PR Sreejesh : श्रीजेश.. श्रीजेश.. श्रीजेश... भारतीय फैंस की जुबां पर अभी सिर्फ यही नाम है. हो भी क्यों न.. भारतीय हॉकी टीम को पेरिस ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जिताने में स्टार गोलकीपर पीआर श्रीजेश का बड़ा योगदान रहा. भारतीय हॉकी टीम का पेरिस ओलंपिक में मेडल जीतना पीआर श्रीजेश के लिए भी बड़ा पल है, क्योंकि अब वह हॉकी नहीं खेलेंगे. स्पेन के खिलाफ खेला गया मैच उनका आखिरी मुकाबला रहा. भले ही श्रीजेश हॉकी के मैदान पर अब नजर नहीं आएंगे, लेकिन फैंस उन्हें कभी नहीं भूलने वाले. फैंस को नाचने-गाने और झूमने के लिए इस स्टार भारतीय गोलकीपर ने जो लम्हे दिए हैं, वो सालों-साल तक हर भारतवासी और हॉकी प्रेमी के दिल में जिंदा रहने वाले हैं. आइए जानते हैं दुनिया के इस ग्रेटेस्ट गोलकीपर के शानदार करियर के बारे में.


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ग्रेस अंक लेने के लिए खेलना शुरू किया


बोर्ड एक्जाम में ग्रेस अंक पाने के लिए खेलों में उतरने से लेकर 'भारतीय हॉकी की दीवार' बनने तक पराट्टू रवींद्रन श्रीजेश का सफर उपलब्धियों से भरपूर रहा. हर बड़ी चुनौती में संकटमोचक बनकर उभरे इस नायाब खिलाड़ी को पेरिस ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने के बाद अपने कंधे पर बिठाकर भारतीय कप्तान हरमनप्रीत सिंह की टीम ने आज विदाई दी. 36 साल के श्रीजेश ने ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम को मिले 13वें और लगातार दूसरे मेडल के साथ इंटरनेशनल हॉकी को अलविदा कह दिया. 



फ्रॉम टोक्यो टू पेरिस... 


टोक्यो ओलंपिक में जर्मनी के खिलाफ प्लेआफ मुकाबले में निर्णायक पेनल्टी बचाकर 41 साल बाद भारत को ओलंपिक मेडल दिलाना हो या पेरिस में ओलंपिक गेम्स में आस्ट्रेलिया पर 52 साल बाद मिली जीत हो या ब्रिटेन के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में पेनल्टी शूटआउट में भारत को मिली जीत हो, हर जुबां पर एक ही नाम था पी आर श्रीजेश. 8 मई 1988 को केरल के अर्नाकुलम जिले के किझाकम्बलम गांव में जन्मे श्रीजेश ने पहले बताया था कि वह बोर्ड के एक्जाम में ग्रेस अंक लेने के लिये एथलेटिक्स में उतरे थे और बाद में उनके स्कूल के कोच ने उन्हें हॉकी गोलकीपर बनने की सलाह दी. 



कोच की सलाह साबित हुई वरदान


हालांकि, केरल में उस समय एथलेटिक्स और फुटबॉल की ही लोकप्रियता थी. लेकिन कोच की वह सलाह श्रीजेश और भारतीय हॉकी के लिये वरदान साबित हुई. श्रीजेश ने कहा था, 'मेरा सफर सपने जैसा रहा है. बोर्ड परीक्षा में ग्रेस अंक लेने के लिये खेलना शुरू किया तो कभी सोचा नहीं था कि भारत की जर्सी पहनूंगा और ओलंपिक खेलूंगा. चौथा ओलंपिक सपना ही लगता है. अब तक धनराज पिल्लै ने ही चार ओलंपिक, चार वर्ल्ड कप, चैम्पियंस ट्रॉफी और एशियन गेम्स में हिस्सा लिया. चार ओलंपिक खेलने वाला मैं पहला गोलकीपर हूं, विश्वास नहीं होता.'


2006 में हुआ डेब्यू


कोलंबो में 2006 में दक्षिण एशियाई खेलों के जरिये भारत की सीनियर टीम में डेब्यू करने वाले श्रीजेश 2011 तक एड्रियन डिसूजा और भरत छेत्री जैसे सीनियर गोलकीपरों के रहते टीम में स्थायी जगह नहीं पा सके. वह 2011 से टीम के अभिन्न अंग बने और 2014 एशियन गेम्स फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ दो पेनल्टी स्ट्रोक बचाकर स्टार बने. इसके बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा और ओलंपिक, वर्ल्ड कप, चैम्पियंस ट्रॉफी, एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स और प्रो लीग समेत सभी टूर्नामेंटों में उनका जलवा रहा. 


मिल चुके हैं ये सम्मान


खेल रत्न, पद्मश्री, वर्ल्ड के सर्वश्रेष्ठ एथलीट, एफआईएच के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी, 336 अंतरराष्ट्रीय मैच उनकी उपलब्धियों की गवाही खुद ब खुद देते हैं. यही वजह है कि धनराज पिल्लै उन्हें मेजर ध्यानचंद, बलबीर सिंह सीनियर, मोहम्मद शाहीद जैसे महानतम खिलाड़ियों की सूची में रखते हैं तो दिलीप तिर्की उन्हें भारतीय गोलकीपिंग का भगवान कहते हैं. मनप्रीत सिंह जैसे अनुभवी मिडफील्डर अपनी परेशानियां उनसे साझा करते हैं तो राजकुमार पाल या अभिषेक जैसे युवा खिलाड़ियों को वे दबाव झेलने का हौसला देते हैं.


कप्तान का भरोसा और फैंस की उम्मीद 'श्रीजेश'


कप्तान हरमनप्रीत सिंह उनकी उपस्थिति में अपना बोझ हलका महसूस करते हैं तो करोड़ों भारतीय हॉकी प्रेमियों को आखिरी पल तक उम्मीद रहती है कि श्रीजेश है तो गोल नहीं होने देगा. रजनीकांत के फैन श्रीजेश भारतीय हॉकी खिलाड़ियों के ऐसे ‘थाला’ (बड़े भाई) रहे, जिन्होंने गलती होने पर डांटा और अच्छा खेलने पर पीठ भी थपथपाई. मैदान पर गोल के सामने अकेले खड़े होने पर भी वह अकेले नहीं रहते और लगातार बोलते हुए खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाते रहते हैं. मलयालम भाषी श्रीजेश कभी पंजाबी में भी बोलते सुनाई दे जाते हैं तो कभी मैच जीतने पर गोलपोस्ट पर बैठे नजर आते हैं. 


दो दशक तक किया हॉकी के मैदान पर राज


पिछले दो दशक से अधिक समय से हॉकी खेल रहे श्रीजेश के लिये जिंदगी हॉकी के मैदान तक सिमटी रही है. यही वजह है कि पेरिस ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडल के मैच से पहले उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, 'अब जबकि मैं आखिरी बार पोस्ट के बीच खड़ा होने जा रहा हूं तब मेरा दिल कृतज्ञता और गर्व से फूलकर कुप्पा हो रहा है. सपनों में खोए रहने वाले एक युवा लड़के से भारत के सम्मान की रक्षा करने वाले व्यक्ति तक की यह यात्रा असाधारण से कम नहीं है.' 


आखिरी मैच खेल रहा हूं...


श्रीजेश ने कहा, 'आज मैं भारत के लिए अपना आखिरी मैच खेल रहा हूं. मेरा हर बचाव, प्रत्येक डाइव, फैंस का शोर हमेशा मेरे दिल में गूंजते रहेंगे. आभार भारत, मुझ पर विश्वास करने के लिए, मेरे साथ खड़े होने के लिए. यह अंत नहीं है, यह संजोई गई यादों की शुरुआत है.' वाकई भारतीय हॉकी टीम जब भी मैदान पर उतरेगी तो उनका जोश, उनकी मुस्कुराहट, उनकी गोलकीपिंग और उनका ‘स्वैग’ जरूर याद आयेगा. भविष्य में शायद एक कोच के रूप में या किसी और भूमिका में वह भारतीय हॉकी से फिर जुडें. इसका फैंस भी इंतजार कर रहे होंगे.