नई दिल्ली: अंडरवर्ल्‍ड डॉन दाऊद इब्राहिम की बेनामी प्रॉपर्टी, हवाला कनेक्शन और मनी ट्रेल की तह खंगाल रहीं जांच एजेसियों के सामने दाऊद के भाई ने बड़ा खुलासा किया है. उसने बताया है कि भारत अब कभी भी डी कंपनी तक नहीं पहुंच सकेगा. इसके सबसे बड़ा कारण है कि दाऊद अब रुपए, पाउंड या डॉलर में डील नहीं करता बल्कि नई करेंसी में डील करता है. एक ऐसी करेंसी जिसका अस्तित्व तो है लेकिन उसे ट्रेस करना बेहद मुश्किल है. दाऊद अपना पूरा सिंडिकेट इसी के दम पर चला रहा है. इसी के चलते ये उसका सबसे बड़ा हथियार बन गया है, जिससे वो अपना कारोबार दुनिया के कोने-कोने में फैला रहा है.


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ऐसे हुआ खुलासा
ठाणे क्राइम ब्रांच की गिरफ्त में आ चुके दाऊद इब्राहिम के भाई इकबाल कासकर ने खुलासा किया कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद और उसकी डी कंपनी अब डॉलर या पाउंड में नहीं बल्कि सबसे महंगी वर्चुअल और डिजिटल करेंसी बिटकॉइन में डील करती है. इकबाल के मुताबिक, दाऊद इब्राहिम अब अंडरवर्ल्‍ड का डॉन नहीं रहा बल्कि एक ऐसा बिजनसमैन बन चुका है जो भारत के बाजार में भी डील करता है. उसका कारोबार करीब 50 करोड़ रुपए का है. दाऊद बिटकॉइन में पैसा लगाकर सालाना 15 परसेंट मुनाफा कमा रहा है.


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खुद रखता है पैसे का हिसाब
सूत्रों की मानें तो इकबाल कासकर ने दाऊद के कारोबार से जुड़ी पुछताछ में बताया कि दाऊद अपने पूरे कारोबार के एक-एक पैसे का हिसाब अपनी जेब में रखता है. जांच एजेंसियों की नजर से बचाने के लिए विश्व की सबसे महंगी उस वर्चुअल करेंसी का इस्तेमाल कर रहा है जिसकी कड़ियां चाहकर भी जांच एजेंसियां नहीं तोड़ सकतीं.


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डी कंपनी के पास 15 हजार बिटकॉइन
अंडरवर्ल्ड की दुनिया में दाऊद की डी कंपनी अब रुपए, डॉलर या पाउंड में नहीं बल्कि बिटकॉइन में डील करती है. बिटकॉइन को साइबर वर्ल्ड में अब तक की सबसे महंगी वर्चुअल करंसी के रूप में जाना जाता है. सूत्रों के मुताबिक दाऊद के कुछ गुर्गों से पूछताछ में ये भी खुलासा हुआ था कि डी-कंपनी बिटकॉइन में पिछले साल तक तकरीबन 15 हजार से ज्यादा बिटकॉइन खरीद चुकी है, जिसकी मौजूदा बाजार में वैल्यू करीब 13 अरब रुपए से ज्यादा आंकी जा रही है.


वर्चुअल करेंसी में डील
सूत्रों का कहना है कि 'डार्कवेब' या 'डार्कनेट' पर अपनी पहचान गुप्त रखते हुए डी कंपनी अपनी ज्यादातर अवैध डील में इसी वर्चुअल करंसी का इस्तेमाल कर रही है जिसमें एक्सट्रॉशन, ड्रग्स, हथियार और रियल एस्टेट जैसे धंधे शामिल हैं.


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चार्टेड एकाउंटेंट रखते हैं हिसाब
इकबाल कासकर के मुताबिक छोटा शकील ने डी-कंपनी के कारोबार को कॉरपोरेट की शक्ल दे दी है. कई चार्टेड एकाउंटेंट की एक पूरी बटालियन डी-कंपनी को कॉरपोरेट फॉर्मेट का रूप दे रही है. सूत्रों के मुताबिक जांच के दौरान पता चला है कि शेयर मार्केट में मौजूद कई कंपनियों से डी कंपनी मुनाफा कमा रही है.


साइबर सेल की पकड़ से दूर
अंडरवर्ल्‍ड शेयर बाजार में कितना एक्टिव है और कैसे पैसे कमा रहा है इस पर कुछ भी साफ-साफ नहीं कहा जा सकता. इतना जरूर है कि 100 से भी ज्‍यादा कंपनियां ऐसी हैं जो आईसीओ यानि (Initial Coin Offering) के जरिए डील करती है और उनकी पहचान से जुड़ी कोई जानकारी किसी जांच एजेंसी या रिकॉर्ड में मौजूद नहीं होती. इसमें संभव है कि करोड़ों के हवाला और ब्लैकमनी का कारोबार चलाया जा रहा हो.


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इसलिए नहीं रोका जा सकता कारोबार
इसे इसलिए रोका नहीं जा सकता है क्योंकि बिटकॉइन को लेकर कोई पाबंदी भारत में नहीं है और कई विदेशी कंपनियां अपना कारोबार बिटकॉइन के जरिए करती हैं. ऐसे में अंतराष्ट्रीय स्तर पर जो डिजीटल करेंसी है उसकी मान्यता को लेकर दुविधा है. जिसके चलते ये बता पाना मुश्किल है कि आखिर करोड़ों के डिजिटल कारोबार के पीछे कौन है.


पहचान छुपाना आसान
साइबर एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बिटकॉइन से डील करने से पहचान नहीं खुलती. इसे छुपाकर रखना ही सबसे अच्छा होता है. आम तौर पर बैंकिंग सेक्टर में किसी अकाउंट से कितना पैसा, किस अकाउंट में गया और सोर्स ऑफ इनकम क्या है और टैक्स से जुड़ी हर जानकारी मिल जाती है. लेकिन बिटकॉइन में ऐसा नहीं होता. करोड़ों रुपयों को बिटकॉइन की शक्ल देकर मोबाइल के महज एक पासवर्ड से लाखों का ट्रांजेक्शन इधर से उधर होता है और फर्जी पहचान महज बारकोड की गुत्थियों में उलझ कर रह जाती है.


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क्यों है अंडरवर्ल्ड की पसंदीदा करेंसी?
बिटकॉइन एक वर्चुअल यानी आभासी मुद्रा है. आभासी मतलब कि अन्य मुद्रा की तरह इसका कोई भौतिक स्वरूप नहीं है यह एक डिजिटल करेंसी है. यह एक ऐसी करेंसी है जिसे ना तो देखा जा सकते हैं और न छू सकते हैं. यह केवल इलेक्ट्रॉनिकली स्टोर होती है. मौजूदा वक्त में, 1 बिटक्‍वाइन की वैल्यू 14000 डॉलर (करीब 9 लाख रुपए से ज्यादा) है. अगर किसी के पास बिटक्‍वाइन है तो वो इंटरनेट पर किसी अन्य करंसी की तरह ही सामान खरीद सकता है. बिटकॉइन पर किसी व्यक्ति विशेष सरकार या कंपनी का कोई स्वामित्व नहीं होता है.


नहीं देना होता कोई अतिरिक्त शुल्क
बिटकॉइन करेंसी पर कोई भी सेंट्रलाइज कंट्रोलिंग अथॉरिटी नहीं है. बिटकॉइन के इस्तेमाल पर क्रेडिट या डेबिट कार्ड की तरह कोई अतिरिक्त शुल्क अदा करना नहीं पड़ता. भारत समेत कई देशों में बिटकॉइन जैसी करेंसी को लेकर रुख साफ नहीं है कि ये करेंसी लीगल है या नहीं. बिटकॉइन पेमेंट के काफी मामलों में इसके मालिक की पहचान कर पाना मुश्किल होता है. यही वजह है कि हाल ही में हुए रेंसमवेयर अटैक के दौरान भी फिरौती की रकम बिटकॉइन से ही मांगी जा रही थी.