Special Mosquitoes to Control Dengue: पुडुचेरी के वेक्टर कंट्रोल रिसर्च इंस्टिट्यूट में एक अनोखा शोध चल रहा है. यह देखने की कोशिश की जा रही है कि क्या मच्छर से फैलने वाले डेंगू और मलेरिया की रोकथाम मच्छर के जरिए ही हो सकती है. इस लक्ष्य को हासिल करने में ऑस्ट्रेलिया से लाए गए मच्छरों की मदद ली जा रही है.


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ऑस्ट्रेलिया से लाए गए 10 हजार अंडे


दरअसल, यह सिलसिला 2017 में शुरू हुआ था. ऑस्ट्रेलिया में इसी तरह की एक रिसर्च पहले से चल रही है, उसी रिसर्च को समझते हुए भारत में ऑस्ट्रेलिया से ऐसे मच्छरों के 10,000 अंडे लाए गए जिनमें एक खास प्रकार का बैक्टीरिया डाला गया था, जिसका नाम वॉलबाकिया है.


इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ अश्विनी कुमार ने बताया, इस बैक्टीरिया के मच्छरों में चले जाने के बाद उस मच्छर के काटने पर भी डेंगू होने का खतरा नहीं रहता. अब इस प्रजाति की संख्या बढ़ाने की प्रक्रिया चल रही है. ऑस्ट्रेलिया से लाए अंडों के जरिए भारत में भी यही प्रजाति इस इंस्टीट्यूट में विकसित की जा चुकी है.


हालांकि ये शोध अब अपने अंतिम चरण में है, जिसमें इन मच्छरों को किसी एक इलाके में छोड़कर यह देखा जाएगा की इंसानों पर इन मच्छरों का असर कैसा रहता है और डेंगू के मामलों में कितनी कमी आती है. इस चरण के लिए सरकार की मंजूरी चाहिए होगी. 


दुनिया में सबसे पहले यह रिसर्च ऑस्ट्रेलिया में शुरू हुई. मोनाश यूनिवर्सिटी में वेक्टर कंट्रोल डिपार्टमेंट में ये रिसर्च शुरू हुई थी.  वॉलबाकिया बैक्टीरिया के जरिए डेंगू और मलेरिया फैलाने वाले एडीज मच्छरों से डेंगू के खात्मे की यह एक अनोखी प्रक्रिया है. 


वॉलबाकिया स्ट्रेन बैक्टीरिया वाले मच्छरों का भारत के एडीज मच्छरों से संपर्क कराया गया और यह देखा गया कि यह ऑर्गेनेज्म यानी विषाणु अगर मच्छर में मौजूद हों तो उसके काटने से डेंगू नहीं फैलेगा. 2018 में ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में मच्छरों की इस प्रजाति को खुले में छोड़ दिया गया. 


वैज्ञानिकों का दावा है कि इस प्रयोग के बाद से उस इलाके से डेंगू का एक भी केस नहीं आया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक क्वींसलैंड और आसपास के इलाके में डेंगू के मामलों में प्रयोग के दौरान के वर्षों में ही 80% की कमी आ गई. इसी तरह के प्रयोग इंडोनेशिया और ब्राजील में भी चल रहे हैं. 


भारत में भी 2017 में ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी से ही वोलबेकिया स्ट्रेन वाले मच्छरों के 10000 अंडे लाए गए थे. तब से पुडुचेरी के नेशनल वेक्टर कंट्रोल रिसर्च इंस्टीट्यूट में यह प्रयोग किया जा रहा है. हालांकि अभी भारत में यह प्रयोग लैब में ही जारी है. किसी इलाके में इसे छोड़ने के लिए सरकार से मंजूरी लेनी होगी, जिसमें कुछ वक्त लग सकता है. 


देश के इस इंस्टीट्यूट में मच्छरों का सबसे बड़ा म्यूजियम भी मौजूद है. एक कमरे में बना ये म्यूजियम देश का सबसे बड़ा मच्छरों का अनोखा म्यूजियम है. इंस्टिट्यूट में मौजूद अलग-अलग लैब में जिंदा मच्छरों पर रिसर्च की जा रही है. इस लैब में वॉलबाकिया स्ट्रेन के वही मच्छर मौजूद हैं जिनके काटने से डेंगू नहीं होगा. इन मच्छरों पर रिसर्च करने के लिए इन्हें पाल पोस कर बड़ा किया जाता है और इसके लिए इन्हें एक विशेष प्रकार की डाइट दी जाती है. 


इस डाइट को भी इंस्टिट्यूट में ही विकसित किया गया है. इससे पहले मच्छरों के लिए ब्लड बैंक से खून मंगाया जाता था, लेकिन इस काम में बहुत दिक्कत आती थी, इसलिए इंस्टीट्यूट की साइंटिस्ट डॉक्टर निशा मैथ्यू ने लैब में केमिकल्स के जरिए ऐसी डाइट तैयार की जिससे मच्छरों को अच्छा भोजन मिल सके. मच्छरों की इस अनोखी डाइट में मल्टीविटामिन कार्बोहाइड्रेट और कोलेस्ट्रॉल मौजूद है. 


अट्ठारह अलग-अलग डाइट को बनाने के बाद चार डायट को मच्छरों ने स्वीकार किया. इस डाइट और मच्छरों को खिलाने के लिए इंस्टिट्यूट ने एक खास तरह का स्पीड अभी बनाय पहले विदेशों से फीडर आता था, जिसकी कीमत तकरीबन ₹50000 थी, जबकि भारत में बना ये फीडर केवल ₹1000 का ही पड़ता है. इस डायट और फीडर दोनों के लिए इंस्टिट्यूट को इसी सप्ताह पेटेंट भी मिल चुका है. 


देश में वर्ष 2021 में डेंगू के 164000 मामले रिपोर्ट किए गए थे. इस वर्ष भी मनसून आने के साथ ही डेंगू के मामले बढ़ने लगे हैं .डेंगू चार प्रकार का होता है और कई मामलों में यह जानलेवा भी साबित होता है, ऐसे में इस रिसर्च के पूरा होने से डेंगू को कंट्रोल करने में बड़ी मदद मिल सकती है.


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