Alzheimer`s पर डेढ़ दशक पुरानी Study निकली फर्जी, फेक फोटोज के जरिए हुआ करोड़ों मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़
Manipulated Results in Alzheimer`s Study: अक्सर कई बीमारियों का इलाज वैज्ञानिक रिसर्च के नतीजों के आधार पर किया जाता है, लेकिन अगर स्टडी ही फर्जी निकल जाए तो सोचिए कि कितनी मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ हो जाएगा.
Alzheimer's Disease Fake Study: अलजाइमर डिजीज ( Alzheimer's Disease) दिमाग मे Amyloid Protein प्रोटीन के जमाने से होती है, इस थ्योरी को साबित करने वाली डेढ़ दशक पुरानी स्टडी सवालों के घेरे में है, ऐसा बताया जा रहा है कि वैज्ञानिक ने टेस्ट के रिजल्ट की फर्जी एडिटेड फोटो छाप कर साबित की थी ये थ्योरी, लेकिन करीब डेढ़ दशक बाद एक फिल्मी कहानी की तरह सच सामने आ गया. इस चौंकाने वाले खुलासे से भारत ही नहीं दुनियाभर को वो डॉक्टर हैरान हैं जो पिछले कई सालों से इस स्टडी के आधार पर अलजाइमर के मरीजों का इलाज कर रहे हैं.
फर्जी फोटो के जरिए हुआ धोखा
इंटरनेट पर Morphed Photos तो आपने कई बार देखी होगी, लेकिन आज हम आपको एडिटेज तस्वीर के सहारे को गई एक स्टडी के बारे में बताएंगे, जिसकी वजह से आज पूरी दुनिया के डॉक्टर मानते हैं कि किसी व्यक्ति को अलजाइमर डिजीज ( Alzheimer's Disease) यानी भूलने की बीमारी किसी व्यक्ति को तब होती है जब उसके दिमाग में Amyloid Beta Star 56 प्रोटीन जमा हो जाता है. झूठ और फर्जी फोटो के सहारे किए गए रिसर्च ने न सिर्फ दुनिया भर के अलजाइमर से पीड़ित करोड़ो मरीजो को ठगा, बल्कि इस झूठी रिसर्च के सहारे फार्मा कंपनियों ने भी अरबों रुपये की कमाई की. सबसे पहले हम आपको पूरा मामला सिलसिलेवार तरीके से समझाते है.
डेढ़ दशक पहले हुई थी रिसर्च
साल 2006 में 8 अमेरिकी वैज्ञानिकों ने बूढ़े चूहों पर की गई अपनी स्टडी के सहारे दावा किया था कि किसी बुज़ुर्ग व्यक्ति को अलजाइमर नाम की भूलने की बीमारी तब होती है जब उसके दिमाग मे Amyloid Beta Star 56 नाम का प्रोटीन जमा हो जाता है. यह स्टडी दुनिया के मशहूर साइंस जर्नल 'नेचर' में छपी थी. इसी स्टडी को आधार मानते हुए दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने इसे बीमारी का मूल कारण माना और अमेरिकी वैज्ञानिकों की इस थ्योरी को Amyloid Theory नाम दिया गया.
(फोटो-ट्विटर)
स्टडी से मरीजों में जगी थी उम्मीद
साल 2006 की इस थ्योरी ने विज्ञान जगत से लेकर अलजाइमर से पीड़ित लोगों को एक आशा की किरण दी थी क्योंकि इससे पहले डॉक्टरों को पुख्ता तौर पर अलजाइमर नाम की बीमारी के प्रमुख कारण का पता नही था, साथ ही Amyloid Theory के आने के बाद विश्वभर के वैज्ञानिकों ने अलजाइमर की दवा पर रिसर्च करना शुरू कर दिया था जिससे दिमाग मे इस जमा हुए प्रोटीन को हटाया जा सके. तकरीबन डेढ़ दशक तक सब कुछ ठीक चलता रहा और वैज्ञानिक भी इस थ्योरी पर भरोसा करते रहे, इसी के आधार पर अलजाइमर के इलाज के लिए Anti-Amyloid दवाओं के ट्रायल भी हुए.
अलजाइमर की दवा को मिली थी मंजूरी
जून 2021 में अमेरिका की दवा को मंजूरी देने वाली संस्था FDA ने पहली Anti-Amyloid दवा Aduhelm को मंजूरी दी थी, जिसका निर्माण Biogen नाम की दवा निर्माता कंपनी ने किया थ और इसका काम अलजाइमर डिजीज ( Alzheimer's Disease) से पीड़ित मरीजों के दिमाग मे जमे Amyloid प्रोटीन को साफ करना था. इस दवा को FDA की मंजूरी मिलने के बाद, विरोध में FDA की अलजाइमर पर बनाई गई विशेषज्ञों की कमेटी के 3 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था क्योंकि उनके मुताबिक यह दवा अलजाइमर के मरीजो के साथ एक धोखा थी क्योंकि इस दवा के शुरुआती ट्रायल में तो अच्छे नतीजे सामने आए थे लेकिन क्लीनिकल ट्रायल में यह दवा बेअसर साबित हुई थी. हालांकि तब तक भी किसी भी वैज्ञानिक को Amyloid Theory पर शक नही हुआ था.
जब खुल गई फर्जी रिसर्च की पोल
एक तरफ Biogen की Anti-Amyloid दवा Aduhelm पर विवाद चल ही रहा था तो दूरी ओर एक और अमेरिकी दवा निर्माता कंपनी Cassava अपनी Anti-Amyloid दवा Simufilam का ट्रायल अलजाइमर से पीड़ित मरीजो पर कर रही थी. Cassava ने शुरुआती ट्रायल के नतीजों द्वारा दावा किया कि उसकी दवा को एक साल तक खाने के बाद ट्रायल में भाग लेने वाले 3 में 2 मरीजों पर दवा का बेहतर असर हुआ है और उनकी सेहत में सुधार हुआ है. बस इसी के बाद से से Morphed Photos द्वारा दी गई Amyloid Theory की पोल खुलनी शुरू हुई और अगस्त 2021 में अमेरिका की एक लॉ फर्म ने FDA से शिकायत की और याचिका दायर की Cassava ने जो नतीजे अपने ट्रायल में दिए हैं वो झूठे हैं और FDA इस झूठे डेटा के फर्जीवाड़े की जांच करे साथ ही जांच होने तक Cassava द्वारा किये जा रहे Simufilam के ट्रायल पर रोक लगाए.
(फोटो-साइंस लाइब्रेरी)
झूठ के आधार पर आए नतीजे
Cassava की शिकायत करने वाली इसी लॉ फर्म ने अमेरिका की Vanderbilt University के Neuro Scientist Dr Matthew Schrag से इस मामले की जांच करने के लिए मदद मांगी. कई महीनों की अपनी जांच में Dr Schrag ने पाया कि ये Anti-Amyloid दवाएं जिस Amyloid Theory के आधार पर बनाई जा रही हैं वो उस थ्योरी को देने वाली एक दशक पुरानी स्टडी ही झूठ के बल पर तैयार की गई थी, और 2006 की स्टडी में खून और टिश्यू में प्रोटीन की मात्रा जानने के लिए जिस Western Blot Test का प्रयोग हुआ था उसके नतीजो की Digital Photo एडिट करके स्टडी के नतीजों में लगाई गई थी. अमेरिकी वैज्ञानिक के मुताबिक स्टडी में दिमाग मे मौजूद Amyloid Beta Star 56 प्रोटीन के स्तर को ज्यादा दिखाने के लिए Western Blot Test के नतीजो को कंप्यूटर पर एडिट कर बड़ा किया था जिससे यह साबित हो जाए कि Alzheimer Amyloid Beta Star 56 प्रोटीन के दिमाग मे जमने से ही होता है.
पकड़ी गई झूठी तस्वीरें
अलजाइमर पर की गई डेढ़ दशक पहले की इतनी अहम स्टडी की बुनियाद झूठी फर्जी तस्वीरों से रखे जाने के बाद साइंटिफिर जर्नल 'नेचर' ने भी इस मामले की जांच करनी शुरू कर दी है, और इस झूठ के केंद्र बिंदु में अमेरिका की University of Minnesota के वैज्ञानिक Dr. Sylvain Lesne हैं जो वर्ष 2006 वाली इस स्टडी के प्रमुख थे और इन्होंने ही Western Blot Test करके नतीजों की तस्वीर अन्य साथियों के साथ साझा की थी. University of Minnesota ने भी एडिटेड फोटो के आधार पर की गई इस स्टडी पर Dr Sylvain Lesne के खिलाफ जांच शुरू कर दी है.
Dr. Sylvain Lesne (फोटो-ट्विटर)
क्या कहते हैं हेल्थ एक्सपर्ट्स?
दिल्ली के NWNT Healthcare के डायरेक्टर डॉ संदीप वोहरा के मुताबिक किसी बीमारी का असल कारण क्या है और इसमें कौन कौन सी दवाएं असर करेंगी इसके लिए वो दुनिया के बड़े बड़े जर्नल में छपने वाले रिसर्च को पढ़ते रहते हैं जिससे वो मरीजों का बेहतर इलाज कर पाएं, लेकिन शोध में झूठ की मिलावट न सिर्फ डॉक्टरों बल्कि मरीजों के जीवन के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है, बल्कि अलजाइमर जैसी बीमारी जिसकी निश्चित दवा और ट्रीटमेंट आज भी डॉक्टरों के पास नही है उस पर ऐसा झूठ बेहद जानलेवा है.
गुरुग्राम के मणिपाल हॉस्पिटल के न्यूरोसर्जन डॉ निशांत याग्निक, जिन्होंने पिछले कई सालों से अलजाइमर के मरीजों का इलाज किया है, उनके मुताबिक उन्होंने हमेशा यही पढा है कि ये बीमारी दिमाग में प्रोटीन के जमा होने की वजह से होती है. जिससे लोगों को भूलने की बीमारी होने लगती है. हालांकि जिस तरह से लगातार फार्मा फंडेड स्टडी मार्केट में आ रही है वो चिंता की बात है.
फोर्टिस अस्पताल की मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट डॉ हेमिका अग्रवाल की माने तो कई बार ऐसा होता है कि वैज्ञानिक जल्द प्रमोशन पाने के लिए स्टडी के साथ छेड़छाड़ करते हैं क्योंकि एक रैंक के लिए एक निश्चित संख्या की रिसर्च छपवाना बेहद जरूरी है. लेकिन अलजाइमर के मामले मे जिसकी असल दवा आज भी मरीजों को नही मिल पाई, ये क्यों होता है इसका पुख्ता कारण नहीं मिल पाया है उस पर की गई स्टडी को झूठ के सहारे दुनिया को बताना मानवीय सभ्यता का सबसे घृणित कार्य है.
दुनिया में 5 करोड़ लोग अलजाइमर के शिकार
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक आज दुनिया के 5 करोड़ के ज्यादा लोगों को अलजाइमर या भूलने की बीमारी है. वहीं एक अनुमान के मुताबिक भरत के 53 लाख से ज्यादा मरीज इस रोग से पीड़ित हैं. आज भी बाज़ार में और डॉक्टरों के पास कोई ऐसी निश्चित दवा नही है जो अलजाइमर डिजीज ( Alzheimer's Disease) को पूरी तरह ठीक कर दे ऐसे में जिस तरह अमेरिकी वैज्ञानिक ने टेस्ट के नतीजों की फोटोज को एडिट करके स्टजी जारी की थी उस पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए क्योंकि यह विज्ञान जगत का ही नहीं पूरे मानवता के लिए जानलेवा कदम है.
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