नई दिल्ली : क्रिकेट में कप्तानी धैर्य जिद्द और जुनून की परीक्षा होती है. करोड़ों लोगों की उम्मीदों का नेतृत्व करना कई बार कप्तानों के लिए बड़ी चुनौती साबित होता है. क्रिकेट क्रेजी देश भारत में कप्तानों की सफलता जहां क्रिकेटर्स को सिर आंखों पर बिठाती है, वहीं असफलता पब्लिक के भीतर नफरत भी पैदा कर देती है. भारत में अनेक विजेता कप्तान रहे हैं. हालांकि, सफलतम कप्तानों को भी कई बार बेहद शर्मनाक पराजयों का सामना करना पड़ा है. ऐसा ही एक हार का सामना टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली को भी करना पड़ा. न्यूजीलैंड के खिलाफ पहले वनडे में विराट कोहली ने शानदार 121 रनों की पारी खेली. 


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इस मैच विराट कोहली का 200वां वनडे मैच था. इस मैच के दौरान कोहली ने कई शानदार रिकॉर्ड बनाए, लेकिन टीम को हार से नहीं बचा पाए. बता दें कि टॉम लाथम (नाबाद 103) और रॉस टेलर (95) की दोहरी शतकीय साझेदारी के दम पर न्यूजीलैंड ने वानखेड़े स्टेडियम में खेले गए पहले वनडे मैच में रविवार (22 अक्टूबर) को भारत को छह विकेट से हरा दिया.


पहली बार भारत में बेकार गया विराट का शतक, लेकिन बन गए अनोखे रिकॉर्ड


लेकिन विराट कोहली ऐसे अकेले कप्तान नहीं हैं, जिन्होंने इस स्थिति का सामना करना पड़ा हो. ऐसे और भी कई भारतीय कप्तान हैं, जिनका करियर और रिकॉर्ड बेहद शानदार रहा, लेकिन उन्हें शर्मनाक पराजयों का सामना करना पड़ा. 


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कपिल देव और 1983 सीरीज
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के साथ समाप्त हुई वन डे सीरीज को मिलाकर भारत ने घरेलू मैदानों पर कुल 54 सीरीज खेली हैं. इनमें वे सीरीज शामिल नहीं है जो त्रिकोणीय रही या जिनमें केवल दो मैच खेले गए. इन सभी सीरीज में केवल एक बार ऐसा हुआ जब टीम इंडिया को व्हाइट वाश का सामना करना पड़ा. यानी खेले गए सभी मैचों में भारत पराजित हुआ. और यह हुआ दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ऑल राउंडर माने जाने वाले कपिल देव के नेतृत्व में. 1983 में भारत के वेस्ट इंडीज को हराकर विश्व कप जीतने के बाद वेस्ट इंडीज की टीम ने भारत का दौरा किया. वेस्ट इंडीज का नेतृत्व क्लाइव लॉयड कर रहे थे. क्लाइव लॉयड की टीम वल्र्ड कप में भारत से मिली पराजय का बदला लेकर अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा को दोबार वर्ल्डक्रिकेट में स्थापित करना चाहती थी और लॉयड की टीम ने बाकायदा ऐसा किया. वेस्टइंडीज टीम ने सीरीज के सभी पांचों मैच जीते. भारत को पहली बार व्हाइट वाश का सामना करना पड़ा. वेस्ट इंडीज के ओपनर गार्डन ग्रीनिज भारतीय गेंदबाजों की धज्जियां उड़ाते हुए पूरी सीरीज में 88.25 की औसत से 353रन बनाए. इनमें एक शतक और दो अर्धशतक शामिल थे. इस सीरीज से पहले तक कपिल देव को शानदार कप्तान माना जाता था, लेकिन इस सीरीज ने कपिल देव के कप्तानी रिकॉर्ड को बुरी तरह प्रभावित किया. 


मोहम्मद अजहरुद्दीन
90 का दशक भारतीय क्रिकेट के लिए बेहद उतार चढ़ाव वाला हुआ. इस दौर में टीम स्टारों से सजी रही. मोहम्मद अजहरुद्दीन के नेतृत्व में भारत ने एक भी घरेलू टेस्ट सीरीज नहीं गंवाई. लेकिन विदेशी पिचों पर अजहर बेहद असफल साबित हुए. उनके नेतृत्व में टीम इंडिया ने 27 टेस्ट मैच खेले और इनमें से केवल एक मैच में भारत जीत पाया. 10 टेस्ट मैचों में भारत को पराजय का सामना करना पड़ा. भारत की पराजय का मुख्य कारण रहा ऐसे गेंदबाजों की कमी जो 20 विकेट लेने की क्षमता रखते हों. भारत के पेसबॉलर जवागल श्रीनाथ घरेलू पिचों पर तो अच्छी गेंदबाजी करते लेकिन विदेशी पिचों पर वे असफल रहे. भारतीय बल्लेबाजी भी लगातार असफल रही. 


सचिन तेंदुलकर, 2000
भारत ने अपनी जमीं पर 71 टेस्ट सीरीज खेली हैं. इसमें 1999 में खेली गई एशिया टेस्ट चैंपियनशिप शामिल नहीं है. आश्चर्यजनक रूप से इतने समृद्ध ऐतिहासिक क्रिकेट इतिहास में भारत पहली बार टेस्ट सीरीज में व्हाइट वाश का शिकार हुआ. हंसी क्रोनिए की कप्तानी में दक्षिण अफ्रीका की टीम 2000 में भारतीय दौरे पर थी. सचिन तेंदुलकर को बल्लेबाजी के साथ साथ कप्तानी का बोझ भी उठाना था. वानखड़े में खेले गये पहले टेस्ट में सचिन ने शानदार 97 रनों की पारी खेली लेकिन कोई भी अन्य बल्लेबाज पिच पर नहीं टिका. दक्षिण अफ्रीका ने चौथी पारी में बमुश्किल जीत हासिल की. अनिल कुंबले की स्पिन गेंदबाजी भी अफ्रीका को जीतने से नहीं रोक पाई. दूसरा टेस्ट चेन्नई में हुआ. इसमें अजहर ने शानदार शतक लगाया लेकिन उनका शतक भी टीम इंडिया को पारी की हार से नहीं बचा पाया. और क्रोनिये की टीम 2-0 से टेस्ट सीरीज जीत गई. 


राहुल द्रविड़, 2007
2007 के वर्ल्ड कप में राहुल द्रविड़ टीम के कप्तान थे. यह एकमात्र ऐसा वर्ल्ड कप रहा, जिसमें टीम इंडिया ग्रुप स्टेज में टूर्नामेंट से बाहर हो गई. जबकि भारत वर्ल्ड कप के फेवरेट्स में से था. भारत के अलावा इस ग्रुप में श्रीलंका, बांग्लादेश और बेरमूडा थे. भारत ने बांग्लादेश के खिलाफ अपने अभियान की शुरुआत की. भारत को इस पहले ही मैच में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. बांग्लादेश जैसी कमजोर टीम ने भारत को 5 विकेट से पराजित कर दिया. भारत ने अगले मैच में बेरामूडा को 257 रनों से पराजित करके टूर्नामेंट में वापसी के इरादे जाहिर किए. इसके बाद भारत का मुकाबला श्रीलंका से था. भारत के लिए यह मुकाबला हर हाल में जीतना जरूरी था. लेकिन स्टार बल्लेबाजों से सुसज्जित टीम इंडिया 255 रनों का पीछा नहीं कर पाई. और टूर्नामेंट से बाहर हो गई. 


महेंद्र सिंह धोनी, 2011-12
टीम इंडिया को वर्ल्ड कप और टी-20 का खिताब दिलाने के अलावा धोनी को भारत का सबसे सफल कप्तान माना जाता है, लेकिन धोनी और उनकी कप्तानी के लिए 2011-12 काफी खराब रहा. इस दौरान टीम इंडिया ने धोनी के नेतृत्व में सात लगातार टेस्ट मैच हारे. एशिया से बाहर की पिचों पर धोनी का टेस्ट क्रिकेट में विजय का रिकॉर्ड काफी खराब रहा है. एशिया के बाहर खेले टेस्ट मैचों में धोनी को 26 में से केवल चार टेस्टों में विजय मिली. धोनी के नेतृत्व में टीम इंडिया ने 14 टेस्ट  हारे. इनमें से 7 टेस्ट मैच 2011-12 के बीच हुए. इनमें से एक टेस्ट में, एडीलेड, धोनी प्रतिबंध के कारण वीरेंद्र सहवाग को टीम का नेतृत्व संभालना पड़ा था. भारत ने इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया दोनों में बुरी तरह हार का सामना किया. ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 0-4 से पराजित किया. हालांकि इन दोनों व्हाइट वाश के बीच टीम इंडिया ने घरेलू पिचों पर वेस्ट इंडीज को 2-0 से पराजित किया, लेकिन धोनी की लीडरशिप पर सवाल उठने शुरू हो गए थे.