Panipat first war 1526:  16 वीं सदी के तीसरे दशक में बदलाव की बयार ने दस्तक दे दी थी. दिल्ली की गद्दी पर काबिज अफगान सरदार इब्राहिम लोदी को खतरे का अहसास भी हो चुका था लेकिन वो चुनौती का सामना करने की जगह रंगीनियत में डूबा रहा. खैबर दर्रे की तरफ से विदेशी आक्रांता बाबर भारत में दाखिल हो चुका था जिसकी नजर दिल्ली की सत्ता पर थी. दिल्ली से करीब 125 किमी दूर पानीपत एक ऐसी घटना का गवाह बनने का इंतजार कर रहा था जिसके बाद हिंदुस्तान की सत्ता का चेहरा बदल गया.


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वो साल 1526 था. अफगान शासक इब्राहिम लोदी को पता चल चुका था कि आगे क्या होने वाला है लेकिन अपनी जिद की वजह से वो आंखें मूंद कर बैठा रहा. सलाहकारों के सुझाव पर ध्यान नहीं दिया. उसको गुमान सिकंदर लोदी की विरासत का था. लेकिन विरासत को बचाए रखने की ठोस कवायद उसने नहीं की और उसका नतीजा भी सामने नजर आया.


खैबर दर्रे से दाखिल हुआ था बाबर


खैबर दर्रे के जरिए जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर भारत में दाखिल हो चुका था. सवाल यह था कि काबूल के मिर्जा यानी बाबर के सामने हिंदुस्तान आने की वजह क्या थी. इसे लेकर इतिहासकारों में मतभेद है. एक खास तर्क यह दिया जाता है कि काबुल में उसके अस्तित्व पर संकट उठ खड़ा हुआ था लिहाजा वो विकल्प की तलाश में था. दूसरा तर्क यह कि बाबर का चंगेज खान और तैमूर लंग से नाता था और उस वजह से उसने हिंदुस्तान पर दावा ठोंक दिया. तीसरा तर्क यह है कि इब्राहिम लोदी की वजह से उसका चाचा आलम खान लोदी परेशान था और उससे छुटकारा पाने के लिए बाबर को उसने भारत आने का न्यौता भेजा. वजह जो भी हो, 1526 का साल ऐतिहासिक साबित हुआ. बाबर की महज 12 हजार की फौज ने इब्राहिम लोदी की एक लाख वाली सेना को हरा दिया और हिंदुस्तान की जमीन में सल्तनत हमेशा हमेशा के लिए दफ्न हो गया. अब यहां सवाल है कि बाबर जिसके पास महज 12 हजार की फौज थी उसने लड़ाई कैसे जीत ली.


तोप और तुलुगमा ने दिलाई जीत


बाबर जब खैबर दर्रे के जरिए भारत की तरफ आगे बढ़ रहा था तब उसके रणनीतिकारों ने बताया कि पानीपत का भूगोल लड़ाई के लिए मुफीद है. बाबर की सेना तुलुगमा स्टाइल में पारंगत थी. इस पद्धति में सेना को तीन पंक्तियों में सजाया जाता था. सेना का एक हिस्सा दाईं तरफ, एक हिस्सा मध्य में और एक हिस्सा बाईं तरफ होता था. इस तरह की पद्धति में विरोधी सेना पर तीन तरफ से हमला किया जाता था. इसके अलावा बाबर के सैनिकों को तीरंदाजी में महारत हासिल थी. यही नहीं बाबर ने बारूद का इस्तेमाल किया. तोप को सेना के मध्य भाग वाली टुकड़ी के सामने रखा गया. अब बात करते हैं इब्राहिम लोदी की सेना के बारे में. इब्राहिम लोदी की सेना में वैसे तो लाखों में थी लेकिन पेशेवर सैनिकों की कमी थी. सैनिकों के हाथों में तलवार और भाले थे. यही नहीं इब्राहिम लोदी ने हाथियों को आगे कर रखा था.


इस तरह अफगानों का हो गया अंत


इतिहासकारों के मुताबिक जब बाबर और इब्राहिम लोदी की सेना आमने सामने आईं तो बाबर की फौज ने तीरों और तोप का जबरदस्त इस्तेमाल किया. तीरों के हमले और तोप की वजह से लोदी के सेना को आगे बढ़ने में दिक्कत होने लगी. तीरों और बारूदी हमले की जद में हाथी आ गए और वो आगे बढ़ने की जगह अपनी ही सेना को रौंदने लगे. यह देख इब्राहिम लोदी की सेना में भगदड़ मची जिसे देख बाबर ने अपनी फौज को तीनों तरफ से हमला करने का आदेश दिया. उसका नतीजा यह रहा कि इब्राहिम लोदी की सेना भाग खड़ी हुई और बाबर पानीपत को फतह करने में कामयाब हो गया.