Chhattisgarh Election: राजस्थान और मध्य प्रदेश से भी ज्यादा सरप्राइज रिजल्ट रहा है छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव का. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार थी यानि कांग्रेस की सरकार. चाहे एग्जिट पोल हो या राजनीतिक पंडित सभी ने छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस में या तो कांटे की टक्कर बताई थी या कांग्रेस की जीत बताई थी, लेकिन जब EVM खुली तो कांग्रेस को बहुत बड़ा झटका लगा. कांग्रेस बुरी तरह से हारी. रिजल्ट आते ही कांग्रेस ने हिंदी बेल्ट के एक और राज्य से सत्ता गंवा दी.


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- छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा सीटे हैं...जिसमें इस बार बीजेपी ने बहुत तेज़ दौड़ लगाते हुए 54 सीटें जीती.
- 5 साल से सत्ता पर काबिज कांग्रेस को सिर्फ 35 सीट मिली.
- जबकि अन्य के खाते में एक सीट गई.


..वादे हर किसी ने किए


चुनाव नतीजों से स्पष्ट है कि विश्वसनीयता का मुकाबला किसी भी दूसरी चीज से नहीं किया जा सकता है. वादे हर किसी ने किए, लेकिन जनता के मन में ये ज्यादा बड़ा सवाल था कि थोड़ा कम ही मिले, लेकिन पूरा कौन कर सकता है. सवाल ये भी था कि लंबे समय तक कौन अपने वादे पर टिका रह सकता है. वादे कांग्रेस ने भी खुद किए थे. लेकिन नतीजों से स्पष्ट है कि जनता को भरोसा मोदी की गारंटी पर रहा. भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव को भी यकीन नहीं हो रहा है कि प्रदेश की जनता ऐसा फैसला देगी.


नतीजों ने चौंकाया


2018 के चुनाव में बीजेपी की सबसे करारी हार छत्तीसगढ़ में हुई थी. 15 वर्ष सत्ता में रहने के बाद भी पार्टी छत्तीसगढ़ में सिर्फ 15 सीटें जीत पाई थी. चुनाव से पहले सबको उम्मीद थी कि कांग्रेस शायद छत्तीसगढ़ को बचाने में कामयाब हो जाएगी, लेकिन छत्तीसगढ़ का चुनाव एकतरफा साबित हुआ. एक पार्टी जिसने पिछले चुनावों में बंपर जीत हासिल की हो. इस बार के चुनावों में कहां गच्चा खा गई. और बीजेपी ने ऐसा क्या कर दिया, जिससे छत्तीसगढ़ की जनता का पंजे से विश्वास उठ गया.


-छत्तीसगढ़ में हुए घोटाले - भूपेश बघेल ने ED-IT के छापों को अपनी सरकार के खिलाफ साजिश बताया. लेकिन बीजेपी महादेव ऐप, गोबर घोटाला, शराब घोटाले को लेकर बघेल को घेरने में कामयाब रही.
-सांसदों को उतारने का दांव चला- बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में भी एमपी और राजस्थान की तरह सांसदों को उतारा. बीजेपी का ये फॉर्मूला भी काम कर गया. यानी सांसदों को उतारने का दांव बीजेपी के पक्ष में गया.
-बघेल-टीएस सिंहदेव की टसल भारी पड़ी- राजस्थान के पायलट-गहलोत झगड़े की तरह छत्तीसगढ़ में भी बघेल-टीएस सिंहदेव की टसल थी. दोनों के बीच लंबे समय से रस्साकशी चल रही थी. जिसका जनता में गलत मैसेज गया और फायदा बीजेपी को हुआ.
-महतारी वंदन योजना का असर - बीजेपी ने राज्य में महतारी वंदन योजना के तहत विवाहित महिलाओं को 12,000 रुपये सालाना की आर्थिक मदद का वादा किया. राज्य की अच्छी खासी आबादी को प्रभावित करने वाली इस योजना को गहराई से समझने में शायद भूपेश बघेल चूक कर गए.
-एकमुश्त धान की खरीदी - बीजेपी ने राज्य में योजनाओं की झड़ी लग दी. 21 क्विंटल धान की एकमुश्त खरीदी का वादा किया, 500 रुपए में सिलेंडर, कांग्रेस की कर्ज माफी के तोड़ के लिए दो साल का बचा हुआ बोनस देने की बात भी बीजेपी ने कही. बीजेपी की इन बातों से गरीब तबके को सीधे तौर पर प्रभावित किया.


सत्ता से कांग्रेस की विदाई


बीजेपी की एक खासियत है, वो अपना होमवर्क पूरा करके चुनावी मैदान में उतरती है. फिर बात चाहे ग्राउंड पर की गई मेहनत की हो, लोकलुभावन योजनाओं की हो, अलग-अलग फॉर्मूले आजमाने की हो, बीजेपी पूरे कॉन्फिडेंस से लड़ाई लड़ती है. छत्तीसगढ़ में भी यही हुआ है, जिसका असर ये है कि सत्ता से कांग्रेस की विदाई और बीजेपी की वापसी हुई.


मुख्यमंत्री के नाम को लेकर छत्तीसगढ़ में कई सवाल


मुख्यमंत्री के नाम को लेकर छत्तीसगढ़ में कई सवाल हैं. जैसे, क्या बीजेपी एक बार फिर डॉक्टर रमन सिंह को मुख्यमंत्री बनाएगी ? क्या बीजेपी इस बार महिला मुख्यमंत्री को मौका देगी. सवाल ये भी है कि क्या बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इस बार किसी नए FACE को सीएम की कुर्सी पर बिठाएगा ? आइये आपको बताते हैं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनने की रेस में किस किस का नाम चल रहा है.


-बीजेपी के अनुभवी नेता और 3 बार छत्तीसगढ़ के सीएम रहे रमन सिंह
-छत्तीसगढ़ बीजेपी के अध्यक्ष अरुण साव
-ओपी चौधरी, विजय बघेल, सरोज पांडेय, रेणुका सिंह, लता उसेंडी के नाम मुख्यमंत्री की रेस में चल रहे हैं


बीजेपी सबको चौंका देती है


सीएम को लेकर कई बार हम सबने देखा है कि बीजेपी सबको चौंका देती है. हो सकता है कि इस बार भी छत्तीसगढ़ में ऐसा ही हो. वैसे लिस्ट काफी लंबी है, पार्टी में कोई मनमुटाव ना हो, सब संतुष्ट रहे, इसका भी बीजेपी को ध्यान रखना है. वर्ष 2003 में जब बीजेपी पहली बार छत्तीसगढ़ की सत्ता पर काबिज हुई थी, तब भी पार्टी बिना सीएम FACE घोषित किए लड़ी थी. उस वक्त जीत के बाद रमन सिंह मुख्यमंत्री बने थे. इस बार भी हालात वैसे ही हैं. लेकिन इस बार अरुण साव के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा जोरों पर है.


-54 वर्ष के अरुण साव छत्तीसगढ़ बीजेपी के अध्यक्ष हैं और राज्य में बीजेपी के चुनाव अभियान की उन्होंने अगुवाई की है.
-वर्षे 2018 के चुनाव में बीजेपी को मिली हार के बाद संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी अरुण साव को सौंपी गई थी.
-अरुण साव बिलासपुर से लोकसभा सांसद भी हैं. इस बार अरुण साव ने लोरमी से विधानसभा का चुनाव लड़ा और भारी वोटों से जीते.
-अरुण साव को संघ का भी करीबी माना जाता है.
-जातीय समीकरण भी अरुण साव के पक्ष में नजर आ रहे हैं. अरुण साव ओबीसी वर्ग के साहू समाज से आते हैं. छत्तीसगढ़ में 52 प्रतिशत OBC वोटर्स है. छत्तीसगढ़ में 20 से 22 प्रतिशत वोट साहू समाज के ही है. समीकरण के अनुसार इस बार साहू समाज ने बीजेपी को जबरदस्त समर्थन दिया है.


छत्तीसगढ़ में साहू समाज की अहमियत


छत्तीसगढ़ में साहू समाज की अहमियत का अंदाजा इसी बात से भी लगाया जा सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी ने एक चुनावी रैली में कहा था कि यहां जो साहू समाज है. इसी समाज को गुजरात में मोदी कहा जाता है. हालाकि अरूण साव सिर्फ इतना ही कह रहे हैं कि सीएम पद के लिए फैसला केंद्रीय नेतृत्व को करना है.