप्रीमकोर्ट के कहने पर हुआ।


प्रभात झाः 3 साल तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई।


वासिंद्र मिश्र : क्या यह सच है कि आपने एक इलेक्टेड गवर्मेंट को 10 साल बदनाम किया।


प्रभात झाः नहीं, हमने कहीं नहीं कहा कि हर भारतीय के खाते मे इतने पैसे डाल दिए जाएंगे।


वासिंद्र मिश्र : आडवाणी जी से लेकर पूरी की पूरी आपकी पार्टी ने कैम्पेन चलाया। परम मित्र रामदेव कहते थे कि ब्लैकमनी लाएंगे।


प्रभात झाः  बोले तो, नहीं ला रहे क्या।


वासिंद्र मिश्र : आडवाणी जी और रामदेव भी चुप हैं।


प्रभात झाः  आप फिर इसको गुमराह कर रहें हैं। हम देश की जनता को गुमराह नहीं होने देंगे।


वासिंद्र मिश्र : पहले नहीं जानते थे क्या?


प्रभात झाः पहले जानते थे कि दूध का दूध पानी का पानी नहीं हो रहा।


वासिंद्र मिश्र : जो लिस्ट आया उसे कितना Genuine मानते हैं।


प्रभात झाः हमारे वित्तमंत्री ने कहा कि बहुत के खाते में पैसा नहीं है।


वासिंद्र मिश्र : उस लिस्ट में कुछ ऐसे लोगों के नाम है जो आपकी पार्टी के हैं।                       


प्रभात झाः पार्टी के एक भी व्यक्ति का नाम नहीं है उस लिस्ट में।


वासिंद्र मिश्र : किरण बेदी के NGO को जो फंडिग मिला उस लिस्ट में उसका नाम है।


प्रभात झाः  गलत जानकारी है।


वासिंद्र मिश्र : किरण बेदी ने माना है।


प्रभात झाः कोई व्यक्ति किसी को चंदा देता है तो उसका काम है लेना।


वासिंद्र मिश्र : यही बात तो केजरीवाल ने कहा था तो आपलोगों ने नया संगठन खड़ा करके उसके खिलाफ।


प्रभात झाः आप केजरीवाल को बचाइए मत, केजरीवाल ने उन कम्पनियों से पैसा लिया जिनके पास asset नहीं है।


वासिंद्र मिश्र : अब क्या उम्मीद किया जाए कि जवाबदेही तय हो।


प्रभात झाः ना हम उत्साहित होते हैं जीतने पर ना हम हतोत्साहित होते हैं।


वासिंद्र मिश्र : केजरीवाल चाहते हैं कि उन्होंने जो चुनावी वादे किए हैं जो केन्द्र सरकार से जुड़े हुए वादे हैं, उसके लिए वो कमिटमेट चाहेंगे।


प्रभात झाः दिल्ली में केन्द्र सरकार कभी बदले की भावना से काम नहीं करती है। सदैव सहयोग करेगी लेकिन हां मैं आसमान के तारे तोड़ लाऊंगा, सबकुछ फ्री में दे दूंगा।


वासिंद्र मिश्र : वो आपका ही नकल कर लिया केजरीवाल ने।


प्रभात झाः  हमने कभी झूठे वादे नहीं किए हमारे मेनिफेस्टो में कहीं दिखा दिजिए कि एक भी फ्री का लाइन होगा तो आप जो कहोगे मान लूंगा।


वासिंद्र मिश्र : अच्छे दिन आ गए सब्जी के दाम भी घट गए।


प्रभात झाः  निश्चित  तौर पर, मुझे बताइए क्या आलू और प्याज के दाम नहीं घटे। आलू, प्याज और आटे के दाम बढ़ें हैं, क्या तेल के भाव, गैस के भाव कम नहीं हुए? क्या 11 बार पेट्रोल और डीजल के भाव कम नहीं हुए? दुहाई मत दीजिये कि crude oil के दाम कम हो गए तो पेट्रोल और डीजल के भाव कम गए।


वासिंद्र मिश्र : अच्छा दिल्ली को Statehood का दर्जा दिलाने पर विचार करेंगे क्या?


प्रभात झाः ये तो आने वाले दिन में देखा जाएगा अभी वैसा कुछ नहीं है।


वासिंद्र मिश्र : बहुत-बहुत धन्यवाद।


प्रभात झाः धन्यवाद।