बजट की व्याख्या अर्थशास्त्रियों को नहीं, नेताओं को करनी है
बजट अभी पेश हुआ ही है. विद्वान लोग धीरे-धीरे इसकी खूबियां और खामियां रेशा-रेशा कर सामने लाएंगे. इन जानकारों में से ज्यादातर ऐसे होंगे जिन्होंने निष्कर्ष पहले से निकाल रखे होंगे, भले ही बजट कैसा भी हो.
बजट अभी पेश हुआ ही है. विद्वान लोग धीरे-धीरे इसकी खूबियां और खामियां रेशा-रेशा कर सामने लाएंगे. इन जानकारों में से ज्यादातर ऐसे होंगे जिन्होंने निष्कर्ष पहले से निकाल रखे होंगे, भले ही बजट कैसा भी हो. यानी वे बजट विश्लेषण से ज्यादा अपनी प्रतिबद्धताओं का प्रदर्शन करेंगे. लेकिन बजट पर तत्काल कुछ कहना हो तो यही कहा जा सकता है कि वित्त मंत्री पीयूष गोयल अपने जीवन के सबसे कठिन एसाइनमेंट्स में से एक पूरा कर रहे थे.
एनडीए सरकार का यह अंतरिम बजट है और इसे अंतरिम वित्त मंत्री ने ही पेश किया है, लेकिन अंतरिम होने के साथ ही सरकार का यह अंतिम बजट है. अंतिम होने के कारण यह बजट आशाओं के पहाड़ के नीचे दबा हुआ है. चुनावी साल में सबको इतने ज्यादा की आशा है कि सरकार अपने सारे संसाधन झोंक भी दे तो भी लोग यही कहेंगे कि यह उनकी उम्मीदों से कम है.
वहीं, वित्त मंत्री से पूछें तो वह कहेंगे कि वित्तीय अनुशासन और जनता की अपेक्षाओं के बीच जितना संभव था उन्होंने संतुलन बनाने की कोशिश की. जो बात वह इशारों में कहेंगे वह यह होगी कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार जिस गाढ़े वित्तीय दौर से गुजर रही है, उसमें इससे ज्यादा कुछ किया नहीं जा सकता था. उनकी इस बात पर यकीन भी करना होगा, क्योंकि कोई भी सरकार चुनाव के ठीक पहले जनता के हर वर्ग को संतुष्ट करने की कोशिश करती ही है. अगर कोई वित्त मंत्री ऐसा न करे, तो उसे राजनीति के अलावा दूसरा कोई काम खोजना पड़ेगा.
इसीलिए वित्त मंत्री ने जो बजट पेश किया उसमें किसान, मध्यम वर्ग, युवाओं, छोटे और बड़े कारोबारियों सबके लिए कुछ न कुछ कहा गया है. इसके अलावा विकास परियोजनाओं के लिए थोड़ा आवंटन और बड़ी संभावनाओं का जिक्र किया गया है. चूंकि यह बजट सिर्फ चार महीने के लिए है इसलिए सरकार बहुत बड़ा आबंटन कर भी नहीं सकती थी.
लेकिन बजट सीमा की इस बाध्यता के बावजूद सरकार को सुंदर भविष्य का खाका खींचने से कोई नहीं रोक सकता था. इसलिए सरकार ने विकास योजनाओं पर बढ़-चढ़कर बात कर भविष्य की अच्छी तस्वीर पेश की है. वित्त मंत्री ने बहुत सधकर ही सरकार की उपलब्धियां गिनाई हैं और जान बूझकर ऐसी कई योजनाओं का जिक्र नहीं किया जो कभी फ्लैगशिप हुआ करती थीं, लेकिन अब किसी काम की नहीं बची हैं.
वित्त मंत्री ने किसानों और युवाओं का जिक्र बार-बार अपने भाषण में किया. जरा पीछे मुड़कर देखें तो मोदी सरकार के हर बजट को अंत में किसानों का बजट ही कहा गया है. यह आखिरी बजट किसानों के साथ मध्यम वर्ग और युवाओं का बजट भी कहलाएगा. मध्यम वर्ग के लिए सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि उसे इनकम टैक्स में पहले से ज्यादा छूट दे दी गई है. युवाओं से कहा गया है कि उन्हें और ज्यादा रोजगार दिया जाएगा, लेकिन यह नहीं बताया गया है कि रोजगार अचानक कहां से पैदा होगा. जाहिर है ये घोषणाएं कुछ हद तक ही लोक लुभावन हैं.
ऐसे में इस बजट को समझाने की जिम्मेदारी अर्थशास्त्रियों पर नहीं छोड़ी जा सकती. बीजेपी के नेताओं को आगे बढ़कर लोगों को बजट के बारे में समझाना होगा. जाहिर है इस काम का नेतृत्व एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह करेंगे. वे अपने लोकप्रिय और सहज अंदाज में लोगों को बताएंगे कि बजट को सिर्फ आंकड़ों और पैसे के हिसाब-किताब से न समझें, बल्कि इसे सरकार की मंशा से समझें. वह बताएंगे कि चूंकि यह अंतरिम बजट है इसलिए बहुत पैसा नहीं दिया जा सकता. यह बजट तो उस बजट की झांकी है जो अगली सरकार बनने के बाद मोदी जी का वित्त मंत्री पेश करेगा.
इसलिए बीजेपी नेता कहेंगे कि अगर जनता चाहती है कि इस बजट में दिखाए गए सपने साकार हों तो नरेंद्र मोदी को दुबारा प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाएं. अगर बीजेपी के नेता यह नरेशन बनाने में कामयाब रहते हैं तो यह बजट सफल है. भले ही इसको लेकर अर्थशास्त्री नुक्स निकालते रहें.
(लेखक जी डिजिटल में ओपिनियन एडिटर हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)