Europes big car brands in free fall: यूरोप के कार बाजार में बदलाव का दौर जारी है. यहां टेस्ला पॉपुलर है और चीनी कार कंपनियां अपनी मजबूत जगह बना चुकी हैं. ऐसे में यूरोप में पारंपरिक रूप से अबतक हावी रहे ब्रैंड्स को बड़ा झटका लगा है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि यूरोप उच्च सुरक्षा/उत्सर्जन मानकों वाला एक बहुत ही प्रतिस्पर्धी बाजार है. यूरोप का ऑटोमोबाइल मार्केट, चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार बाजार है जो इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में दूसरे पायदान पर है. 


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यूरोप की सड़कों पर चीनी कारों का कब्जा!


यूरोप की सड़कों पर चीन की सस्ती कारें कब्जा करती जा रही हैं. सेल के आंकड़े बताते हैं कि बीते 18 महीनों में यूरोपीय कार बाजार में मेड इन चाइना कारें सबसे ज्यादा बिकी हैं.चीन की कार कंपनी सैक ब्रिटेन में बड़ा ब्रांड बन गई है. सैक ने यहां टेस्ला के बाद सबसे ज्यादा कारें बेची हैं. चीनी कारें अपने सेगमेंट और प्रतिस्पर्द्धी कारों की तुलना में करीब 10 लाख रुपए सस्ती हैं.


यूरोप के वाहन निर्माताओं की बढ़ी चिंता 


चीन की सस्ती कारों की बढ़ती पॉपुलैरिटी से यूरोप की वाहन निर्माताओं की चिंता बढ़ गई है. हालांकि चीन की कारों में वह लग्जरी सुविधाएं नहीं है, जिसका सपना कार खरीदते वक्त यूरोप के लोग देखते हैं. लेकिन 10 लाख रुपये तक सस्ती होने से इनकी मांग तेजी से बढ़ी है. आपको बताते चलें कि चीनी कंपनियों ने पेट्रोलियम ईंधन और ईवी कार बाजार में सबसे ज्यादा तरक्की की है. सैक और MG की MG-5 और MG-4 स्पोर्ट्स कारें यूरोप में खूब पसंद की जा रही हैं. दो साल में चीन की करीब दर्जनभर कार कंपनियां यूरोपीय बाजार में होंगी. चीन की 5 कंपनियां 2024 में इसकी शुरुआत ब्रिटेन से कर रही हैं. 


'साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट' में प्रकाशित एक रिपोर्ट में KPMG Economics के एक अर्थशास्त्री के हवाले से लिखा गया है कि चीनी ऑटोमोबाइल कंपिनयां साल 2025 तक यूरोप के इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाजार के करीब 15% हिस्से में अपनी मजबूत जगह बना लेंगी. क्योंकि BYD, Nio और Li Auto जैसे खिलाड़ी यूरोपीय उपभोक्ताओं के बीच तेजी से पॉपुलर हो रहे हैं. इस हिसाब से चीन की इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनियों की फ्यूचर ग्रोथ भी बेहतर रहने का अनुमान लगाया गया है.


यूरोप में बड़े ब्रांड छोटे और छोटे होते जा रहे हैं?


2003 से 2023 के बीच, यूरोपीय ऑटोमोटिव बाजार के सबसे महत्वपूर्ण पहलू की बात करें तो बीते 20 सालों में ब्रांड्स के वर्चस्व में बड़ा बदलाव आया है. यूरोप के ऑटोमोबाइल मार्केट का नेतृत्व पारंपरिक रूप से अबतक 7 प्रमुख वाहन निर्माता कंपनियों ने किया है. जिसमें इटली से फिएट, फ्रांस से सिट्रोएन, प्यूज़ो और रेनॉल्ट, जर्मनी से वोक्सवैगन और ओपल और यूके के फोर्ड का दबदबा रहा है. अब बदलते वक्त में चीन की कई कार निर्माता कंपनियां इन बड़े ब्रांड्स का खेल बिगाड़ रही हैं. 


अमेरिका ने लिया ये फैसला


यूरोप से सबक लेते हुए अमेरिका ने अपनी ऑटोमोबाइल कंपनियों को चीन की सस्ती कारों से मिल रही टक्कर के दुस्प्रभावों से बचाने के लिए भारी टैक्स लगाया है. यही वजह है कि चीनी कारें अमेरिकी बाजार में उस तरह नहीं पहुंच सकी हैं, जैसा कि वो यूरोप में गर्दा उड़ा रही हैं यानी धूम मचा रही हैं.