`मटन करी, पाव और...` इस महान भारतीय बल्लेबाज का फेवरेट फूड, सुनकर फैंस रह गए दंग
Sachin Tendulkar Ramakant Achrekar: भारत के महान सचिन तेंदुलकर ने अपने गुरु रामाकांत आचरेकर के स्मारक का अनावरण किया. यह स्मारक मुंबई के शिवाजी पार्क में बना है. इस दौरान उनके साथी विनोद कांबली भी नजर आए.
Sachin Tendulkar Ramakant Achrekar: भारत के महान सचिन तेंदुलकर ने अपने गुरु रामाकांत आचरेकर के स्मारक का अनावरण किया. यह स्मारक मुंबई के शिवाजी पार्क में बना है. इस दौरान उनके साथी विनोद कांबली भी नजर आए. कांबली का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और उन्हें चलने के लिए सहारे की आवश्यकता पड़ रही है. तेंदुलकर ने उनसे मुलाकात भी की और सोशल मीडिया पर इसका वीडियो वायरल हो गया. इसके अलावा सचिन ने एक यादगार भाषण भी दिया. उन्होंने यह बताया कि कोच उन्हें पसंदीदा खाना खिलाया करते थे.
2019 में हो गया था निधन
भारत के कई खिलाड़ियों को कोचिंग देने वाले आचरेकर का जनवरी 2019 में निधन हो गया. 1990 में आचरेकर को प्रतिष्ठित द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 2010 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
सचिन ने कोच को बताया ऑलराउंडर
सचिन ने अपने बचपन के कोच रमाकांत आचरेकर को एक ‘ऑलराउंडर’ और ‘वन-स्टॉप शॉप’ करार दिया. कोच आचरेकर की ट्रेनिंग में बिताए दिनों को याद करते हुए तेंदुलकर ने कहा कि जो खिलाड़ी उनसे कोचिंग ले चुके हैं, वे मैच के दौरान कभी तनाव में नहीं रहते थे. तेंदुलकर ने कहा, ''अजीत (तेंदुलकर के बड़े भाई) खेलते थे और मैचों में उन्हें ध्यान से देखा जाता था. जो सर के छात्र नहीं थे वे तनाव में रहते थे. उन्हें हैरानी होती कि सर के छात्र कभी दबाव में नहीं होते.''
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'हम रोलिंग करते थे, पानी छिड़कते थे, नेट्स लगाते थे'
सचिन ने मराठी में कहा, ''फिर उन्हें (अजीत को) अहसास हुआ कि सर ने बहुत सारे अभ्यास मैच खेले थे. मैं कोई अपवाद नहीं था. सर की कोचिंग में हमेशा क्रिकेट होता रहता था. सर हमें नेट्स लाने के लिए कहते थे. जीतू के पिता ने सर को क्लब की किट के लिए एक कमरा दिया था, उन्होंने मुझे उसका इस्तेमाल करने के लिए कहा और मैं खेलता था. उन्होंने हमें चीजों को महत्व देना सिखाया. हम रोलिंग करते थे, पानी छिड़कते थे, नेट्स लगाते थे और अभ्यास करते थे. उन्होंने हमें ट्रेनिंग दी.''
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खाने को लेकर तेंदुलकर ने क्या कहा?
सचिन ने आगे कहा, ''सर अपनी आंखों से बहुत कुछ बता देते थे. हम उनकी भाव भंगिमा समझ जाते थे. उन्होंने मुझे कभी ‘अच्छा खेला’ नहीं कहा. सर ने ऐसा मौका नहीं लिया. मैच के बाद वह कभी-कभी मुझे वड़ा पाव लेने के लिए पैसे देते थे, इस तरह मुझे लगता था कि मैंने कुछ अच्छा किया होगा. हमेशा ऐसा ही स्नेह होता था. हम उनके घर जाते थे. उनकी पत्नी और वो हमें आमंत्रित करते थे. हमारा पसंदीदा भोजन मटन करी, पाव, नींबू और प्याज था.''